ऑस्ट्रेलिया के एक बौद्ध भिक्षु का इंटरव्यू सुना, पत्रकार भिक्षु से पूछता है कि कोई अगर आपकी पवित्र धार्मिक पुस्तक #त्रिपिटक को फाड़कर शौचालय के कमोड में फेंक दे तब आप क्या करेंगे ?

दैनिक समाचार

बौद्ध भिक्षु ने उत्तर दिया कि मैं सबसे पहले प्लम्बर को फोन करूंगा ताकि नाली चोक न हो जाए। इस पर पत्रकार को हंसी आती है।

दूसरा प्रश्न पूछता है कि बामियान में तालिबान द्वारा बुद्ध प्रतिमाएं नष्ट कर दी गईं, इस पर आप क्या कहेंगे ?

बौद्ध भिक्षु ने कहा कि धम्म(धर्म) न तो मूर्तियों में है और न ही प्रेस पर छपी किताबों में है। धम्म हमारे दिलों में और उससे भी आगे हमारे व्यवहार में जब तक जिंदा है तब तक किताबों को फाड़ने से कुछ नहीं होता है,किताब हम दोबारा छपवा लेंगे, मूर्तियां नई बना ली जाएंगी लेकिन अगर हम अपने आचरण और अपने दिलों में धम्म को खो देते हैं और किताबों, मूर्तियों को बचा लेते हैं तो कोई फायदा नहीं है। तब केवल मूर्तियां और किताबें रह जाएंगी, धम्म खो चुका होगा, उसके प्राण खो चुके होंगे।

पूरा इंटरव्यू सुनने लायक है और बाकी के सभी धर्मों हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, पारसी, यहूदी आदि को इसे समझने की जरूरत है। किसी को भी, किसी का भी अपमान नहीं करना चाहिए लेकिन अपमान यदि कोई करे तब उसे उस देश की कानून व्यवस्था के तहत सजा दिलाओ अन्यथा हमारी धार्मिक किताबों का अपमान हो गया? तो हम सब देश जला देंगे? शास्त्र तो हमें प्रेम और शांति का संदेश देता था? तब हम अपनी किताब की रक्षा के लिए प्रेम और शांति को नष्ट कर देते हैं? क्या आप शांति और प्रेम खोकर उस किताब को बचा लेते हैं, जिसमें प्रेम और शांति का संदेश लिखा था?

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