मगर एक बात बताओ, “कैलाश मानसरोवर” से तुमको क्या दिक्कत है?
उसको पाने के लिए आवाज क्यों नहीं उठती?
वो भी तब जबकि ऐसी मान्यता है कि शिव जी आज भी वहीं विराजते हैं!
मैं बताता हूं, दरअसल तुम सब फट्टू हो और “ना कोई भारत की सीमा में घुसा है ना किसी ने भारत की पोस्ट पर कब्जा किया हुआ है”- जैसा सफ़ेद झूठ, इसी डर के कारण तुम्हारे भगवान बोलते हैं!
इसलिए “कैलाश मानसरोवर” को मुक्त कराने की बात संघी नहीं करते, पी एन ओक ने भी नहीं की।
आपको पता है? आप यहां उर्दू नाम वाले शहरों और स्थानों का नाम बदल रहे हों और चीन ने वहां आपके शिव जी के घर -कैलाश मानसरोवर- का ही नाम बदल दिया!
“Kangrinboqe Peak’
यह है चीन में कैलाश मानसरोवर का नाम, जहां शिव जी विराजमान हैं पर कोई संघी नहीं कहता कि शिव जी को चीन की कैद से आजाद कराना है!
मगर आपको पता है कि यह काम कट्टर इस्लामिक कहे जाने वाले शहंशाह-औरंगजेब-के शासनकाल में हुआ था!
भारत में सनातन धर्म के मानने वालों में शिव जी की पूजा और आस्था राम चंद्र से अधिक यूँ है कि जितने मंदिर और मुर्तियाँ शिव जी और शिवलिंग की इस देश या विदेश में है, उतना रामचंद्र जी की नहीं।
धार्मिक महत्व की बात करूँ तो शिव को ईश्वर माना गया है और रामचंद्र जी को ईश्वर का अवतार पुरुषोत्तम अर्थात पुरुषों में सर्वोत्तम अर्थात मनुष्य! है न?
रामचंद्र जी के इसी धरती पर कम से कम 12 जगह जन्म लेने की मान्यता के आधार पर रामजन्म भूमि मानकर मंदिर बनाया गया और आज भी पूजा की जाती है जिनमें 5 स्थान तो आज की अयोध्या में ही है, शेष कुरुक्षेत्र, कंबोडिया, पाकिस्तान और थाईलैंड में हैं!
कहने का अर्थ यह है कि रामचंद्र जी के जन्म को लेकर सनातनी ही एकमत नहीं हैं, जबकि शिव के वास वाले “कैलाश मानसरोवर” को लेकर सभी एकमत हैं और किसी तरह का कोई विवाद कभी नहीं रहा. आज भी नहीं है।
मैं आश्चर्यचकित हूँ कि आजतक भारत या भारत सरकार या 800 साल बाद बने शुद्ध हिन्दू शासक ने, कभी कैलाश मानसरोवर को चीन के कब्ज़े से ना तो मुक्त कराने की कोई कोशिश की, ना कैलाश मानसरोवर को चीन की कैद से मुक्त कराने के लिए कोई आंदोलन हुआ!
अर्थात शिव जी के निवास स्थान को चीन ने कब्ज़ा किया हुआ है, और उसे मुक्त कराने की आज तक किसी सरकार ने कोई कोशिश नहीं की जबकि 12 जगह जन्म की मान्यता वाले रामचन्द्र जी के जन्मस्थान पर देश में पूरी महाभारत हो चुकी है!
आज़ादी के बाद जब चीन ने “कैलाश पर्वत व कैलाश मानसरोवर” और अरुणाचल प्रदेश के बड़े भूभाग पर जब कब्ज़ा कर लिया तो देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी UNO पहुंचे कि चीन ने ज़बरदस्ती क़ब्ज़ा कर लिया है, हमारी ज़मीन हमें वापस दिलाई जाए!
इस पर चीन ने जवाब दिया कि हमने भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा नहीं किया है, बल्कि अपना वो हिस्सा वापस लिया है जो हमसे भारत के एक शहंशाह ने 1680 में चीन से छीन कर ले गया था!!
यह जवाब UNO में आज भी ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में मौजूद है।
जानते हैं चीन ने किस शहंशाह का नाम लिया था?
“औरंगज़ेब” !!!
भारत के ही एक राजा बाज बहादुर ने औरंगजेब की मदद से तिब्बत में स्थित कैलाश मानसरोवर पर चढ़ाई कर मानसरोवर झील को अपने कब्जे में ले लिया था।
दरअसल उस वक्त कुमाऊं (उत्तराखंड) में चांद वंश के राजा बाज बहादुर का शासन (1638-1678) था, और बाज बहादुर के बादशाह शाहजहां और औरंगजेब से काफी अच्छे संबंध थे।
बाज बहादुर को औरंगजेब की शाही सेना का मजबूत समर्थन हासिल था और उसी सेना के साथ बाज बहादुर ने कैलाश मानसरोवर को हासिल किया।
शाही दस्तावेजों में बाज बहादुर को जमींदार बताया गया है।
ये वही औरंगज़ेब है जिसे कि कट्टर इस्लामिक बादशाह और “हिन्दूकुश” कहा जाता है, सिर्फ उसी ने हिम्मत दिखाई और सर्जिकल स्ट्राइक करवा कर कैलाश मानसरोवर और टकलाकोट दुर्ग को भारत में मिला लिया था!
इतिहास के इस हिस्से की प्रमाणिकता को चेक करना हो तो आज़ादी के वक़्त के UNO के हलफनामे जो आज भी संसद में भी सुरक्षित हैं।
श्रोत-1-“हिस्ट्री ऑफ उत्तरांचल” :-ओ सी हांडा
2-“द ट्रेजेड़ी ऑफ तिब्बत”:
— मनमोहन शर्मा
यह सब आपको पी एन ओक अपनी किताब में नहीं बताएगा, वह बस चौतरफा लिखी कुरान की आयतें वाले ताजमहल को तेजो महालय बताएगा जिससे देश में घृणा बढ़े।