जर्मनी-फ्रांस के नेताओं ने भी कल शी चिनफिंग से बात कर मसला सुलझाने की कोशिश की.
सऊदी अरब व UAE ने भी मध्यस्थता के प्रयास किये हैं.
फिर मसला कहां अटका हुआ है?
मसला अटका है अमरीकी-ब्रिटिश साम्राज्यवाद की जिद में, कि उक्रेन को रूस के लिए एक नया अफगानिस्तान बनाना है!
एक तरफ से अमरीकी दम भर रहे हैं कि वे खुद युद्ध में शामिल हुए बगैर उक्रेनियों के खून की आखिरी बूंद तक रूस से लडेंगे;
कल अमरीकियों और पोलैंड में इसी वजह से बड़ा नाटक हुआ. अमरीकी पोलैंड पर दबाव डालते रहे कि वो अपने मिग-29 लडाकू जहाज उक्रेन को दे दे.
मगर पोलैंड ने कहा कि वो अपने जहाज नाटो को सौंप देगा. नाटो उन्हें उक्रेन को दे दे!
मगर जर्मनी सहित सभी देशों ने अपने हवाई अड्डों से इन्हें उक्रेन भेजने से मना कर दिया!
अर्थात अमरीका, ब्रिटिश साम्राज्यवादी गिरोह को रूस की आर्थिक बरबादी तक लडना भी है मगर उक्रेन-पोलैंड जैसे देशों का ‘बलिदान’ देकर, खुद दूर खडे रहकर तमाशा देखना है!
जेलेंस्की ने अपने आपको इस गिरोह की कठपुतली बनने देकर, अपने देश और उसकी जनता को इनके हितों के लिए विध्वंस के दांव पर लगा दिया है और अब वह चाहते हुए भी बात करने में सक्षम नहीं है!
नाटो के पैसे व हथियारों के बल पर उक्रेन में खडे किये गए अजोव व राइट सेक्टर जैसे “नाजी गिरोह” इतने ताकतवर व खूंखार हैं कि रूस-उक्रेन वार्ता के पहले दौर में 5 सदस्यीय उक्रेनी प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य की वार्ता के बाद हत्या कर दी गई, क्योंकि वह वार्ता से युद्ध समाप्त करने का पक्षधर था!
इसी तरह मार्यूपोल में एक वरिष्ठ उक्रेनी सैन्य अफसर की हत्या इसलिए कर दी गई कि वह नागरिकों को निकलने का रास्ता देने के पक्ष में था!
कुल मिलाकर अपने प्रभाव क्षेत्रों में दुनिया के बंटवारे की अमरीकी व रूसी साम्राज्यवाद की आपसी लडाई में, उक्रेनी जनता बुरी तरह पिस रही है!
भारत सहित समस्त विश्व की मेहनतकश जनता को इस बात से सीख सावधान रहना होगा कि वे साम्राज्यवादी खेमों की बढती होड में अपने देशों को जंग का अखाड़ा न बनने दें.
—-Mukesh Aseem