यदि वर्तमान लोकतांत्रिक संविधान को खत्म कर हिंदू राष्ट्र की घोषणा होती है तो इसका सबसे बड़ा नुकसान सभी जाति धर्म की महिलाओं का होगा.
महिलाओं का शोषण- दमन बढ़ जाएगा, प्रकृति ने महिला और पुरुष दोनों को अपनी विशेषताओं के साथ पैदा किया है. बराबरी के साथ जीने का अधिकार सभी को है.
चूंकि सभी धर्म ग्रंथ पुरुषों द्वारा लिखे गए हैं, इसलिए महिलाओं पर अत्याचार करने के लिए उनपर धर्म और संस्कृति के नाम पर उन्हें बांधने का प्रयास हुआ है.
महिला अधिकारों के लिए काम कर रहे संगठनों, कार्यकर्ताओं को चाहिए कि वो वर्तमान लोकतांत्रिक संविधान का प्रचार प्रसार करें, और महिलाओं को खास तौर पर बताएं कि मौजूदा संविधान ही आपके मुक्ति का मार्ग है.
आरएसएस के लोग पुरुष वर्चस्व को कायम रखने और उन्हें ज्यादा मजबूत करने के लिए फिर से हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं.
भारत में दो संस्कृतियों के बीच वैचारिक मतभेद है.. एक ब्राह्मण संस्कृति है जिसमें पुरुषों को श्रेष्ठ और महिलाओं को नीच और narak का द्वार माना जाता है, कुछ जातियों को श्रेष्ठ और बाकी को शूद्र माना जाता है.
दूसरा संस्कृति गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी और महर्षि चार्वाक जैसे इन्साफ पसंद धर्म गुरुओं द्वारा चलाया श्रमण संस्कृति है, वर्तमान में संविधान की है जिसमें सभी इंसानों को श्रेष्ठ माना जाता है, कोई नीच नहीं, कोई ऊँच नहीं.. सभी बराबर.
यहि कारण है कि शास्त्रों में ऊंचे बताये गये लोग धर्म और संस्कृति के नाम पर लोकतंत्र, समाजवाद, धर्म निरपेक्षता , और मानवतावादी संविधान को खत्म कर पूंजीवादी, तानाशाही, क्रूर, पुरानी शोषणकारी धार्मिक व्यवस्था फिर से लागू करना चाहते हैं.
-विजय कुमार भगत