द्वारा : अभय सिंह
सेना में ठेके पर नियुक्ति से पहले बहुत सारे सरकारी महकमों में ठेके पर नियमित काम की प्रथा चालू कर दी जा चुकी है! स्कूल-कॉलेजों में बहुत कम तनख्वाह पर और बिल्कुल असुरक्षित और अनिश्चित हालात में काम करते गेस्ट टीचर या नियोजित टीचर, अलग-अलग महकमों में आउटसोर्सिंग, यहां तक कि यूपीएससी में लेटरल इंट्री..! पूरी सीरीज है, जिसमें सरकार खुद बहुत सारे कर्मचारियों को ठेके पर ला चुकी है!
प्राइवेट कंपनियों में तो हालत यहां तक आ चुकी है कि सिर्फ छह महीने के ठेके पर सिग्नेचर करके लोग रिन्यूअल के लिए बॉस की कृपा की भीख मांगते हुए दयनीय बने रहते हैं! नौकरी की शक्ल दिहाड़ी हो रही है! जब मन करे, लात मार कर भगा दो..! कोई अधिकार और सम्मान नहीं!
बड़े धन-दरिंदों को छोड़कर छोटे-मोटे गुजारे लायक निजी रोजगारों को भी खत्म या कमजोर करने की योजना पर अमल!
हर वक्त असुरक्षा में जिंदगी गुजारने के हालात… हर वक्त यह डर कि आगे जीवन कैसे चलेगा..! आर्थिक अभाव की तलवार और जाल… सामाजिक गुलामी का हथियार..!
यह सब टुकड़ों में किया गया और ‘ऊपर वालों’ को छोड़कर आज बाकी सबको अकेला कर दिया गया है! आप रोजगार को अधिकार तक नहीं मान सकते! सामाजिक सम्मान का सवाल हाशिये पर..! बस ‘जीवन का अधिकार’ सरेंडर करना बाकी रह गया है! (प्रकारांतर से यह भी हो चुका है! हमारे शरीर पर से हमारा अधिकार छीना जा चुका है!)
इसलिए एक बिन मांगी सलाह है: जब कोई वक्त पर किसी छिपी या छिपाई गई बातों पर ध्यान दिलाए तो उसे कॉन्सपिरेसी थियरी वाला कहके रिजेक्ट नहीं किया कीजिए… वरना भविष्य में नाक पकड़ कर रोने के सिवा कुछ हाथ में नहीं रहेगा! उस लायक भी रह पाएंगे या नहीं, पता नहीं..!
जिन्हें आप रिजेक्ट कर देते हैं, जिनकी आप खिल्ली उड़ा देते हैं, वे अपने लिए नहीं, आपके लिए बोलते हैं, अपने जोखिम पर..! सच खोजने और बताने वाले वे लोग कब मार डाले जाएं, परिदृश्य से ‘गायब’ हो जाएं, पता नहीं..! मौजूदा दौर की सत्ता की फितरत का आपको अंदाजा नहीं है… और आप लोकतंत्र या आजादी की खुशफहमी में वक्त काट रहे हैं..!