सिलगेर आंदोलन को किसान सभा का समर्थन

दैनिक समाचार

बीजापुर। भाजपा की मोदी सरकार और कांग्रेस की बघेल सरकार, दोनों की नीतियां कॉर्पोरेटपरस्त नीतियां है, जिसका मुख्य उद्देश्य आदिवासियों, दलितों और गरीबों को प्राकृतिक संसाधनों से वंचित करके धन्ना सेठों की तिजोरियों को भरना है। लेकिन इस लूट के खिलाफ पूरे देश में संघर्ष जारी है, जिसके सामने बड़े मोदी ने घुटने टेके हैं और उन्हें किसान विरोधी कानूनों को वापस लेना पड़ा है। इसी एकता के सामने छोटे मोदी को भी झुकना पड़ेगा और उन्हें भी बस्तर के आदिवासियों के लिए न्याय का ऐलान करना पड़ेगा।

उक्त बातें छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने सिलगेर में सैनिक बलों की गोलियों से शहीद आदिवासियों की पहली बरसी पर आयोजित एक विशाल जन सभा को संबोधित करते हुए कहीं। ‘छोटे मोदी’ से उनका इशारा भूपेश बघेल की ओर था। वे मूलवासी बचाओ मंच के आमंत्रण पर अखिल भारतीय किसान सभा की ओर से पहुंचे थे। उनके साथ छग किसान सभा के महासचिव ऋषि गुप्ता भी थे। इस सभा में बीस हजार से अधिक आदिवासी शामिल थे, जिन्होंने सभा से पूर्व सैन्य कैम्प पर विशाल प्रदर्शन कर सरकार से सैनिक छावनी हटाने, उनके वनाधिकारों की स्थापना करने तथा आदिवासी अत्याचारों में शामिल लोगों को दंडित करने की मांग की।

अपने संबोधन में किसान सभा नेता ने कहा कि वे नवंबर में बादल सरोज के साथ आये थे। संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से उन्होंने सिलगेर आंदोलन को देशव्यापी किसान आंदोलन की 7वीं चौकी बताया था। उन्होंने कहा कि इस चौकी पर पिछले 370 दिनों से शांतिपूर्ण ढंग से हजारों आदिवासी धरना दे रहे हैं और इस देश के संविधान और कानूनों को लागू करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन सत्ता में बैठे लोग अपने मुनाफे की हवस को पूरा करने उन पर गोलियां चला रहे हैं, झूठे मुकदमे गढ़ उन्हें जेलों में डाल रहे हैं। उन्होंने कहा कि सिलगेर का संघर्ष हमारे बच्चों के भविष्य और छत्तीसगढ़ के अस्तित्व की रक्षा का संघर्ष है और हमारी पीढियां गर्व से हमें याद करेगी कि उनके माताओं-पिताओं ने किस प्रकार शहादतें देकर जल-जंगल-जमीन की रक्षा की है और उनके जीवन और जनतंत्र को बचाया है।

किसान सभा नेता ऋषि गुप्ता ने कहा कि जो सरकारें अपने ही देश के संविधान और कानूनों को मानने के लिए तैयार नहीं हैं, उन्हें एक मिनट भी सत्ता में बने रहने का हक़ नहीं है और ऐसी सरकारों को खारिज करने का अधिकार इस देश के नागरिकों को है। वास्तव में ये सरकारें नागरिकद्रोही, देशद्रोही और राजद्रोही सरकारें हैं। उन्होंने कहा कि इनकी कॉर्पोरेटपरस्ती के कारण हसदेव, कोरबा और बस्तर के आदिवासियों को अपनी जमीन से विस्थापित होना पड़ रहा है। यह समूची आदिवासी आबादी के कत्ले-आम की प्रक्रिया है, जिसका पुरजोर विरोध किया जाएगा और मानवता प्रेमी सभी तबकों को लामबंद किया जाएगा। किसान सभा नेता ने आदिवासी जनसंहार की सभी घटनाओं के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को दंडित करने और पीड़ित परिवारों को 50-50 लाख रुपये मुआवजा देने की मांग करते हुए प्रदेश में पेसा कानून लागू करने की मांग की, ताकि आदिवासी स्वशासन की अवधारणा को अमल में लाया जा सके।

किसान सभा नेताओं ने पूरे प्रदेश में सिलगेर और हसदेव के आंदोलन के समर्थन में अभियान चलाने की भी घोषणा आमसभा में की।

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