“धार्मिक आस्था और संविधान”

दैनिक समाचार

द्वारा : सुनील भारद्वाज

संस्कृति के लिहाज से एक स्त्री का पुरुष के लिए आदर भाव :
एक मां के रूप में तेरी लम्बी उम्र के लिए खमर छठ व्रत रखा,
एक बहन के रूप में तेरी लम्बी उम्र के लिए भाई दूज का व्रत रखा और रक्षा सूत्र बांधे,
एक पत्नी के रूप में उसने तेरी लम्बी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखा, परंतु एक पुरुष ने क्या किया एक स्त्री को जिन्दा जलाया और उसका जलने का शोक मनाने के बजाय आनंद मनाया ।
यहां तक तो ठीक है, परंतु बेशर्मी की हद तो तब पार हो जाती हैं, जब आपने अपने इस आनंद को फुहड़ता और अश्लीलता भरे शब्दों और अभद्र हरकतों से सराबोर कर दिया।
आखिर क्यों ?
क्या तू वही पुरुष नहीं है जिसने 8 मार्च के दिन बड़ी धूमधाम से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया था, क्या तू वही पुरुष नहीं है, जिसने 11 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया था ? क्या तू वही पुरुष नहीं है जिसने स्त्री सम्मान के लिए 25 सितंबर को बेटी दिवस मनाया था।
पर अब तेरी संवेदना को क्या हो गया, जो एक स्त्री को साल-दर-साल जलाने पर अमादा है।
हां हां, जलाना तो तेरी आदत में शुमार है
तूने रावण को भी तो जलाया था,
देशी मूल निवासियों को जलाना और जश्न मनाना तो विदेशी आक्रांताओं का काम है
हद हो गई यार,
पर ना ना ना मुझे तो शर्म आती है ऐसी प्रथा परंपरा पर जो एक स्त्री को इतना कमतर आंकता हो सिर्फ भोग्या और विलासिता की वस्तु मात्र समझ कर अपने पुरुष प्रधान होने का धौंस जमाता हो,
और वो भी विश्व श्रेष्ठ संविधान के होते हुए,
क्या तुझे आर्टिकल 15 याद नहीं जिसमें लिंग भेद समाप्त करने का आदेश है,
क्या तुझे आर्टिकल 51क(ङ) भी याद नहीं जिसमें तूने ऐसी प्रथा परंपराओं का त्याग करने की शपथ खाई है और इस मूल कर्तव्य से बंधा हुआ है,
क्या तू आर्टिकल 51क(ज) से भी विमुख हो गया है जो तुझे वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने का कर्तव्य बताता है,
भला एक स्त्री को जिन्दा जलाने में तेरी कौन सी तार्किक बुद्धि का विकास होता है,
क्या यह रूढ़ी नहीं है अंधविश्वास नहीं है,
अगर है तो क्या तुझे इस बात का भी ज्ञान नहीं कि संविधान के आर्टिकल 13 में ऐसे सभी प्रथा परंपरा, रीति रिवाज इत्यादि को उस हद तक शून्य घोषित किया गया है जहां तक वो मानवीय मूल्यों को कम करती हों,
क्या किसी स्त्री के प्रति अभद्र टिप्पणी किया जाना, उसे जलाया जाना उसके सम्मान में वृद्धि है ?
यदि नहीं तो कब तक ढोते रहेगा इस प्रथा को, परंपरा को, रीति रिवाज को और सभ्यता संस्कार को,
अब तो इसका त्याग करो
जाग गया सारा संसार लेने लगा अपना अधिकार
अब तू भी जाग ऐ भारत के वीर जवान
वक्त करती है पुकार
अब तो पढ़ अपना संविधान
और ले ले अपना अधिकार
वक्त करती है पुकार ।

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