भारतीय मीडिया श्रीलंका की घटनाओं पर चुप क्यों है?

दैनिक समाचार

द्वारा : गिरीश मालवीय

यदि आप जानना चाहते हैं कि भारत का टीवी मीडिया और अखबार श्रीलंका के ताजा हालात पर लगातार चुप्पी क्यों अख्तियार किए हुए है, तो इस लेख को पढ़ लीजिए !…….

‘एक गिरता हुआ रथ, दूसरे को सावधान करता है’ यह एक पुरानी बौद्ध कहावत है. हमे ‘जलती हुई लंका’ से भी सावधान होने की जरूरत है. हम देख रहे हैं कि श्रीलंका में हालात दिन-ब-दिन बद से बद्तर की और जा रहे है. आज जो श्रीलंका में स्थिति है, उसके संकेत 2019 में हुए आम चुनाव में ही दिखने लगे थे. किस प्रकार 2019 में राजपक्षे बहुसंख्यकों के हितों के सरंक्षण की बात कर, सत्ता में आए थे-यह हमे जानना बहुत जरूरी है.

श्रीलंका में यह सब 2012 से शुरू हुआ, जब दो बौद्ध भिक्षुओं किरामा विमालाजोथी और गलागोदा अथे गननसारा
ने बीबीएस की स्थापना की.

BBS यानी बोडु बाला सेना, यानी हिंदी में ‘बौद्ध शक्ति की सेना.’

यह एक अतिवादी दल है, जो श्रीलंका की प्राचीन संस्कृति की बात करता है. यह सिंहली बौद्ध राष्ट्रवाद की बात आगे रखता हुआ उग्र राष्ट्रवाद का समर्थक है.

यह बहुलवादी और लोकतांत्रिक विचारधाराओं का विरोध करता है.

17 फरवरी 2013 को बोडू बाला सेना (BBS) ने एक सभा की और सार्वजानिक घोषणा की कि आज से देश में कहीं भी “हलाल मार्का” वाली चीजें नहीं बिकनी चाहिए. कोई भी बुर्का में नजर नहीं आना चाहिए आदि.. ऐसी दस इस्लामिक प्रथाओं का उन्होंने नाम लिया. उनका कहना था कि वो जान बूझकर अपने धार्मिक खानपान को हमारे देश में हम पर थोप रहे हैं!

2014 में कुछ बौद्ध भिक्षुओं के साथ मारपीट का विरोध करते हुए BBS ने अलुथगामा, बेरुवाला और धारगा कस्बे में विशाल रैलियां निकाली थी. BBS की इन रैलियों के बाद श्रीलंका के कई जगहों पर दंगे भड़के थे.

इन दंगों में 10 हजार लोगों को अपना घर छोड़कर भागना पड़ा, जिसमें 8 हजार मुस्लिम थे!

उनके ऐसे विचारो को देश विदेश में जमकर समर्थन मिला.

भारतीय जनता पार्टी के महासचिव और प्रवक्ता रहे राम माधव ने अपने फेसबुक तथा ट्विटर अकाउंट पर BBS तथा म्यामार के अतिवादी भिक्षु विराथु के संगठन “ग्रुप 969” की हिमायत करते हुए कई कमेंट्स साझा किए थे.

BBS के मुख्य कर्ताधर्ता गैलागोडा अथे ज्ञानसारा ने कुछ सालो पहले यह दावा भी किया कि वह ‘उच्च स्तर पर’ दक्षिणपंथी भारतीय हिंदू संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के साथ वार्ताओं में संलिप्त है ताकि दक्षिण एशिया के इस हिस्से में ‘हिंदू-बौद्ध शांति क्षेत्र’ कायम किया जाए!

ज्ञानसारा को अदालत की अवमानना ​​का दोषी ठहराया गया था, लेकिन राष्ट्रपति द्वारा क्षमादान दिए जाने के बाद 23 मई 2019 को रिहा कर दिया गया.

BBS ने 2019 में हुए श्रीलंका के आम चुनाव मे गोताबाया राजपक्षे के समर्थन में जमकर मेहनत की ….गैलागोडा अथे ज्ञानसारा ने कहा कि “हमने एक विचारधारा का निर्माण किया है कि देश को एक सिंहली नेता की जरूरत है जो अल्पसंख्यकों के सामने झुकता नहीं है.”

राजपक्षे उन्ही के समर्थन के आधार पर 2019 का चुनाव जीते. 18 नवंबर 2020 को टेलीविजन और रेडियो चैनलों पर श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने अपनी जनता के बजाए “सिंहल राष्ट्र” से उन्होंने कहा कि

“एक साल पहले, इस देश में 6.9 मिलियन मतदाताओं ने मुझे आपके नए राष्ट्रपति के रूप में चुना था. यह कोई रहस्य नहीं है कि उस समय मुझे वोट देने वाले बहुमत सिंहली थे.

गैलागोडा अथे ज्ञानसारा ने यह भी कहा कि गोटबाया राजपक्षे ही एक नियम, एक राष्ट्र, एक देश की स्थापना कर सकते है.

यह सरकार सिंहला बौद्धों द्वारा बनाई गई है और उसे सिंहला बौद्ध ही रहना चाहिए. यह सिंहल देश है, सिंहल सरकार है. जनतांत्रिक और बहुलतावादी मूल्य सिंहला नस्ल को तबाह कर रहे हैं.”

बाद में राजपक्षे द्वारा ज्ञानसारा को राष्ट्रपति कार्य बल का अध्यक्ष बनाया गया.वह अभी इसी पद पर आसीन हैं.

आज जो भी आप श्रीलंका की हालत देख रहे हैं, उसमे एक बड़ी जिम्मेदारी ऐसे माहौल की भी है जिसने जनता का ध्यान विषाक्त वातावरण बना कर अपनी मूलभूत समस्याओं से हटा दिया.

आज श्रीलंका में स्थिति पूरी तरह आउट ऑफ कंट्रोल है.

हिंसा में कई लोगों की मौत हुई है, जबकि 200 से अधिक लोग घायल हैं, अब तक 12 से ज्यादा मंत्रियों के घर जलाए जा चुके हैं.

बात निकलती है तो फिर दूर तलक जाती है, इसलिए भारत का मीडिया श्रीलंका की तबाही के मूल कारणों पर चर्चा करने पर परहेज करता है, क्योंकि जैसा कि आप जानते ही हैं कि भारत का गोदी मीडिया भी मौजूदा सरकार के इशारे पर जमकर साम्प्रदायिक राजनीति के तहत काम कर रहे हैं!

Girish Malviya

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