तरुण शिक्षार्थीगण, तुम इस विद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर रहे हो तो तुम्हें क्रांति के बारे में भली-भांति जानकारी होनी चाहिए। कैसे अन्य देशों में क्रांति सफल हुई, वह तुम लोगों को जानना होगा, ताकि तुम यह विचार कर सको कि हम अपनी क्रांति के पथ पर कितना आगे बढ़े हैं, और अब भी कितना पथ हमें तय करना है।
किस तरह क्रांति सफल होती है, यह समझना सीखोगे तो तुम पथ में बाधा देखकर कभी हताश नहीं होगे। मनुष्य तभी हताश होता है, जब वह ऐसी बाधा के सामने होता है जो उसके लिए अप्रत्याशित हो। यदि क्रांति और उससे जुड़ी बातों के बारे में तुम लोगों के मन में स्पष्ट चित्र अंकित हो तो क्रांति के पथ पर चलते हुए तुम कभी हतोत्साह नहीं होंगे।
प्राकृतिक जगत में जिस तरह सबके नियम है, उसी तरह क्रांति भी कुछ नियमों द्वारा नियंत्रित होती है। मलेरिया की बात ली जाय। जब मच्छर काटता है, तब मलेरिया के विषाणु तुम्हारे रक्त में प्रवेश करते हैं और तुम्हें मलेरिया होता है। यदि तुम इन विषाणुओं से दूर रहते हो तो तुम्हें कभी मलेरिया नहीं होगा। जब मलेरिया के किसी रोगी को रोग से मुक्त करना होता है तब इन विषाणुओं को नष्ट करना पड़ता है। तुम ख़ूब बलशाली हो सकते हो, लेकिन मलेरिया के विषाणुओं से घिरे होने पर तुम्हें बीमार होना ही पड़ेगा, क्योंकि तुम प्राकृतिक नियम के विरुद्ध नहीं जा सकते।
मान लो, बगीचे में कोई पौधा जम रहा है। यदि तुम उस पौधे को बढ़ने देना चाहते हो तो उसे पानी से सींचना होगा और जो कीड़े उस पौधे को नष्ट कर सकते हैं, उनको नष्ट करना पड़ेगा।
ऋतुओं के आवर्तन को ही क्यों न लिया जाय? जब ग्रीष्मकाल चल रहा हो तब यदि तुम सोचते हो कि यही गरमी हमेशा चलती रहेगी, तो तुम ग़लती करोगे। समय आने पर शुरू होगा जाड़ा। यह अलंघनीय प्राकृतिक नियम है। ठीक इसी तरह क्रांति में भी ऋतु- परिवर्तन होता है। क्रांति का पथ सीधा- सपाट नहीं है। इस पथ पर सदैव सफलता नहीं आती। यह पथ अनेक बिघ्नों से भरा हुआ, बड़ा ही लम्बा और टेढ़ा- मेढ़ा है। यदि तुम यह बात समझते हो, तो कभी निरूत्साह नहीं होगे, और मान लोगे कि बाधा-विघ्न होना ही स्वाभाविक है और हताश न होकर उनको पार करने का प्रयास करोगे।
यदि तूम पहले ही यह समझ सको कि प्राकृतिक घटना की तरह क्रांति भी कुछ नियमों से नियंत्रित होती है तो सवाल उठेगा कि क्रांति के इन नियमों को कैसे जाना जायेगा। कैसे बीज बोये जाते हैं और कैसे उनकी सिंचाई की जाती है, खेती के इन सारे नियमों को एक किसान कैसे जान सकता है, यह एक बार सोचो। अनेक सदियों के पर्यवेक्षण के फलस्वरुप किसान इन सारी जानकारियों को प्राप्त करता है। मलेरिया की चिकित्सा का ज्ञान भी चिकित्सकों ने कैसे प्राप्त किया है, ज़रा सोचो। मलेरिया के हज़ारों रोगियों को देखकर ही उनको यह ज्ञान मिला है। ठीक उसी तरह विश्व के इतिहास में जो क्रांतियाँ घटित हुई हैं, उनको देखकर ही क्रांति विशारदों ने क्रांति के नियमों का ज्ञान प्राप्त किया है। विभिन्न देशों के चिंतक इस विषय का विवेचन कर इस सिद्धांत पर पहुंचे हैं कि हर क्रांति पहले की क्रांति की तुलना में उन्नत प्रकार की होगी। दुर्भाग्य से भारत में इस विषय पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया। लेकिन दूसरे देशों में इस विषय पर विशेष ध्यान दिया गया और धीरे-धीरे इसे वैज्ञानिक आधार मिला तथा इसकी अपनी परिभाषा भी बनी। भारतीयों को इस विषय पर विवेचन करने का समय आ गया है। इस विषय के समुचित विवेचन के लिए शायद हमें नये-नये शब्द भी गढ़ने पड़ेंगे।
अब देखा जाय कि क्रांति क्या है? अंग्रेजी में रेवल्यूशन का अर्थ है परिवर्तन। अब सवाल यह है कि क्या किसी भी परिवर्तन को क्रांति कहा जा सकता है? अनेक प्रकार के प्राकृतिक परिवर्तन हैं, जिनको क्रांति नहीं कहा जा सकता। कुछ स्वाभाविक परिवर्तन भी हैं, जैसे कभी-कभी अस्वाभाविक बाढ़ आती है जो आपातदृष्टि में बहुत हानि का कारण बनती है, लेकिन अंत में वह बाढ़ बहुत कल्याण करती है। हालांकि इस तरह की बाढ़ अत्यंत भयंकर है, फिर भी मिस्र के लोग इस तरह की बाढ़ के लिए प्रार्थना करते हैं ; क्योंकि इससे भूमि की उर्वरता बढ़ती है। प्राकृतिक जगत में अस्वाभाविक परिवर्तन का और एक उदाहरण है भूकंप। यह जो पेड़- पौधे बढ़ रहे हैं या जो वर्षा हो रही है, इस तरह के स्वाभाविक परिवर्तन को विवर्तन कहा जा सकता है, क्रांति नहीं। विवर्तन का अर्थ है धीरे-धीरे परिवर्तन या क्रमिक विकास। जब बड़ी मात्रा में मौलिक परिवर्तन होता है, तभी हम उसे क्रांति कहते हैं।
अब तो तुम समझ गये कि क्रांति किसे कहते हैं क्रांति हैं। क्रांति है आमूल और मौलिक परिवर्तन। यह परिवर्तन बड़ी तीव्र गति से होता है। क्रमिक विवर्तन के रास्ते जिसके घटित होने में सौ साल लगते हैं, क्रांति के माध्यम से वह पांच - दस साल में ही घटित होता है। जब तुम्हें तीव्र गति से कोई परिवर्तन करना हो, तो तुम्हें सभी उपाय अपनाने होंगे, और सभी अस्त्रों का प्रयोग करना होगा। विवर्तन के रास्ते स्वाभाविक नियम से होनेवाले परिवर्तन के लिए इंतजार करना पड़ता है, लेकिन क्रांति के रास्ते हथियार उठाकर सभी बाधाओं को ध्वस्त करना होता है, और इसीलिए रक्तपात भी क्रांति का एक अंग बन जाता है।
चूँकि क्रांति के दौरान हम कम से कम समय में उत्कृष्टतम फल पाना चाहते हैं, इस कारण हमारे लिए यह जानना बहुत ज़रूरी है कि क्यों पहले की क्रांतियों में विलंब हुआ था और वे विफल भी हुई थीं।
अधिक आगे बढ़ने से पहले मैं यह भी साफ़-साफ़ बताना चाहता हूं की क्रांति के कारण जो परिवर्तन आता है, वह मौलिक होता है। दो-चार मामूली परिवर्तनों को क्रांति नहीं कही जा सकती। किसी सरकार का परिवर्तन या मंत्रिमंडल में परिवर्तन क्रांति नहीं है, क्योंकि इससे राष्ट्र की जीवन-शैली में परिवर्तन नहीं होता। इस फ़र्क़ को समझाने के लिए फ्रांस के लोगों ने एक शब्द गढ़ा है 'coup d' etat' और जर्मनीवालों ने गढ़ा है 'Putsch'। जब किसी मंत्रिमंडल को बदला जाता है या किसी राजा को गद्दी से उतारा जाता है, तब हम उसे 'coup d'etat' कहते हैं। यूरोप का भ्रमण करते समय मैंने बुल्गारिया में एक घटना को घटित होते देखा था। भोर में तीन बजे सेना ने ऐसा 'coup d'etat' किया था। सैनिकों ने मंत्रियों का मकान घेर लिया था, उनको बंदी बनाया था और राजा के पास जाकर मंत्रिमंडल बदलने की मांग की थी। राजा नयी सरकार बनाने के लिए विवश हुए। कोई रक्तपात नहीं हुआ, देश में आमूल परिवर्तन नहीं हुआ, मात्र सरकार बनाने वाले सदस्यों की अदला- बदली हुई। यह क्रांति नहीं है, यह सिर्फ coup d'etat या Putsch है।
बहुत दिनों की पराधीनता के फलस्वरुप भारतवासी दुर्बल हो गये हैं। अब वे त्याग करने या प्राण देने से डरते हैं। यहां तक कि वे क्रांति के बारे में सोचना भी नहीं चाहते। वे क्रमिक विकास के पथ पर ही चलना चाहते हैं। सभी बातों में वे धीरे-धीरे परिवर्तन चाहते हैं। लेकिन प्राकृतिक जगत पर दृष्टि डालने से लगता है, कभी-कभी क्रांतिकारी उपाय बहुत आवश्यक हो जाता है। ऐसा समय आता है, जब दवा के प्रयोग से धीरे-धीरे चिकित्सा की व्यवस्था विफल होती है और शल्यचिकित्सा का सहारा लेना पड़ता है। क्या कभी ऐसी स्थिति नहीं आती, जब पैर काटकर शेष शरीर को बचाया जाता है। ज़रा सोचने पर तुम समझ सकोगे कि कभी-कभी रक्तपात— शल्यचिकित्सा की निर्मम पद्धति ही— जीवन रक्षा का एकमात्र प्रक्रिया होती है। व्यक्तिगत जीवन में जो नियम लागू होता है, राष्ट्र के जीवन में वही नियम कारगर होता है। किसी जाति को नष्ट होने से बचाने के लिए कभी-कभी क्रांतिकारी उपाय को अपनाना प्राकृतिक नियम के अनुसार ही अपरिहार्य हो जाता है।
क्रांति भी दो प्रकार की होती है। एक है विदेशी शासन के विरुद्ध क्रांति तो दूसरी है देश में विद्यमान सामाजिक व्यवस्था के विरुद्ध क्रांति। विदेशी शासन के अधीन देशों में क्रांति के उद्देश्य होते हैं विदेशी शासन का अंत तथा नयी समाज- व्यवस्था का शुभारंभ। फ्रांसीसी क्रांति के समय विदेशी शत्रु से युद्ध करना नहीं पड़ा था, क्योंकि फ्रांस के राजे रजवाड़े ही उस समय फ्रांस में राज करते थे। फ्रांसीसी क्रांति का उद्देश्य था सामाजिक ढांचे में परिवर्तन कर नयी समाज- व्यवस्था का सृजन। रूस की क्रांति का भी उद्देश्य था नयी समाज- व्यवस्था का सूत्रपात। देशवासी समझने लगे थे कि उनके अपने शासक ही देश की प्रगति के पथ में बाधक हैं। नये समाज की नींव डालने के लिए उनको अपने राजा को ही गद्दी से उतारना पड़ा था। सन 1926 में आयरलैंड की क्रांति विदेशी शासन और शक्ति के विरुद्ध थी, इसलिए हमारी क्रांति की तुलना आयरलैंड की क्रांति से की जा सकती है। देशी शासकों के विरुद्ध क्रांति करके नयी समाज- व्यवस्था के लिए प्रयास करना अपेक्षाकृत सरल है। लेकिन पहले विदेशी शक्ति को भगाना और उसके बाद नयी सामाजिक व्यवस्था का सृजन सचमुच अधिक कठिन है। .........
(पढ़ते रहिए आगे)