‘Right To Be Forgotten’ क्या है, जिसकी दिल्ली हाईकोर्ट से की गयी मांग

न्यायालयीन प्रकरण

आशुतोष कौशिक ने ‘भूल जाने के अधिकार (Right To Be Forgotten)’  के तहत दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है। टीवी रियेलिटी शो रोडीज 5.0  और बिग बॉस सीजन 2 के विजेता आशुतोष कौशिक द्वारा दायर की गई याचिका सालों पहले उनके शराब पीकर गाड़ी चलाने से जुड़ा है। एक्टर का कहना है कि वह चाहते हैं कि सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से उनके वीडियो और अन्य लिंक हटा दिए जाएं, क्योंकि वह एक सेलिब्रिटी हैं और इससे उनकी प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ को काफी नुकसान हो रहा है।

आखिर क्या है ‘भूल जाने का अधिकार’?

जब व्यक्तिगत जानकारी प्रासंगिक नहीं रह जाती है, तब ‘भूल जाने का अधिकार’ सार्वजनिक रूप से उपलब्ध व्यक्तिगत जानकारी को किसी भी तरह के सर्च, इंटरनेट, डेटाबेस, वेबसाइट तथा अन्य सार्वजनिक प्लेटफॉर्म से हटाने का अधिकार देती हैं। हालांकि, भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है, जो ‘भूल जाने’ का प्रावधान करता है, लेकिन पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2019 इस अधिकार को मान्यता प्रदान करता है।

यूरोप से प्रचलन में आया

वर्ष 2014 के गूगल-स्पेन मामले में यूरोपीय संघ के न्यायालय के द्वारा दिए गए एक निर्णय के बाद ‘भूल जाने का अधिकार’ प्रचलन में आया। इस निर्णय को सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन के तहत यूरोपीय संघ में एक वैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है। इसके अलावा यूनाइटेड किंगडम और यूरोप में कई न्यायालयों द्वारा इसे बरकरार रखा गया है।

भारत में वर्तमान स्थिति

भारत में ‘भूल जाने का अधिकार’ व्यक्ति के निजता के अधिकार के दायरे में आता है, जिसे व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 द्वारा विनियमित किया जाता है। पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2019 की धारा 20 में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को कुछ शर्तों के तहत अपने व्यक्तिगत डेटा के प्रकटीकरण को प्रतिबंधित करने या रोकने का अधिकार है। हालांकि यह बिल अभी कानून नहीं बना है। इसके अलावा वर्ष 2017 के पुट्टस्वामी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक निर्णय देते हुए ‘निजता के अधिकार’  को मौलिक अधिकार घोषित किया था। न्यायालय ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट किया था कि “निजता का अधिकार अनुच्छेद-21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक हिस्से के रूप में भारतीय संविधान के भाग-III  में संरक्षित है।” वहीं ओडिशा हाई कोर्ट भारत की पहली ऐसी संवैधानिक अदालत है, जिसने पिछले साल एक सुनवाई के दौरान भारतीय नागरिकों को भी यह अधिकार प्रदान करने की जरूरत बताई थी।

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