आप सभी को 75वें गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं के साथ ये भी याद दिलाना चाहूंगा कि ये मात्र कोई “दिवस” छुट्टी या रफी से लगा सोनू निगम तक को सुनने का दिन नहीं, बल्कि इस दिवस का एक “कारण” और एक “अर्थ” भी है…।
भारत के लोग चेतें और यह संकल्प लें कि राजनीति की धारा को सही दिशा में मोड़ना हमारा अपना कर्तव्य है, ऐसा करके ही भारतीय लोकतंत्र को सबल-सक्षम बनाया जा सकता है। जब ऐसा होगा, तभी एक गणतंत्र के रूप में हम अपने असल लक्ष्य की प्राप्ति कर सकेंगे।
एक गणतंत्र के रूप में भारत ने बहुत कुछ अर्जित किया है और समय के साथ संसार में उसकी प्रतिष्ठा भी बढ़ी है, लेकिन इस यथार्थ को भी स्वीकार करना होगा कि इसके साथ ही चुनौतियां भी बढ़ी हैं। चुनौतियां बाह्य भी है और तमाम आंतरिक भी। हम आंतरिक चुनौतियों पर जितनी जल्दी पार पाएंगे, बाहरी चुनौतियों को परास्त करने में उतनी ही आसानी होगी।
चुनौतियों पर विजय पाने का सबसे सरल उपाय यही है कि राष्ट्रीय एकता का भाव लगातार सुदृढ़ होता रहे और इस भावना को बल मिले कि तमाम असहमतियों के बाद भी हम सबका साझा लक्ष्य है “देश को वास्तव में एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करना”।
इस साझा लक्ष्य की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि देश की राजनीतिक संस्कृति विवेकशील बने और वह दायित्व बोध से भी लैस हो। नि:संदेह समय के साथ देश में राजनीतिक चेतना का विस्तार हुआ है और इसके चलते वंचित वर्गों की राजनीति में हिस्सेदारी भी बढ़ी है, लेकिन यह भी एक कटुसत्य है कि हमारी राजनीति में वैचारिक खोखलापन बढ़ने के साथ अल्पकालिक स्वार्थों के लिए देशहित की अनदेखी की प्रवृत्ति भी बढ़ी है, जिसे अब जनता को ही रोकना होगा।
कायदे से तो यह होना चाहिए कि राजनीतिक दल समाज और देश को दिशा देने का काम करें। लेकिन राजनीति की बेढब चाल को देखते हुए अब यह अनिवार्य हो गया है कि यह दायित्व जनता स्वयं अपने ऊपर ले। उसे उन राजनीतिक तौर-तरीकों के खिलाफ खड़ा होना ही होगा, जो न केवल सुशासन में बाधक हैं, बल्कि जिनके चलते हमारे लोकतंत्र में तमाम खामियां घर कर गई हैं।
इन दिनों पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के चलते ये खामियां सतह पर भी दिख रही हैं। न केवल दलबदल का दौर जारी है, बल्कि बड़ी संख्या में आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोग चुनाव मैदान में उतर रहे हैं। इसके अलावा राजनीतिक दल लोगों को लुभाने के लिए अनाप-शनाप दावे, बातें और वादे करने में लगे हुए हैं।
तो आइये, मिलकर कसम लें कि हम अपने निकटवर्ती चुनावों के समय हम अपने मताधिकार द्वारा एक सच्चा गणतांत्रिक लोकतंत्र गठन करने के लिए अपनी ओर से एक ईमानदार प्रयास जरूर करेंगे। ?
-अनुराग बक्षी (पीआरओ, सत्ता चिन्तन)