16 मार्च 2022
संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चला ऐतिहासिक आंदोलन अपने पहले चरण में कामयाबी हासिल कर अब दूसरे चरण में प्रवेश कर रहा है। तीन काले कानूनों को रद्द करवाने के बाद अब एमएसपी की कानूनी गारंटी हासिल करने के लिए, खेती के कॉर्पोरेट कब्जे के खिलाफ और किसानों की बाकी दीर्घकालिक समस्याओं के समाधान के लिए आंदोलन का नया दौर शुरू हो चुका है। इस दौर में सरकारों का किसान विरोधी रुख और भी खुल-कर सामने आ रहा है। लखीमपुर खीरी में किसानों के हत्यारों को बचाने और बेकसूर किसानों को फंसाने का षड्यंत्र जारी है, केंद्र सरकार 9 दिसंबर को किसानों से किए अपने वादों से मुकर रही है और पिछले दरवाजे से किसान विरोधी कानूनों और समझौतो को लादने की कोशिश की जा रही है। ऐसे में बेहद जरूरी है कि किसान आंदोलन पहले से भी ज्यादा मजबूती और एकता दिखाते हुए इस चुनौती का सामना करे।
ऐसे नाजुक मोड़ पर इस ऐतिहासिक एकता के सामने खड़ी किसी भी चुनौती का सामना करना होगा। संयुक्त किसान मोर्चा की राष्ट्रीय बैठक में 15 जनवरी को आम सहमति से यह फैसला किया गया था कि इन चुनावों में संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़ा जो भी किसान संगठन पार्टी बनाता है या जो नेता चुनाव लड़ता है, वह संयुक्त किसान मोर्चा में नहीं रहेगा। मोर्चे ने यह भी तय किया था कि जरूरत होने पर इस निर्णय की समीक्षा इन विधानसभा चुनावों के बाद अप्रैल माह में की जाएगी।
जाहिर है इस स्पष्ट फैसले के बाद “संयुक्त समाज मोर्चा” और “संयुक्त संघर्ष पार्टी” के नाम से पंजाब में पार्टी बनाने और चुनाव लड़ने वाले किसान संगठन और नेता कम से कम अप्रैल तक संयुक्त किसान मोर्चा से बाहर हो गए थे। मोर्चे की हिदायत और चेतावनी के बावजूद चुनाव लड़ने वाले इन संगठनों को पंजाब के किसानों ने पूरी तरह खारिज कर दिया। मोर्चे की सात सदस्यीय कोऑर्डिनेशन कमेटी ने इस फैसले की समीक्षा का तरीका और मोर्चे के आगामी कार्यक्रम तय करने के लिए 14 मार्च को दिल्ली में गांधी शांति प्रतिष्ठान में सभी संगठनों के प्रतिनिधियों की बैठक बुलाई थी। लेकिन मोर्चे के फैसले का इंतजार किए बिना श्री बलबीर सिंह राजेवाल और गुरनाम सिंह चढूनी के नेतृत्व में “संयुक्त समाज मोर्चा” और “संयुक्त संघर्ष पार्टी” के लोग जबरन मीटिंग स्थल पर पहुंच गए और जोर जबरदस्ती करते हुए मीटिंग हॉल पर कब्जा कर एक समानांतर मीटिंग शुरू कर दी। किसी अप्रिय घटना को टालने के लिए कोऑर्डिनेशन कमेटी ने फैसला किया कि उस के निमंत्रण पर आए देश भर से पहुंचे प्रतिनिधि बाहर खुले लॉन में अपनी मीटिंग करेंगे। आंदोलन तोड़ने पर आमादा लोगों ने मोर्चे की उस मीटिंग में भी विघ्न डालने की कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हो सके। कोऑर्डिनेशन कमिटी के नेतृत्व में संपन्न हुई इस राष्ट्रीय बैठक में मोर्चे के आगामी कार्यक्रम के बारे में निर्णय लिए गए। हालांकि इस प्रकरण से आंदोलन के विरोधियों और गोदी मीडिया को मोर्चे के दोफाड़ होने का दुष्प्रचार करने में बहुत मदद मिली फिर भी मोर्चे की एकता को बनाए रखने के लिए हमने चुप्पी बनाए रखी।
लेकिन हमें यह देख कर बहुत हैरानी हुई कि इन नेताओं ने चंडीगढ़ से श्री बलबीर सिंह राजेवाल के नाम से एक बयान जारी कर मोर्चे की कोऑर्डिनेशन कमिटी की भंग करने और अपने आप को संयुक्त किसान मोर्चा घोषित करने की हास्यास्पद हरकत की है। इस बयान में 21 मार्च को लखीमपुर खेरी में मोर्चे की एक राष्ट्रीय मीटिंग बुलाने का भी जिक्र किया गया है जबकि संयुक्त किसान मोर्चा इस दिन देशभर में इस मुद्दे पर रोष दिवस मनाने का फैसला कर चुका है।
संयुक्त किसान मोर्चा एक बार फिर यह स्पष्ट करता है कि मोर्चे में किसी तरह की कोई फूट नहीं है। बैठक में विघ्न डालने वाले सर्वश्री बलबीर सिंह राजेवाल, गुरनाम सिंह चढूनी सहित “संयुक्त समाज मोर्चा” और “संयुक्त संघर्ष पार्टी” बनाने वाले किसान संगठनों और नेताओं से संयुक्त किसान मोर्चा का कोई संबंध नहीं है। हम अब भी उनसे अपील करते हैं कि वे ऐसी किसी भी हरकत से बाज आए जिससे किसानों की इस ऐतिहासिक एकता को खतरा पहुंचता है। हम सभी किसान संगठनों को आगाह करना चाहते हैं कि 21 मार्च की लखीमपुर खीरी की बैठक में हिस्सा लेने वाले किसी भी संगठन या नेता पर संयुक्त किसान मोर्चा में अनुशासन की कार्यवाही की जाएगी।
किसान एकता जिंदाबाद!