- वैश्विक संस्थानों के रिसर्च के अनुसार, छोटे बच्चों में कोरोना का जोखिम कम, डीडीएमए की बैठक में स्कूलों को खोलने की करेंगे सिफारिश- मनीष सिसोदिया
- कोरोना के कारण बच्चों में आए लर्निंग गैप को खत्म करने के साथ-साथ उनके सोशल, इमोशनल, वेल- बींग के लिए स्कूलों का खुलना ज़रूरी- मनीष सिसोदिया
- दो साल से स्कूलों के बंद रहने से बच्चों के सीखने में आया बड़ा गैप, अब स्कूलों को खोलना ज़रूरी, वरना एक पूरी पीढ़ी लर्निंग-गैप के साथ आगे बढ़ेगी- यामिनी अय्यर (प्रेसिडेंट सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च)
- कोरोना पर केंद्रित ‘अति सावधानी’ के दृष्टिकोण से बच्चों को लाभ के बजाय हुआ अधिक नुकसान, लर्निंग-गैप के साथ-साथ मानसिक व भावनात्मक स्वास्थ्य भी हुआ प्रभावित
- भारत दुनिया में एकमात्र ऐसा देश, जहां कोरोना के मामले कम होने के बाद भी घर में ही सिमट कर रह गए हैं बच्चे
नई दिल्ली, 26 जनवरी, 2022
विश्वव्यापी महामारी कोरोना के कारण पिछले 2 सालों से स्कूलों के लगातार बंद होने से न केवल बच्चों की लर्निंग में बहुत बड़ा गैप आया है, बल्कि उन पर मानसिक और भावनात्मक रूप से भी नकारात्मक असर पड़ रहा है। बच्चों के लर्निंग गैप को पाटने और उनके सोशल, इमोशनल, मेंटल वेल-बींग के लिए स्कूलों का खोलना बेहद जरुरी हो गया है। इन बातों के साथ बुधवार को सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च की प्रेसिडेंट व सीईओ यामिनी अय्यर व पब्लिक पालिसी एंड हेल्थ सिस्टम एक्सपर्ट डॉ. चंद्रकांत लहरिया की अध्यक्षता में 4 सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल ने उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को स्कूलों को खोलने को लेकर ऑनलाइन माध्यम से 1600 से अधिक पेरेंट्स द्वारा हस्ताक्षर किया गया ज्ञापन सौंपा।
इस मौके प्रतिनिधि मंडल के सदस्य डॉ.चन्द्रकांत लहरिया ने बताया कि एम्स, आईसीएमआर, इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स, नीति आयोग, यूनिसेफ, डब्लूएचओ सहित विभिन्न संस्थाओं के अनुसार, छोटे बच्चों में कोरोना का जोखिम बहुत कम होता है। उन्होंने कहा कि स्कूलों के बंद होने से लाभ होने से अधिक बच्चों की लर्निंग और मानसिक भावनात्मक स्वास्थ्य की हानि हुई है। इसलिए अब यह बेहद जरुरी है कि स्कूलों को दोबारा से खोल दिया जाए।
सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च की प्रेसिडेंट यामिनी अय्यर ने कहा कि लम्बे समय से स्कूलों से दूर रहने के कारण छोटे बच्चों में काफी बड़ा लर्निंग गैप देखने को मिल रहा है। महामारी के कारण दो साल में यह अंतर काफी बढ़ा है और बच्चों को अब स्कूलों से दूर रखने का मतलब है कि एक पीढ़ी को लर्निंग गैप के साथ आगे बढ़ाना। उन्होंने कहा कि बहुत से रिसर्च में पाया गया है कि बच्चे बेसिक मैथमेटिक्स और लैंग्वेज के फंडामेंटल स्किल्स को भी भूल रहे हैं। इस लर्निंग गैप को पाटने के लिए स्कूलों का खुलना बेहद जरुरी है। स्कूलों में बच्चों के सम्पूर्ण विकास पर ध्यान दिया जाता है, जो घर में रहते हुए ऑनलाइन पढ़ाई के माध्यम से संभव नहीं है।
उपमुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि ऑनलाइन पढ़ाई कभी भी ऑफलाइन पढ़ाई की जगह नहीं ले सकती। पिछले 2 सालों में स्कूली बच्चों की जिन्दगी घर के किसी कमरे तक ही सीमित रह गई है। उनका स्कूल प्लेग्राउंड सब कुछ घर में मोबाइल के अंदर ही सिमट गया है। इस दौरान बच्चों की पढ़ाई का नुकसान तो हुआ ही है, साथ ही उनका मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हुआ है| उन्होंने कहा कि कोरोना के दौरान हमारे लिए बच्चों की सुरक्षा पहली प्राथमिकता थी, लेकिन अब जिस प्रकार से विभिन्न रिसर्च के माध्यम से यह निकल कर आ रहा है कि कोरोना छोटे बच्चों के लिए घातक नहीं है। ऐसे में यह बेहद जरुरी हो गया है कि जल्द से जल्द स्कूलों को खोला जाए, क्योंकि अब यह समय परीक्षाओं व उससे संबंधित तैयारियों का भी है। उन्होंने कहा कि विश्व के कई देशों में और भारत में भी कई राज्यों में अब स्कूलों को खोला जा रहा है। इसके आधार पर हम 27 जनवरी को होने वाली डीडीएमए की बैठक में स्कूलों को खोलने की सिफारिश करेंगे।
डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा कि बच्चों को अब इस स्थिति में स्कूलों से दूर रखना उचित नहीं होगा, जब दिल्ली में कोरोना के मामलों में तेजी से गिरावट देखने को मिल रही है और संक्रमण की दर भी कम हुई है। इसलिए हम डीडीएमए की बैठक में यह मांग करेंगे कि कोरोना संबंधित प्रोटोकॉल का पालन करते हुए हमें स्कूलों को खोलने की अनुमति दी जाए। उन्होंने कहा कि बच्चों के दोबारा स्कूल आने से न केवल स्कूल गुलज़ार होंगे, बल्कि यह उनकी जिंदगी के दोबारा पटरी पर लौटने का संकेत भी होगा।