पिछले 7 वर्षों में भारत की लगभग 7 लाख कम्पनियां बन्द हुई। फिर रोजगार की बात आप खुद समझ लीजिए। रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के तहत रजिस्टर्ड कुल 18,94,146 कंपनियों में से 36.07 फीसदी कंपनियां बंद हो चुकी हैं। इनमें से 3 हजार से अधिक विदेशियाँ कम्पनियां भी बन्द हो चुकी है। यही नहीं हाल ही में यूजीसी ने 60 से भी अधिक देशों के राजदूतों से मिलकर भारत के साथ सहयोग मांगा था लेकिन ऑक्सफोर्ड जैसी 9 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय यूनिवर्सिटीज़ ने भारत में कैम्पस खोलने से ही सीधे इंकार कर दिया।
यह कोई साधारण बात नहीं है। जहां के विकास का ढोल पीटा जा रहा हो, उनके आंकड़े भी देखने जरूरी है। इधर मोटर कम्पनियों पर ही नजर डालें तो दशकों से यहां कारोबार कर रही बड़ी बड़ी मोटर कम्पनियों ने पिछले 7 वर्षों में भारत से कारोबार समेट लिया है, जिनमें मुख्यतः अमेरिका की GM यानि जनरल मोटर्स 2017 में बन्द हुई, साऊथ कोरिया की सॉन्ग-यॉन्ग मोटर कम्पनी 2018 में, अमेरिका की कन्विन्सलैंड 2019 में, इटली की फिएट 2019 में, अमेरिका की यूनाइटेड मोटर्स 2019 में बन्द हुई।
विश्व प्रसिद्ध कम्पनी हार्ले तक ने भारत से अपना कारोबार समेट लिया है। अमेरिका की हार्ले डेविडसन 2020 में भारत छोड़कर जा चुकी है, अमेरिका की फोर्ड 2021 में, जापान की डैटसन 2022 में भारत छोड़कर वापस चली गयी है। सोचिये क्या यही मेक इन इंडिया का नारा था जहां 3000 विदेशी कम्पनी देश छोड़कर भाग चली गयी और क्या यही स्टार्ट अप था जहां देश की ही 7 लाख कम्पनियों पर ताले लग गए?
वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी वाले ज्ञान पर मत जाइए, ये वास्तविक आंकड़े देखिए जो सरकार के अपने ही आंकड़े हैं जो उन्होंने संसद पर रखे हैं इन्हें समझिए। मीडिया में डिबेट नहीं है क्योंकि इनसे कितने लोगों का रोजगार छीना उन्हें उसका आंकड़ा भी बताना पड़ेगा इससे सरकार की छवि ख़राब होगी तो मीडिया को चाटुकारिता के पैसे कहाँ से मिलेंगे? मीडिया ही तो वह सेक्टर है जिसमें एफडीआई को 100 प्रतिशत मंजूरी नहीं मिली केवल 26 प्रतिशत है सोचिये आखिर ऐसा क्यों?
बड़ी कम्पनियों के साथ पिछले 7 वर्षों में दर्जनों सरकारी कम्पनियां भी बन्द की गई। जिनके बारे में आप जानते ही होंगे? तर्क दिया गया कि ये घाटे में चल रही थी। अभी भारत पर जितना कर्ज़ा आजतक के इतिहास में था पिछले 7 वर्षों में वही कर्ज़ा उसका दोगुने से अधिक हो गया। साथ ही कालाधन भी दोगुना, अमीरों की सम्पत्ति भी दोगुनी तथा गरीबों की संख्या भी दोगुनी हुई। अमीर-गरीब के बीच की खाई, हिन्दू-मुस्लिम के बीच की खाई, जाति-जाति के बीच की खाई कई गुना बड़ी। यही उपलब्धि है, यही विकास है, यही अच्छे दिन है पिछले 7 वर्षों के?
(साभार)