अच्छा भी है आदमी और बुरा भी है आदमी
कोयला कोई तो कोई सोने सा खरा है आदमी
भूलकर रिश्ते सगे, पैसे से रखता रिश्ता आदमी
आदमी ही है शैतान और फरिश्ता है आदमी
कोई चला रहा है हुक्म बन के राजा आदमी
हुक्म के आगे झुका रहा है कोई सिर आदमी
बेच रहा है कोई चिल्ला चिल्ला भाजी आदमी
और कोई फैसले सुना रहा बना काजी आदमी
कोई लिख रहा है आदमी के जुल्म के खिलाफ
और कोई कौड़ियों के भाव बिक रहा है आदमी
कोई हाँक रहा है गधों को वो भी है आदमी
कोई हाँकता है आदमी को वो गधा भी आदमी
पेड़,जानवर, परिंदों की न कोई जात न धर्म है
जात धर्म मजहब के चक्रव्यूह में फंसा है आदमी
✍️ अकरम ‘आज़ाद’