आप ऐसे समय पर इस दुनिया को अलविदा कह गए, जब आपकी बहुत जरूरत थी, ख़ासकर पत्रकारिता जगत को।
हालांकि मैं आपको कुछ साल से ही जानता हूं, लेकिन ऐसा नहीं लगता। क्योंकि थोड़े ही समय में हमें आपसे बहुत कुछ सीखने को मिला।
2014 से मैं एनडीटीवी इंडिया देख रहा हूं, जबसे मैं दिल्ली में रह रहा हूं। इसके पहले घर में टीवी पर मेरे पत्नी और बच्चों का कब्जा रहता था। दिल्ली में मैं अकेले रहकर आफिस जाने के पूर्व और शाम को आफिस आने के बाद से सोने तक एनडीटीवी इंडिया देखता रहा।
मैंने बहुत कम समय में आपसे बहुत कुछ सीखा, सौभाग्यशाली वे हैं, जो आपको बरसों से देखते रहे हैं।
आप वास्तव में “क़माल” के थे। आपकी रिपोर्टिंग में वह ताकत थी, जो हकीकत को कम से कम शब्दों में रू-ब-रू कराता था। अब वह ताकत हमें कभी देखने को नहीं मिलेगी।
आज सुबह जैसे ही एनडीटीवी इंडिया में ख़बर शुरू हुई,
आपकी विदाई की,
विश्वास नहीं हो रहा था, जुदाई की।
आंखें भर आईं, गला रूंध गया,
एक टक नजरें टिक गई टीवी पर।
क्षण भर को लगा कि झूठी खबर है,
लेकिन विश्वसनीय चैनल देखकर विश्वास करना पड़ा।
हे मुसाफ़िर!
थोड़े ही दिन और रुक जाते तो मेरी भी आपसे मिलने की हसरत पूरी हो जाती।
अब वह कभी नहीं हो पूरी पायेगी, कभी नहीं।
आपको क्या पता आपके जाने के बाद न जाने कितने गमगीन हुए।
आपके साथ वक्त गुजारे मित्रों के आंसू नहीं थम रहे।
आप हमारे यादों में सदैव बने रहेंगे। आपकी कृतित्व से हमें सीख मिलती रहेगी।
“सत्ता चिन्तन” परिवार आपको शत् शत् नमन एवं आश्रूपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
परिवार जनों को सांत्वना।
पुनः
अलविदा कलाम!
सलाम क़माल!!
जे. एल. ज्वलन्त चौरसिया
प्रधान सम्पादक,
सत्ता चिन्तन साप्ताहिक एवं
www.sattachintan.com