यू.पी. विधानसभा चुनाव-2022

दैनिक समाचार

अपील

यू.पी. विधानसभा चुनाव 403 सीटों पर 10 फरवरी से शुरू होकर 07 मार्च को समाप्त होगा। इस चुनाव में भाजपा के साथ अपना दल व निषाद पार्टी तथा सपा के साथ रालोद, सुभासपा एवं ए.आई.एम.आई. एम. जनअधिकार पार्टी, बहुजन मुक्ति पार्टी, महान समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी, जनता दल यूनाइटेड, वामपंथी पार्टियां एवं बसपा व कांग्रेस पार्टी चुनाव में अपने अपने प्रत्याशी उतारे हैं। इनमें जनसाधारण को अपना प्रतिनिधि चुनना है जो चुनाव जीतकर प्रदेश सरकार बनायेंगे व चलायेंगे। वे सरकार बनाये तो जनसाधारण के हितों में काम करें? कौन काम करेगा? कौन जनसाधारण के हितों के विरुद्ध काम करेगा? या यह मान लिया जाये कि चलो जब कोई जनसाधारण का हितैषी नहीं है, तब अपने जाति धर्म के प्रत्याशी को ही जिताया जाये! यही 30 / 32 सालों से होता आ रहा है। परिणाम आप जनसाधारण के सामने बेतहाशा बढ़ती मँहगाई, बेकारी और गरीबी के रूप में आ रहा है। तब, आज पुनः जनसाधारण को विचार करने का मौका है कि वह किसे वोट दें?! और किसे वोट न दें?!!

कोरोना महामारी के कारण चुनावी रैलियों व सभाओं पर प्रतिबन्ध लगा हुआ है। नेतागण दरवाजे दरवाजे जाकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। लेकिन असल प्रचार इनके प्रचार माध्यम टी.वी. अखबारों, पर्चे व सोशल मीडिया से हो रहे हैं। इन प्रचार माध्यमों के मालिक देशी विदेशी पूंजीपति हैं। सुनते हैं कि प्रचार माध्यमों पर सत्तारूढ़ पार्टियों खासकर भाजपा का कब्जा है इसलिए टी.वी., अखबारें भाजपा के पक्ष में माहौल तैयार कर रही हैं। इन सत्ताधारी दलों को पूंजीपति चन्दे देते हैं जिनके चन्दे से ये चुनावों में बड़ी-बड़ी रैलियां, सभाएं, रोड शो करते हैं। मीडिया को धन देकर अपने पक्ष में प्रचार करवाते हैं। और हवाई जहाजों व हेलीकाप्टरों से दिन-रात उडते हुये जनसाधारण में उतरते हैं। चुनाव भर इतना आते-जाते हैं कि जनसाधारण को अपना करीबी लगने लगते हैं, जबकि दरअसल ये नेता जिनके पूंजी पैसे से जनसाधारण में उतारे जाते हैं सत्ता में जाकर उन्हीं के काम करते हैं और करेंगे भी। तब, जनसाधारण 5 साल तक केवल पानी पी-पी कर गालियाँ देती रहे; अपने भाग्य कोसती रहे; अथवा वह किसे चुनेगी? विचार करे!

पहले, सत्तारूढ़ भाजपा को देखें- इसके दावे / वादे हैं किसानों की आमदनी दोगुना करना, गन्ना किसानों का बकाया भुगतान करना, किसानों के कर्ज माफ करना, गरीबों को सस्ता राशन, आवास, शौचालय देना, श्रमकार्ड धारक मजदूरों को 500 रु महीना और किसानों को 6 हजार सालाना पैसे देना। गरीबों को दिये इस दान दक्षिणा के अलावा प्रदेश में विकास हेतु अमीरों के लिये पूंजी निवेश आकर्षित करना और ढाँचागत विकास जैसे सड़के, हवाई अड्डे आदि बनवाना। स्वच्छ प्रशासन देना, गुण्डाराज खत्म कर देना। अयोध्या राम मन्दिर तथा काशी विश्वनाथ मन्दिर कारिडोर का निर्माण व विकास करके पर्यटन स्थल बनाना आदि आदि काम करने के इनके दावे-वादे हैं। भाजपा प्रदेश की 80. प्रतिशत बनाम 20 प्रतिशत के मुद्दे उठा रही है और हिन्दुओं की भलाई के दावे कर रही है। इन तमाम दावों/ वादों के विपरीत सच्चाई आप जनसाधारण के सामने है। खाने-पीने पहनने ओढ़ने व मकान बनाने के सामानों की बढ़ती मँहगाई से गरीबों का पेट पर्दा चलना दुश्वार है ऊपर से किसी क्षेत्र में काम धन्धा अच्छा नहीं चल रहा है, मन्दी है। बेरोजगारी बेकारी फैली हुई है। मान लें कि मजदूरों को 500 रु महीना और सस्ता राशन मिल भी जाय तो महीने भर उनका चूल्हा जल पायेगा? जबकि 1000/रु. गैस है, बाकी खर्चे? किसानों की खेती के लागत के सामान बिजली 175 रु. प्रति हार्स पावर और डीजल 90/100रु प्रति लीटर, खाद, बीज, कीटनाशक, कृषियंत्रों की कीमतें इतनी ज्यादा बढ़ गयी हैं कि ‘किसान सम्मान निधि’ सालाना 6000 रु. से सिंचाई का दाम भी नहीं निकल सकता। जुताई, बुवाई, निराई, कटाई, मड़ाई आदि खर्चे के तले किसान कराह रहा है। ऐसी ही समस्याएं अन्य मेहनतकश वर्गों के सामने भी हैं। सवाल फिर खड़ा है कि इन्हें हल कर पाने में भाजपा नाकारा साबित हो चुकी है तो कौन सा दल है जो इन समस्याओं को हल करने के दावे वादे करता है?

दूसरे दल सपा और उसके गठबंधन में किसानों को सिंचाई हेतु की बिजली तथा सभी उपयोकाओं को 300 यूनिट को बिजली देने, सभी फसलों पर एम. एस.पी. देने, किसानों का कर्ज माफ करने एवं एस.के.एम. द्वारा बढ़ाई गई सभी मांगों को पूरा करने, छात्रों को लैपटॉप, कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल करने के दावे, चादे किया है। साथ ही वह पी जातियों को सामाजिक न्याय देने 85/15 के आधार पर जातिवादी व मुसलिम लिंग धर्मवादी गोलबन्दी खड़ी करने के प्रयास कर रही है। वहीं बसपा ने अपनी पुरानी शोसल इन्जीनियरिंग के आधार पर दलितों, मुसलमानों व ब्राह्मणों के वोट पाने हेतु जातिवादी आधार पर खड़ी गोलबन्दी का फायदा चाहती है। चौथा दल कांग्रेस बिजली बिल हाफ, किसानों के कर्ज माफ 20 लाख सरकारी नौकरियों में भर्तिया, आँगनबाड़ी व आशामित्रों के मानदेय में बढ़ोत्तरी, पुरानी पेंशन बहाली, महिलाओं को नौकरियों से लेकर विधानसभा सीटों तक पर 40 प्रतिशत आरक्षण देने। छात्राओं को स्कूटी स्मार्टफोन के वादे कर रही है। परन्तु इन सभी मुद्दों के अलावा महिलाओं में सबसे ज्यादा जोर व जोश भरते व • लिंगवादी राजनीतिक खड़ी करने का प्रयास कर रही है। इसके अलावा छोटे-छोटे दल विभिन्न जातियों के जातिवाद क ए.आई.एम.आई.एम. मुस्लिमवादी-धर्मवादी दल के रूप में खड़े हैं।

सभी विपक्षी पार्टियां सत्तासीन भाजपा की तरह ही फ्री बांटने पर ज्यादा जोर दे रही हैं. जैसाकि भाजपा की बांटकर लाभार्थियों के वोट पर हक जताती है लेकिन जनसाधारण की समस्याएं कम नहीं हुई बढ़ गई है। कारण? ये दल जिनसे चन्द्रे व नोट लिये होते हैं उनके लिये दावे नहीं करते, बल्कि इन्हें झूठ सच्च दावे / वादे उस बहुसंख्यक जनता से करने पड़ते हैं जिनसे वोट लेने होते हैं। इसलिए सत्ता सरकार में जाते ही ये दल अपने दावे / वादे दरकिनार करके उन अमीर वर्गों पूंजीपतियों के काम करते हैं जिनसे चुनावी खर्चे व नोट लिये रहते हैं। उदाहरणार्थ- मान लें, आपको बिजली फ्री देते हैं तो उतना पैसा बिजली कम्पनियों को सरकार देगी या उनके कर्जे माफ करती है तो सरकार बैंकों को पैसे देती है। इस प्रकार फ्री पाने का बोझा सरकार पर पड़ता है और बिजली कम्पनियों व बैंकों के मालिकान अपना लाभ सूद सहित पा जाते हैं परन्तु सरकार इस खर्चे का बोझा उठाने हेतु मान लें, जनता पर 2 रु. टैक्स लगा दे तो पूंजीपति 4 रू माल पर अपना लाभ बढ़ा लेता है और जनता को अगर कोई एक चीज फ्री मिली तो दूसरी चीजें महंगी हो जाती हैं। यानी फिर वैतलवा (मतदाता) डार के डार ही!! आप भी सोचेंगे कि इस शिकन्जे से निकलने का आखिर तरीका क्या है? केवल एकमात्र तरीका है कि जनसाधारण के आम उपभोग के सामान और खेती व दस्तकारी में प्रयोग होने वाले कच्चे माल व मशीने खाद, पानी, ऊर्जा, परिवहन, कर्जे पर सूद दरें सबकी मूल्य वृद्धियों पर प्रतिबन्ध लगाये जायें। सब सामानों पर सरकार टैक्स हटा ले और इस घाटे की पूर्ति हेतु देशी-विदेशी पूंजीपतियों व व्यापारियों पर कर टैक्स बढ़ा दे। यह काम इसलिए भी आवश्यक है कि इससे गरीबी कम हो जायेगी और गरीबों/ अमीरों के बीच बढ़ती असमानता व संघर्ष में कमी आयेगी, कानून व शान्ति व्यवस्था बहाल हो जायेगी परन्तु यदि ये दल सत्ता में पहुँचकर पूंजीपतियों के पक्ष में कानून व नीतियों बनाते हैं। उन पर लगे कर टैक्स कम करते हैं तथा उनके कर्जे व टैक्स माफ कर देते हैं। साथ ही जनसाधारण पर टैक्स कर बढ़ा देते हैं और विपक्षी पार्टियां चिल्लाती है कि पूंजीपतियों को फायदा पहुंचा रहे हैं। ऐसी विपक्षी पार्टियों से जनसाधारण को सवाल पूछना चाहिए कि आप सत्ता सरकार में जब थे तब क्या पूंजीपतियों पर प्रतिबन्ध लगाये थे? अथवा सत्ता मे जाकर अब लगायेंगे? क्या उनपर टैक्स बढ़ाकर इकट्ठा किया सरकारी खजाने को किसानों, मजदूरों की मंहगाई, बेकारी, शिक्षा, स्वास्थ्य की समस्यायें हल करने पर खर्चा करेंगे? जनसाधारण जाति / धर्म की राजनीतिक गोलबन्दियों में बँट चुका है मान लें, यह सवाल वह नहीं खड़ा कर पाता है तो क्या खुद दिपक्षी पार्टियों को यह वादा नहीं करना चाहिए कि सत्ता में जाने के बाद वह पूंजीपतियों बड़े व्यापारियों पर अमुक अनुक प्रतिबन्ध लगायेंगे। यदि विपक्षी पार्टियां ऐसा नहीं कर रही है तो जनसाधारण को समझ लेना चाहिए कि उनकी भलाई की डींगे भरने वाली विपक्षी पार्टियां भी धोखेबाज व अवसरवादी व झूठी है। क्योंकि अमीर वर्गों का विरोध किये बगैर गरीब वर्गों की भलाई आज सम्भव ही नहीं है और कोई दल एक साथ सभी वर्गों की भलाई कर ही नहीं सकता।

दूसरी बात, उ.प्र को सामाजिक आर्थिक दृष्टि से देखें तो कृषि एवं उद्योग दोनों ही उत्पादन क्षेत्रों में पिछड़ा हुआ प्रदेश है। देश में कृषि के मामले में पंजाब व हरियाणा का विकास हुआ है तो औद्योगिक क्षेत्र में कर्नाटक, तमिलनाडु बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र विकसित हैं उ.प्र. बिहार आदि पिछड़े प्रान्त हैं। अंग्रेजों की गुलामी काल में उनके 150 साला विकास के परिणाम स्वरूप ही यह बँटवारा उमर चुका था। आजादी के 75 साल बाद इतना विकास होने के बावजूद भी देश में वही बैटवारा वही असमानता और गहरी होती जा रही है। यह कैसा विकास है, जिसमें अमीर वर्ग व विकसित प्रान्त और ज्यादा अमीर व विकसित तथा गरीब वर्ग व पिछडे प्रान्त और ज्यादा गरीब व पिछड़े होते जा रहे हैं। कारण उप्र में 1980/95 तक जो गन्ना मिलें लगी थी उन्हें उखाड़कर महाराष्ट्र भेज दिया गया। पश्चिमी यू.पी. से पूर्वी यूपी ज्यादा पिछड़ा है दिल्ली से सटे नोयडा में कल-कारखाने लगे हैं। पूर्वांचल के आजमगढ़-मऊ में गन्ना मिल, कताई, मिल, वस्त्र उद्योग, पावर लूम लगे थे जो बन्द कर दिये गये। नये कारखाने नहीं लगे हैं। यही हाल समूचे पूर्वाचल की है। रोजी-रोटी के लिए यू.पी. का किसान व मजदूर का बेटा अपनी क्षमतानुसार पढ़-लिखकर जैसे ही जवान होता है वैसे वहीं नौकरी व रोजगार करने बाहर गुजरात, महाराष्ट्र जैसे विकसित प्रान्तों, नगरों को पलायन कर जाता है। प्रदेश की 60 / 70 प्रतिशत ऐसी ही मजदूर किसान गरीब आबादी है। बकिया ग्रामीण व शहरी मध्यम व निम्न मध्यम वर्गीय, नौकरी पेशे-क्लर्क, अध्यापक, डाक्टर व वकील, दूकानदार, मिस्त्री, दस्तकार, सेल्समैन, ठेले, खोमचे पर काम करने वाली आबादी है। 5-10 प्रतिशत धन्नाढ्य व्यापारी, उद्योग व सेवाओं के पूंजीपति मालिक है। दुर्भाग्य यह कि इन पिछड़े इलाके के लोगों की जवानी इस इलाके के काम नहीं आती वैसे ही इन इलाकों की पैदावार बेहतरीन चावल, चीनी, आलू गोस्त, मछली, अण्डे, दूध, चमड़े, फल, फूल, सब्जियां आदि आदि कृषि पैदावारों के अलावा लघु व कुटीर उद्योगों के बने माल सामान कालीन, गलीचे, साड़ियाँ बर्तन आदि विदेशों खासकर अमरीका इंग्लैण्ड आदि साम्राज्यवादी देशों को सस्ते रेट पर निर्यात हो जाते हैं जो उनकी जरूरतों अनुसार इन इलाकों में पैदा करवाये जाते हैं जैसे कि आज मछली, मुर्गी, बत्तख, सुअर, बकरी पालन के लिए और दुग्ध उत्पादन हेतु गाय, भैंस पालन को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। साथ ही मोनसेंटों, कारगिल, वालमार्ट जैसी साम्राज्यवादी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को कृषि व ग्रामीण क्षेत्रों एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में उत्पादन से लेकर व्यापार करने तक में छूटे सुविधायें दिया जा रहा है। जिससे देशी-विदेशी पूंजीपतियों की लूट-पाट एवं लाभखोरी से दौलत बढ़ती जा रही है। इन्हें सत्ताधारी सभी दल 30/32 सालों से छूट देते आ रहे हैं ग्रामीण इलाकों के बने माल सामान सड़कों रेलों से होता हुआ बड़े-बड़े शहरों नगरों को जाये और उन नगरों उद्योगों का बना माल सामान गाँवों तक आये और विदेशों तक जाये इसके लिए सड़कों रेलॉ, बन्दरगाहों का विकास किया करवाया जाता है। ये विकास कार्य सभी सत्ताधारी दल सपा, बसपा, भाजपा 30/ 32 सालों से इस प्रदेश में कर रही हैं। इसका ताजा सबूत अखबारी सूचना अनुसार भारत में अमीरों की संख्या 102 अरबपतियों से बढ़कर पिछले एक साल में अरबपतियों की संख्या 142 हो गई है टाटा, बिड़ला, अम्बानी की दौलत सम्पत्तियों के साथ विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की पूंजी व परिसम्पत्तियों में इजाफा हुआ है वहीं गरीबी बढ़कर दो गुना हो गई है। तब सवाल विकास का नहीं है सवाल यह है कि इस विकास में जन साधारण कहां है? इस प्रदेश की पैदावार सस्ते में लूटकर विदेशों में भेजकर बहुराष्ट्रीय कं. और देशी पूंजीपति लाभ कमायें खुद तो मालामाल हो और मेहनतकश जनसाधारण खुद पैदा करके खाने, पाने को मुहताज रहें। गरीबी, मंहगाई झेले, कमा-खिलाकर हम नौजवान पैदा कर दें उन्हें सस्ते में 10/15 हजार महीना पर खटना पड़े या बेकारी व बेरोजगारी झेलें और यदि कभी अपनी दुर्दशा के लिए आवाज उठायें तो लाठी-डण्डे खायें। क्या यही जनतंत्र है?

प्रदेश में बढ़ती असमानताएं अमीरी-गरीबी के बीच चौड़ी होती खाई, भ्रष्टाचार, बलात्कार, अपराध, दंगे फसाद, मंहगाई, बेकारी की बढ़ती समस्याओं ने प्रदेश में जनतंत्र को फेल कर दिया है इसीलिए इन जनसमस्याओं को प्रमुख मुद्दा बनने से रोका जा रहा है। इसके लिए पूंजीवादी राजनीतिक दल भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस आदि जातिवादी, धर्मवादी, लिंगवादी गैर जनतांत्रिक मुद्दों को प्रमुखता से उठाते रहे हैं ताकि अमीर वर्गों के खिलाफ खड़ा हो रहा आक्रोश
कम हो जाये और जनसाधारण के मुद्दे दबा दिये जायें। अमीर वर्ग और उसकी अखबारें, टी.वी. पत्र पत्रिकाएं विद्वान, पत्रकार अमीर वर्गों के पूंजीवादी राज को छिपाने के लिए इन्हीं मुद्दों को उठाते हैं और किसी एक राजनेता में उनकी समूची जाति की छवि दिखाते हैं। जैसे, मौजूदा प्रदेश सरकार को क्षत्रियों का राज बताना वैसे ही बसपा के शासनकाल को हरिजनों, दलितों का राज और सपा के काल को यादवों का राज बताना समझाना और उसी जातिय छवि वाले नेता के पीछे समूची जाति का राजनीतिक जातिवाद में इस्तेमाल कर लेना। इसलिए जनसाधारण को इनका विरोध करते हुये इनसे पूछना चाहिए कि बहुसंख्यक 60-70 प्रतिशत किसान मजदूर क्षत्रियों, ब्राह्मणों के लिए भाजपा ने क्या किया? अथवा पिछड़ी जातियों व मुसलमानों की 70/80 प्रतिशत गरीब किसानों, दस्तकारों के लिए सपा ने क्या किया? साथ ही क्या दलितों हरिजनों की 80/90 प्रतिशत कमकर आबादी का भला हो गया? कई-कई बार इन्हीं दलों के इतने सालों तक राज करने के बाद भी मंहगाई, बेकारी, शिक्षा, सवास्थ्य की समस्याएं क्यों हल नहीं हो पाई? चर्चा में आई बातों को ध्यान में रखकर विचार करते हुए अपने प्रतिनिधि चुने। हमारी माँगे और वोट देने के सुझाव

  1. ऐसे पार्टियों एवं प्रत्याशियों को वोट न दें जो जाति, धर्म, इलाका, भाषा व लिंगवाद की साम्प्रदायिक राजनीतियां करते हैं, उसके आधार पर वोट माँगते हैं। जाति विशेष धर्म या लिंग समुदाय विशेष के विरुद्ध नफरत फैलाते हैं। ऐसे पार्टी व प्रत्याशी को वोट दें जो किसानों की खेती की लागत-बीज, खाद, कीटनाशक, कृषियंत्रों को सस्ता करने, आम उपभोग के सामानों को सस्ता करने पूंजीपतियों, व्यापारियों पर टैक्स बढ़ाने व वसूलने तथा जनसाधारण पर लगने वाले टैक्सों करों को कम करने के दावे वादे करें।
  2. कृषि क्षेत्र को सिंचाई हेतु डीजल व बिजली सस्ती करें। किसानों का कर्जा माफ करें तथा बढ़ती लागत की तुलना में कृषि उत्पादों की कीमत बढ़ाने हेतु और हर फसल पर एम. एस. पी. देने हेतु कानून बनाये। 13. किसानों को समय पर बीज, खाद आदि कृषि में प्रयोग होने वाले सामानों को मुहैया कराये।
  3. यू.पी. खासकर पूर्वी यू.पी. में उद्योग लगवाये, दस्तकारों लघु व कुटीर उद्योगों को उत्पादन व व्यापार में सुविधायें
    उपलब्ध कराये।
  4. पिछड़ी व अगड़ी जातियों की आरक्षण की क्रीमी लेयर सीमा को 8 लाख से घटाकर दो लाख रुपये करने हेतु कानून बनाये ताकि पिछड़ी जातियों व अगड़ी जातियों के गरीबों को सरकारी नौकरी का लाभ मिल सके।
  5. मनरेगा मजदूरों की दिहाड़ी मजदूरी 700/ रु. प्रतिदिन की जावे वहीं असंगठित व संगठित क्षेत्र प्राइवेट मजदूरों की
    10 / 15 हजार महीना से बढ़ाकर मजदूरी कम से कम 25,000/ रु महीना करने का कानून बनाये।
  6. सरकारी एवं प्राइवेट नौकरियों में भर्तियां की जावें ताकि योग्य व सक्षम नौजवानों को रोजगार मिल सके जिसके बेकारी की समस्यायें हल हो।
  7. आवारा पशुओं को किसान शत्रु मानकर उनका स्थाई बन्दोबस्त किया जाय ताकि किसानों की फसलों की बर्बादी न हो और किसान की फसल जानवरों द्वारा बरबाद होने पर उन्हें मुआवजा देना सुनिश्चित करे।

अपीलकर्ता

श्यामनरायन सिंह (सिधारी), ओमप्रकाश सिंह (पासीपुर), जीत नरायन यादव (बद्दोपुर), कृष्णपाल सिंह (भीरपुर), केदारनाथ वर्मा, सियाराम कुशवाहा (कोडर अजमतपुर), विद्यानिधि उपाध्याय (डुबडुगवा),

शेषनाथ राय (डेवड़ा दामोदरपुर) आजमगढ़

सम्पर्क हेतु मो. नं. 9889565546, 9452577375, 9451535817

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