जब वे औरंगजेब के गड़े मुर्दे उखाड़ने में व्यस्त थे
तब मैं पुष्यमित्र शुंग के बारे में सोचता रहा

दैनिक समाचार

कैसे उसने की होगी वृहद्रथ की हत्या
कैसे उसने किया होगा बौद्धों का सफाया
कैसे उसने ध्वंस किये होंगे बौद्ध प्रतीक

सोचता हूँ-
कुछ के लिए वह अपने समय का भगवान होगा
कुछ के लिए अपने समय का औरंगजेब

पुष्यमित्र शुंग और औरंगजेब
इतिहास में अक्सर आते रहे हैं
भेष बदलकर
अलग-अलग आस्थाओं के महिमा गान
अलग-अलग आस्थाओं के मान मर्दन के लिए
उस राजतंत्र-धर्मतंत्र को
हमेशा गणतंत्र ने रोका है

आज वे राजतंत्र की गलतियों को
गणतंत्र में ठीक करना चाहते हैं,
उसे धर्मतंत्र में बदलना चाहते हैं.

उनके इतिहासकारों ने
शायद उन्हें नहीं बताया-
राजतंत्र तलवारों की जोर से चलता था
हारे हुए राज्य का बचा हुआ गर्व
उनकी आस्था और स्त्रियाँ होती थीं
जीतने वाला हमेशा इन दोनों को कुचलता था

गणतंत्र को उस राजतंत्र की नकल पर धकेलने में
धर्म की आड़ में छुपा सबसे बड़ा हथियार
एक बार फिर से उठाया गया है
आस्था का गर्व
इस गर्व ने न जाने कितने असहायों को कुचला है
अलग-अलग समूहों में बाँटा है दुनिया को

इतिहास साक्षी है
इसका चरम
हमेशा भयावह होता है.?

 – Nalin Ranjan Singh 

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