कश्मीरी विस्थापित शिक्षकों के नियमितीकरण के मुद्दे पर वरिष्ठ अधिवक्ता एवं दिल्ली बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष राकेश टीकू का बयान। अधिवक्ता टीकू ने उक्त मामले में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष सरकारी स्कूल शिक्षक संघ (प्रवासी पंजीकरण) का प्रतिनिधित्व किया था

दैनिक समाचार

एडवोकेट राकेश टीकू ने कहा कि जिस तरह की खबरें प्रसारित की जा रही हैं, उससे मैं हैरान हूं। एक सरकार के खिलाफ यह आरोप कैसे लगाया जा सकता है कि वह एक समूह या समाज के खिलाफ है? मुकदमेबाजी एक ऐसी प्रक्रिया है, जहां हर मुद्दे की शिकायतें हो सकती हैं, जिन्हें हल होने में समय लगता है। कश्मीरी शिक्षकों के संबंध में जो घटना हुई वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण थी। उन्हें 1994 से 2010 तक लगभग 16 वर्षों तक सेवानिवृत्ति की आयु, पेंशन, नियमितीकरण आदि के लिए अन्य सरकारी स्कूल के शिक्षकों के समान लाभों के लिए लगातार परेशान होना पड़ा। इनको पूरा काम करने के बावजूद एक तिहाई तनख्वाह मिलती थी। लेकिन इन शिक्षकों के लिए इनमें से कोई लाभ नहीं दिया गया था। पांच साल बाद 2015 में, सरकार और शिक्षकों दोनों की ओर से बहुत सारे तर्कों और प्रतिवादों के बाद, जज ने कहा की कश्मीरी शिक्षकों को वही लाभ दिए जाने चाहिएं जो अन्य सभी सरकारी शिक्षकों को मिल रहे हैं।

उन्होंने कहा कि उस समय, सरकार बिना किसी आपत्ति के सहमत होती, तो मामला तब और वहीं सुलझ जाता। लेकिन वैसा नहीं हुआ। दिल्ली के उपराज्यपाल के अधीन आने वाले सर्विस विभाग ने न्यायाधीश द्वारा जारी किए गए फैसले को चुनौती दी। उन्होंने कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ था। अगर इसे चुनौती नहीं दी गई, तो लोग सेवा विभाग को दोष देंगे। इसलिए उच्च न्यायालय में अपील की, जिसे 3 साल बाद खारिज कर दिया गया। उन 3 वर्षों में सेवा विभाग ने वकीलों को बदला, जिसके बाद उनके द्वारा एक औपचारिक एजी नियुक्त किया गया और फिर भी, याचिका खारिज कर दी गई।

उन्होंने आगे कहा कि अगस्त 2018 में उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने एक बयान जारी किया था, जब कश्मीरी प्रवासियों ने उनसे न्याय की मांग करते हुए संपर्क किया था। उन्होंने उच्च न्यायालय से सभी आपत्ति अपीलों को वापस लेने और कश्मीरी प्रवासियों को समान अधिकार और लाभ देने के आदेश को लागू करने के लिए लिखित आदेश जारी किए थे। हालांकि, दुर्भाग्य से एलजी के सेवा विभाग ने नहीं माना और कई महीनों तक केस लड़ा। उस समय के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने भी सरकार का पक्ष लिया था। इन सबके बावजूद, सुप्रीम कोर्ट ने उन लोगों के लिए न्याय सुनिश्चित किया, जिसके वो हकदार थे। इसलिए, यह कहना कि दिल्ली सरकार ने कश्मीरी प्रवासियों को न्याय दिलाने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप किया, यह गलत होगा। कुल मिलाकर, केजरीवाल सरकार के खिलाफ लगाए गए आरोप तार्किक और तथ्यात्मक रूप से गलत हैं। इसमें देरी एलजी के सेवा विभाग द्वारा की गई थी।

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