- बाबा साहेब अम्बेडकर के समाज के हर दर्जे को बराबरी का अधिकार दिलाने के सपने को डिसोम फेलोज समर्पण और कड़ी मेहनत से कर रहे है साकार- मनीष सिसोदिया
- हाशिए पर खड़े समुदायों के उत्थान के लिए शिक्षा सबसे प्रभावी उपकरण, इस दिशा में काम करने के लिए अधिक से अधिक युवा आएं आगे- मनीष सिसोदिया
नई दिल्ली, 18 मई, 2022
देश की तरक्की एवं उत्थान में युवा लोगों का सक्रिय रोल बहुत जरूरी है। केजरीवाल सरकार युवा लोगों को समाज की कमियों के बारे में जागरूक करने तथा उनको साथ लेकर इन्हें सुधारने पर काम करने की पक्षधर हैं। इसी सिलसिले में आज दिल्ली के शिक्षा मंत्री व ऊपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने वंचित तबकों में सामाजिक व राजनीतिक नेतृत्व खड़ा करने में जुटी संस्था डिसोम से जुड़े युवा फेलोस और उनकी लीडर्शिप टीम से मुलाकात की।
इस मौके पर सिसोदिया ने कहा कि मुझे आपसे मिल के बहुत अच्छा लगा। मुझे सबसे अच्छी यह चीज लगी कि आप सब लोग समाज के बारे में सोच रहे हैं। ज्यादातर लोगों से बात करने पर उनका परिचय उनके नाम और उनके पद पर ही सीमित हो जाता हैं लेकिन आप लोगों से मिल कर, आपके समाज व देश के बारे में सपने सुन कर मुझे बेहद खुशी हुई। आप अपने नाम से बड़े हो गए हैं। आप अपने नाम से बाद सपना देख रहे हैं। इसका मतलब यह हैं की आप अपने नाम से आगे, अपनी पहचान से आगे सोच रहे हैं जो की शिक्षा का असली लक्ष्य हैं ।सपने नहीं होंगे तो सब खत्म हो जाएगा।
उन्होंने यह भी कहा की आज की शिक्षा प्रणाली में यही दिक्कत हैं कि हमारे बच्चे सपने नहीं देख रहे। मैं कई बच्चों से बात करता हूँ। मैं उसके पूछता हूं कि वो क्या कर रहे हैं, क्यों कर रहे हैं तो बहुतों के पास जवाब नहीं होते। यह हमारे शिक्षण प्रणाली की असफलता हैं कि बच्चों को पता नहीं वो किस मकसद से पढ़ रहे हैं।
सिसोदिया ने कहा कि शिक्षा का काम केवल नौकरी देना, आईएएस, इंजीनियर, डॉक्टर बनाना नहीं हैं। शिक्षा का जोर अभी कॉन्सेप्ट, कंटेन्ट पर है। दुनिया में अभी लोग माइन्ड्सेट को शिक्षा का फोकस नहीं मानते हैं। अभी हमारा ध्यान ज्ञान, आविष्कार पर है और इसके नतीजे हम देख रहे हैं। जैसे ही शिक्षा का फोकस माइन्ड्सेट होगा, वैसे ही समाज में नतीजे दिखने लगेंगे।
युवा साथियों से शिक्षा को हर कोने तक ले जाने पर चर्चा के दौरान सिसोदिया ने कहा कि बात केवल नियत की है। कोई काम नहीं करने के कई बहाने होते हैं। लेकिन काम करने का एक ही तरीका है और वो है आपकी नियत। हमारी नियत थी इसीलिए हमने पांच साल में दिल्ली के स्कूल सुधार दिए। अगर दिल्ली की झुग्गी वाले स्कूल ठीक हो सकते हैं, तो हर जगह के स्कूल भी सुधर सकते हैं। अगर देश के हर कोने में कोक, चावमीन, इंटरनेट पहुंच सकता है तो शिक्षा भी पहुंच सकती है।
डिसोम लीडरशिप स्कूल भविष्य के राजनीतिक और सामाजिक ‘सेवक नेताओं’ को विकसित करने पर काम करता हैं। डिसोम फेलोज साथी भारत के विभिन राज्य जैसे ओडिसा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, झारखंड, महाराष्ट्र आदि में सामाजिक सुधार और पिछड़े समाज की राजनीतिक समझ विकसित करने तथा उन्हें समाज में निर्णायक भूमिका में काम करने के लिए काम कर रहे हैं ।