कामरेड अध्यक्ष, कामरेड अमरजीत कौर जी, साथी दरियाव सिंह जी और मंच पर आसीन हरियाणा राज्य भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेतागण,
सबसे पहले मैं आपके 17 वें राज्य सम्मेलन की सफलता की कामना करता हूँ और सोशलिस्ट यूनिटी सैन्टर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट) की हरियाणा राज्य कमेटी की ओर से आप सभी नेताओं व डेलिगेटों का गर्मजोशी के साथ क्रान्तिकारी अभिनन्दन करता हूँ।
साथियो, हमारे देश में सर्वहारा वर्ग, मज़दूर-किसान, तमाम मेहनतकश लोग सभी भीषण पूंजीवादी शोषण के शिकार हैं। कोई दिन नहीं जाता जब मज़दूरों व कर्मचारियों की छंटनी नहीं होती। लाखों मज़दूरों की छंटनी की जा रही है। और बहुत सारे कारखानों को निरन्तर ताले लग रहे हैं। इस हालत में बेरोजगारी बढ़ रही है। मंहगाई का कोई ओरछोर नहीं है। बेरोजगारी में हरियाणा सबसे अव्वल है।
अग्निपथ का जिक्र करते हुए कामरेड सत्यवान ने कहा कि 1991 में कांग्रेस सरकार की पहल पर जो नई आर्थिक व औद्योगिक नीति लाई गई थी, तब हम मंचों से अक्सर यह कहते थे कि पुलिस व फौज को छोड़कर हर क्षेत्र का निजीकरण किया जा रहा है। सरकारी क्षेत्र हो, सार्वजनिक क्षेत्र हो, सभी का ये निजीकरण कर रहे हैं। हर सरकारी विभाग को, सार्वजनिक क्षेत्र को बर्बाद कर रहे हैं। जनता की संपत्ति को ये मुफ्त में पूंजीपति को बेच रहे हैं। लेकिन अब तो हालात और भी बुरे हो गये हैं। अन्य बातों के अलावा एक बात और कहना चाहूंगा कि भारत की राजसत्ता बड़े पूंजीपतियों की, अंबानी-अडानियों की दासी बन गई है। फौज में उनको आज मानव शक्ति उतनी नहीं चाहिए। उनको चाहिए आधुनिक नवीनतम अस्त्र-शस्त्र। इन्हें कौन बनाता है। किसान तो अनाज पैदा करता है, सब्जी पैदा करता है। छोटी मोटी फैक्ट्री वाले भी शस्त्र नहीं बना सकते। इसे तो बनाएंगे बड़ी पूंजी के मालिक। मोदी सरकार आने के बाद यह फैसला हो चुका है। हाल ही में, पिलानी में वहां देश के डिफेंस सेक्रेट्री आए थे। पूछने पर उन्होंने स्पष्ट बताया था कि हां, अब हम भारत में इजरायल व अमेरिका आदि की मदद से अपने देश में खुद के हथियार बनाएंगे और दुनिया को बेचेंगे। इसलिये, अब वे मैन पावर पर बजट नहीं लगाना चाहते। वे बजट लगाना चाहते हैं टेक्नोलॉजी आधारित नवीनतम हथियारों पर। इसीलिए फौज में जवानों की संख्या में कटौती करने की स्कीम के तहत अग्निपथ, अग्निवीर जैसी सोची समझी योजना लाई जा रही है। नजर डाल कर देखिये, आज देश को किस स्थिति में पहुंचा दिया गया। इन्हीं के आंकड़े बता रहे हैं कि 130 करोड़ लोगों के पास 10,000 रुपये महीने से भी कम आमदनी है। इतनी कम आमदनी में वे घर-गृहस्थी की चीजें, जरूरत का कपड़ा नहीं खरीद सकते, पढ़ाई की व्यवस्था नहीं कर सकते, खाने पीने की चीजें नहीं ले सकते, वक्त पर दवाई, इलाज नहीं ले सकते। घर मकान बनाना मुश्किल है। इसलिये, पूंजीपति आज उपभोक्ता सामग्रियों को नहीं पैदा करना चाहते। उपभोक्ता बाजार भंयकर संकट में है। सर्वत्र मंदी छाई हुई है जो निरन्तर गहरी होती जा रही है। इससे बाहर निकलने के लिए वे पैदा करना चाहते हैं हथियार ताकि सापेक्ष रूप से कमजोर देशों को हथियार बेच कर सुपर मुनाफा लूट सकें। विश्व शस्त्र मार्केट में हथियारों के विक्रेता के रूप में अपनी जगह बना कर अम्बानी-अडानियों के मुनाफे को सुनिश्चित करने के लिए वे अमेरिका जैसी विश्व सैन्य ताकतों के साथ नये नये समझौते करने में लगे हैं। इसलिये, सैन्य मामलों में भी आज एक नया मोड़ दिया जा रहा है। सेना का पुनर्गठन कर रहे हैं। हमारे बेरोजगार नौजवान इसकी लपेट में आयेंगे ही आयेंगे। ऐसी एक भयंकर स्थिति में सेना समेत पूरी राजसत्ता को निरन्तर दासी बना दिया जा रहा है। प्रशासन तो पहले से ही दासी है। ज्युडिशरी को भी पंगु बनाया जा रहा है। सारी शिक्षा व्यवस्था को पलट रहे हैं, इतिहास व विज्ञान को तोड़ मरोड़ रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में नई शिक्षा नीति एक भीषण हमला है। यह शुरू से ही विद्यार्थियों की सोच, नई पीढ़ी के चिंतन पर जकड़बंदी कायम करने के लिये, उसे आरएसएस के पैटर्न, आरएसएस की सोच की दिशा में ढ़ालने की स्कीम है। शिक्षा के माध्यम से बाकायदा सांप्रदायिकता व अंधविश्वास फैलाने की नीति है। यह एक बहुत बड़ी चुनौती है।
कृषि की हालत किसी से छुपी नहीं है। मेरे से पूर्व वक्ताओं ने इस पर अपनी बात रखी हैं। किसान आंदोलन ने तीन काले कानून रद्द कराने समेत जो उपलब्धियां हासिल की हैं, ये किसानों की ऐतिहासिक व गौरवशाली जीत है। लेकिन किसानों के सामने आज भी हजारों समस्याएं व चुनौतियाँ हैं। शोषित किसान-खेत मजदूरों की हालत बहुत खराब है। एमएससी हम मांगते हैं लेकिन एमएससी का मतलब सिर्फ एमएसपी नहीं है। एमएससी का साफ व स्पष्ट मतलब है कि जो कृषि उपज है, उसे सरकार खुद स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के आधार पर लागत से डेढ़ गुना दामों पर खरीदे और उपभोक्ता को पूंजीपतियों के हवाले न छोड़ा जाये। सरकार खुद सार्वजनिक दुकानें खोल कर खाने पीने की जरूरी चीजें शहरी व ग्रामीण लोगों को उपलब्ध कराए। केवल तभी एमएसपी की मांग मुक्कमल व पूरी होगी।
इसके अलावा हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए बहुत से श्रम अधिकार लड़कर हासिल किए थे। इनकी रक्षा करने की बेहद जरूरत है। किसान आंदोलन ने हमारे सामने एक उदाहरण पेश किया है। इस आंदोलन की एक और उपलब्धि है। हम इतने सालों से किसान मजदूर एकता जिंदाबाद का जो नारा लगाते आ रहे थे, वह किसान आन्दोलन में साकार होता नजर आया है। यह नई चेतना उभरी है। हालांकि, यह अभी कमजोर है। नवम्बर 2021 में जंतर मंतर पर जो हमारा साझा राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन सम्मेलन हुआ था, उसमें किसान नेतृत्व को आमंत्रित किया था और वहां से किसान मजदूर एकता की एक नई गुंजाइश पैदा हुई थी। इसे लेकर हमें आगे बढ़ना है।
एक और बात है जिस पर हमें ध्यान देना है। वह है हमारे देश की चुनाव प्रणाली। इस पर मनी-पावर, मीडिया-पावर व मसल-पावर यानि धनपतियों, बाहुबलियों व प्रशासनिक शक्ति का दबदबा है, नियन्त्रण है। इससे जनमत नहीं निकलता, जनता की चाह या इच्छा अभिव्यक्त नहीं होती। वहां भी मर्जी चलती है पूंजीपतियों की, मल्टीनैशनल्स की, कॉरपोरेट की। उसमें धोखाधड़ी है। इसलिए, हमें आंदोलन की ताकत का निर्माण करना होगा, उसी पर भरोसा करना होगा। बेशक, श्रम अधिकारों व जनतांत्रिक अधिकारों को कदम कदम पर कुचला जा रहा है। लेकिन देश के पूंजीपति व उनकी सबसे बड़ी सेवक मोदी सरकार जानती है कि लाठी और गोली से लम्बे समय तक किसी को दबाया नहीं जा सकता। किसान आंदोलन को भी दबाने की कोशिश की गई थी। परंतु क्या दबा पाए थे? इसलिये, कांग्रेस के बाद देश की पूंजी की ताकत ने जिस आरएसएस-बीजेपी को गद्दी पर बैठाया है, वह हमारे अंदर ‘फूट डालो – राज करो’ की नीति लेकर चल रहे हैं। आम जनता को जाति-पाति के आधार पर, भाषा के आधार पर, धर्म के आधार पर, तरह तरह से बांटने में लगे हैं। आखिर क्यों? ताकि लोग बंटे रहे, एकजुट न हो पायें। अगर बहुसंख्यक मेहनतकश लोग जात, धर्म, भाषा, क्षेत्र आदि के आधार पर बट जाते हैं तो एकता कौन करेगा, आंदोलन कौन करेगा। आंदोलन की भावना सबसे पहले तो मन में ही पनपती है, बाद में धरातल पर उतरती है। इसीलिये, वे लोगों के मन में पड़े कुसंस्कारों का बेजा इस्तेमाल कर जहर भर देना चाहते हैं। उनको जनता से कोई मतलब नहीं है। अडानी व अंबानी के लिए मुनाफा लूटना ही उनका सर्वोच्च मंसूबा है। इसके लिए उनका भगवान मन्दिर में नहीं, उनका सर्वस्व थाने में है। इससे बचने का एक ही उपाय है कि आर्थिक व राजनैतिक मांगों के साथ साथ उन्नत सर्वहारा संस्कृति व नीति नैतिकता के बल पर हम वैचारिक-सांस्कृतिक आन्दोलनों का सृजन करें ताकि जनता के मन में हजारों-सैंकड़ों सालों से जो कुसंस्कार पड़े हैं, उन्हें उनके मन व व्यवहार से निकाल बाहर किया जा सके। अगर कुसंस्कार जनता के मन में ना रहेंगे तो कैसे बाटेंगे।
एक और महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि हमारे आजादी आंदोलन के अंदर जो चीज होनी चाहिए थी, वह थी धर्म को राजनीति से अलग-थलग कर दिया जाता। और आजादी प्राप्त होने के बाद, धर्म को शिक्षा व सामाजिक मामलों, गतिविधियों से बाहर कर दिया जाता। सामन्ती मनोवृत्ति, परम्परा, रीति रिवाज, रूढ़िवाद, जातपात और धार्मिक अंधविश्वास से उत्पन्न फूटपरस्ती को समाप्त करने का काम हमारा आजादी आंदोलन नहीं कर सका। बाद में भी नहीं हुआ। आज हमें रोटी और पानी, रोजगार, शिक्षा व इलाज के साथ साथ लोगों की एकता के लिए और धर्मनिरपेक्षता के लिए वैचारिक तौर पर लड़ना होगा।
धर्मनिरपेक्षता के बारे सही समझ लेकर चलना होगा। मायने है कि धर्म व्यक्ति का निजी मामला हो। भारत के गदर आन्दोलन के सूरमाओं ने क्या कहा था? शहीद ए आजम भगत सिंह ने क्या कहा था? जब आरएसएस व हिंदू महासभा द्वारा सन् 1940 के जमाने में मुस्लिमों से बैर दिखा कर दो राष्ट्र की बात की जा रही थी, तब हमारे तमाम राष्ट्रीय महापुरुषों ने जो कहा था उन सब बातों को एक बार फिर लोगों को याद कराना होगा कि धर्म सिर्फ और सिर्फ व्यक्ति का निजी विषय हो। उसे अपने विश्वास को मानने की पूरी आजादी हो। और जो धर्म को नहीं मानता है, उसको भी पूरी आजादी हो। लेकिन सरकारी कार्यों में, शिक्षा में, सामाजिक मामलों में धर्म का कोई सरोकार न हो। धर्म व धार्मिक प्रचार को सरकारी संरक्षण प्राप्त न हो। शिक्षा के माध्यम से सरकार ज्ञान-विज्ञान के प्रचार प्रसार पर जोर दे।
एक बात और समझनी होगी कि भारत की सत्ताधारी पूंजीवादी व्यवस्था शुरू से ही फासीवादी रुझान लिए हुए है। आज साम्राज्यवादियों – पूंजीवादियों ने हर मुल्क में सबसे प्रतिक्रियावादी सरकारों को शासन में बिठाया हुआ है। हमारे देश में भी सबसे निकम्मी प्रतिक्रियावादी सरकार है जो प्रगति का गला घोंट रही है। आजादी के बाद और आजादी से पहले हमारे समाज में, राजनीति में जो कुछ भी उपलब्धि रही थी, उन तमाम उपलब्धियों को वे मिटा रहे हैं। इसके खिलाफ हमें लोहा लेना होगा, संघर्ष करना होगा।
एक बात और कहना चाहता हूं कि यह सिर्फ मार्क्सवाद ही है जो हम क्रांतिकारियों को सिखाता है कि प्रकृति के अंदर क्या द्वंद हैं, उन्हें किस तरह से समझा जाए। हमारे देश में वर्ग विभाजित समाज में जो द्वन्द्व व अंतर्विरोध कार्यरत हैं, उनके चरित्र व स्वरूप को कैसे समझा जाए, इन्सान के मन में भी क्या द्वंद चल रहे हैं, मन के अंतर्द्वंदों को कैसे हल किया जाये, इसे केवल मार्क्सवाद ही समझा सकता है। गलत बात को फाइट आउट करके सही दिशा में कैसे आगे बढ़ा जाये, इसमें मार्क्सवाद-लेनिनवाद को छोड़कर कोई मदद नहीं कर सकता। रूस में अगर समाजवाद कायम हुआ, क्रांति सफल हुई, लेनिन के नेतृत्व में बोलशेविक कम्युनिस्ट पार्टी के आह्वान पर एक महान शक्ति के रूप में रूस के किसान-मजदूर दुनिया की पहली समाजवादी क्रांति कामयाब कर पाये, सोवियत संघ में एक महान समाजवादी समाज की रचना हुई, चीन में क्रांति सफल हुई तो यह सब मार्क्सवाद – लेनिनवाद के आधार पर ही सम्भव हो सका था। इस आधार को प्राथमिकता के साथ चुस्त दुरुस्त करना होगा।
हमारे अपने मुल्क में, सारी दुनिया में, जितने हमले आर्थिक क्षेत्र में हुए हैं, चिंतन के क्षेत्र में मार्क्सवाद पर, कम्युनिज्म पर उससे कम हमले नहीं हुए हैं। इसलिए, मार्क्सवाद के परचम को बुलंद रखने के लिए, मार्क्सवाद की धार को पैना रखने के लिए खुद अपने भीतर सतत व सजग संघर्ष अनिवार्य है। मार्क्सवाद को जानना ही पर्याप्त नहीं है। मार्क्सवाद की समझ व साम्यवादी संस्कृति को आत्मसात करना असल संघर्ष है। तभी शोषण रहित विकल्प दुनिया के निर्माण का, समाजवाद की स्थापना का जो सपना है, उसे अपने देश में साकार किया जा सकता है।
समाजवाद के बारे में शुरू से ही बहुत सारे निन्दा अभियान चलाये जाते रहे हैं। अमेरिका के एक बुद्धिजीवी डायसन कार्टर ने रूस के चप्पा चप्पा को ढूंढा, उसने गलियों की खाक छानी। लेकिन उसे वैसा कुछ भी नहीं मिला जो वह ढ़ूंढने निकला था। आखिर, उसने आंखों देखी सच्चाई को तथ्यों के साथ एक किताब में दर्ज किया। उसने लिखा दुनिया के पूंजीवादी मुल्कों में जो जो भीषण सामाजिक बुराईयां मौजूद हैं, क्रांति के बाद रूस में उनका नामोनिशान मिट गया है। बेरोजगारी रही नहीं। और ताल ठोक कर लिखा कि अरबों-खरबों रुपये, लोभ-लालच का जाल बिछा कर भी किसी महिला की अस्मत का सौदा नहीं कर सकते। समाजवाद ने एक नये समाज, एक नये इंसान का सृजन किया है। किताब का नाम है, “पाप और विज्ञान”।
कामरेड सत्यवान ने कहा कि आज समाजवाद ही दुनिया को रास्ता दिखा सकता है। तमाम समस्याओं से त्राण दिला सकता है। उन्होंने कहा, रविंद्र नाथ टैगोर कोई कम्युनिस्ट नहीं थे, समाजवादी भी नहीं थे। इस देश के एक महान हृदय थे। वे भी रूस देश में गए थे। सन् 1930 में उन्होंने वहां से चिट्ठियां लिखी। चिट्ठियों में क्या लिखा? आप आश्चर्यचकित रह जांयेंगे। यही कि ‘अगर मैं रूस नहीं आता तो एक तीर्थ से वंचित हो जाता।’ और क्या कहा? उन्होंने कहा कि ‘हजारों सालों से मानव जाति की अंतड़ियों में एक खंजर फंसा हुआ था। यह रूस है जिसने उस खंजर को बाहर निकालकर फैंक दिया। वह खंजर था – शोषण का खंजर। युग युग से जो शोषण चल रहा था, उस शोषण का जड़मूल से खात्मा कर दिया।’ महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने समाजवाद की प्रशंसा की थी। रोमां रोला, बर्नार्ड शा जैसी दिग्गज हस्तियों ने खुले हृदय से सोवियत संघ की प्रशंसा की थी। हमारे देश में शहीद ए आजम भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल सभी क्रान्तिकारियों ने लेनिन व बोलशेविकों से प्रेरणा ली थी। राम प्रसाद बिस्मिल ने फांसी से पहले अपनी जेल डायरी में लिखा था कि फ्रांस व अमेरिका के अंदर जो क्रांतियां हुई थी, उनसे शोषण का खात्मा नहीं हुआ था। पूंजी वालों ने कब्जा कर लिया। लेकिन बोलशेविकों ने वह गलती नहीं की। एक मुहूर्त में, पहले उन्होंने राजा को भगाया और बिना ठहरे दूसरे मुहूर्त में, लगते हाथ राजाओं के बाद देश में कायम हुई पूंजीपतियों की नई सत्ता को उखाड़ फैंक कर क्रांति सफल कर समाजवाद का निर्माण किया।
देश की मेहनतकश जनता को आज नये सिरे से सजग, संगठित कर आन्दोलनों की ओर मोड़ना है। कामरेड सत्यवान ने याद दिलाया कि इतना बड़ा विजयी किसान आन्दोलन होगा, यह शायद ही लोगों की कल्पना में रहा हो। यह आंदोलन हम सब के सामने हुआ। आप सब गवाह हैं। आप भी शामिल रहे हैं। इसी तरह, इस आंदोलन के बाद हरियाणा में आंगनवाड़ी कर्मियों का आंदोलन हुआ। स्कीम वर्करों ने
तमाम बाधाओं का सामना कर 4 महीने लगातार सफल हड़ताल कर जीत हासिल की।
यह एक नया मोड़ है, किसान मजदूर एकता की चाह का मोड़ है। सीपीआई की शीर्ष नेत्री कामरेड अमरजीत कौर जी यहाँ हैं। आप श्रमिक आन्दोलन की भी बड़ी नेत्री हैं। हमें विश्वास है कि किसान आंदोलन की तरह ट्रेड यूनियनें भी बड़े आंदोलनों की तैयारी करेंगी। उन्होंने आपके सामने यह बात रखी भी है। मेरा विश्वास है कि एक बड़ा आंदोलन आने वाला है। छात्र ऐसे ही चुपचाप सहन नहीं करेंगे। अग्निपथ को लेकर जो नौजवान उठे हैं, वे ऐसे ही शांत नहीं हो जायेंगे। यह आंदोलन फिर उठेगा। छात्र आंदोलन में आएंगे। युवा आंदोलन में आएंगे। महिलाएं भी पीछे नहीं रहेंगी। कदम कदम करके आंदोलन उठेंगे। एक इंटीग्रेटेड, एक समग्र आंदोलन इन सब आंदोलनों को मिलाकर दस्तक देगा। समाजवाद के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
मुझे विश्वास है आप अपने पार्टी राज्य सम्मेलन में इन सभी मुद्दों पर चर्चा करेंगे और देश के अंदर एक वाम एकता की जरुरत को महसूस करेंगे। शोषणमुक्त समाज का सपना एक दिन जरूर साकार होगा। इसी दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है। सीपीआई के राज्य सचिव कामरेड दरियाव सिंह जी ने आमंत्रित कर आज मुझे यहां बोलने का मौका दिया है, इसका मैं तहेदिल आभार प्रकट करता हूँ। आपका 17वां पार्टी राज्य सम्मेलन अपने वांछित उद्देश्य में सफल हो, इसकी शुभकामनाओं के साथ आपको क्रांतिकारी बधाई देते हुए मैं अपना वक्तव्य समाप्त करता हूँ।
इन्कलाब जिंदाबाद!
मार्क्सवाद – लेनिनवाद जिंदाबाद!!