न मंदिर काम आयेगा न मस्जिद काम आयेगा
मुसीबत में न अल्ला और न कोई राम आयेगा।
असल में भूख से बढ़ कर नहीं भगवान है कोई
उसे रोटी चढ़ाओगे तभी आराम आयेगा।
अगर हो रोग तो जाना पड़ेगा अस्पतालों में
नहीं उस वक़्त साधु मौलवी कुछ काम आयेगा।
चुनावी रास्ते बदलाव कोई हो नहीं सकता
नतीज़ा हर दफ़ा बस एक ही के नाम आयेगा।
कभी तो ज़ाति मज़हब से निकल कर आदमी बनिए
तभी इस मुल्क़ में भी प्यार का पैग़ाम आयेगा।
अगर सड़कों पे सब आयें तो इतना मान कर चलिए
हमेशा ज़िन्दगी के पक्ष में अंज़ाम आयेगा।
—डा. नरेन्द्र, दरभंगा, बिहार