गोडसे ने गांधी को मारा था, बतख मियां ने गांधी को बचाया था. गोडसे हत्यारा है. बतख मियां गांधी का जीवनदाता है. आप सोच रहे होंगे कि यह बतख मियां कौन है? आइए जानते हैं.
गांधी के जीवन में उन्हें मारने के लिए छह बड़े प्रयास हुए थे. छठवीं बार गांधी के हत्यारे सफल हो गए. इसके अलावा दो प्रयास 1917 में बिहार के चंपारण में हुए. इन्हीं में से एक कोशिश को बतख मियां ने नाकाम कर दिया था.
हुआ यूं कि बिहार में नील के किसान शोषण और लूट से परेशान थे. गांधी जी इन किसानों के लिए आंदोलन चला रहे थे. यह गांधी के राजनीतिक जीवन का शुरुआती दौर था. चंपारण सत्याग्रह गांधी के राजनीतिक जीवन और देश के आजादी आंदोलन का अहम पड़ाव है. यही वह आंदोलन था जहां से एक बड़े नेता के रूप में गांधी की पहचान और प्रतिष्ठा बन रही थी.
इसी आंदोलन के क्रम में गांधी मोतिहारी में थे. नील फैक्ट्रियों के मैनेजरों के नेता इरविन ने गांधी को बातचीत के लिए बुलाया था. इस बुलावे के दौरान इरविन ने गांधी की हत्या की योजना बनाई. इरविन का प्लान था कि गांधी को खाने में कोई ऐसा जहर दिया जाए तो कुछ देर से असर करे, ताकि गांधी वहां से चले जाएं तब उनकी मौत हो. इससे गांधी की हत्या का इल्जाम उसके सिर नहीं आएगा. इरविन की योजना थी कि अगर यह आदमी मर जाएगा तो अंग्रेजों की राह आसान हो जाएगी.
इरविन के यहां घरेलू नौकर का काम करते थे बतख मियां अंसारी. मियां को यह बात बताई गई. उन्हें पूरी योजना समझाई गई और उनसे कहा गया कि तुम खाने की प्लेट लेकर गांधी के पास जाओगे. बतख मियां को इसके लिए लालच भी दिया गया और धमकी भी.
बतख़ मियां गरीब आदमी थे. उनका छोटा सा परिवार था. वे इरविन के यहां नौकरी करके अपना परिवार पालते थे. बतख मियां मालिक का आदेश मानने से इनकार नहीं कर पाए. जब गांधी आए तो बतख मियां खाने की प्लेट लेकर गांधी के सामने पहुंचे.
लेकिन जब बतख मियां गांधी के पास पहुंचे तो यह पाप करने की उनकी हिम्मत नहीं हुई कि वे खाने की प्लेट गांधी के सामने रख दें. वे ठिठक गए. गांधी ने उन्हें सिर उठाकर देखा तो बतख मियां रोने लगे.
उनको रोता देखकर गांधी ने पूछा कि क्या हुआ. बतख मियां ने सारी योजना का खुलासा कर दिया. इस तरह इरविन की योजना नाकाम हो गई.
अंगरेज बहादुर को यह बात कैसे बर्दाश्त होती. बतख मियां को जेल में डाल दिया गया. उनका घर ध्वस्त करके वहां पर कब्रिस्तान बना दिया गया. उनकी थोड़ी सी जमीन को नीलाम कर दिया गया. उनके परिवार पर जुल्म हुआ और परिवार बर्बाद हो गया. बतख मियां ने गांधी को बचाने की भारी कीमत चुकाई.
बतख मियां गरीब आदमी थे लेकिन माफी मांगने की जगह 17 साल की जिंदगी जेल में बिताई. 1917 में बतख मियां ने गांधी को बचा लिया था, 1948 में गोडसे ने उनकी हत्या कर दी.
बताते हैं कि इस घटना के समय गांधी के साथ डॉ राजेंद्र प्रसाद भी मौजूद थे जो आजादी के बाद देश के पहले राष्ट्रपति बने.
1957 में राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद मोतिहारी गए. वे वहां एक सभा को संबोधित कर रहे थे तभी उन्हें लगा कि सामने भीड़ में एक व्यक्ति आगे आने के लिए संघर्ष कर रहा है और वे उसे जानते हैं. उन्होंने उस व्यक्ति को आवाज दी- बतख भाई, कैसे हो? उन्होंने बतख मियां को मंच पर बुलाया, गले लगाया और जनसभा में मौजूद लोगों को गांधी की हत्या की साजिश नाकाम करने का किस्सा सुनाया.
सभा खत्म हुई राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद बतख मियां को अपने साथ ले गए. बतख मियां ने अपनी बर्बादी का किस्सा उन्हें सुनाया. राजेंद्र प्रसाद ने बतख मियां के बेटे जान मियां को कुछ दिन राष्ट्रपति भवन में भी रखा था. उन्होंने यह भी आदेश दिया था कि बतख मियां के परिवार को 35 एकड़ जमीन मुहैया कराई जाए, लेकिन कहते हैं कि इस पर कभी अमल नहीं हो पाया.
नमन!