रिजर्व बैंक की स्थापना क्यों हुई उसके लिए इतिहास को जानना, समझना जरूरी है। सन 1913-1918 के बीच चले प्रथम विश्व युद्ध के चलते भारत पर राज कर रहे ब्रिटिशों का ध्यान भारतीय अर्थ व्यवस्था से हट कर विश्व युद्ध की तरफ केन्द्रित हो गया, परिणाम स्वरूप अंग्रेजों द्वारा स्थापित बैंकिंग सिस्टम औंधे मुह गिर गया तथा लगभग 96+ बैंक दीवालिया हो गई या पैसा ले कर भाग गईं।
ऐसी गम्भीर का मूल कारण यह था कि बैंकिंग सिस्टम मैनेजमेंट की मजबूत बागडोर सीधे तौर से ब्रिटिश सरकार के हाथ मे नही थी (अपनी-अपनी बैंक का अपना खुद का अलग अलग मैनेजमेन्ट था)। ऐसी समस्या के चलते ब्रिटिश सरकार ने सन 1921 मे प्रेसिडेन्सी बैंक ऑफ बंगाल, प्रेसिडेन्सी बैंक ऑफ बॉम्बे तथा प्रेसिडेन्सी बैंक ऑफ मद्रास को संयुक्त कर दिया तथा नई बैंक अस्तित्व मे आई जिसका नाम अंग्रेजों ने इम्पीरियल बैंक रखा।
प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात बैंकिंग सिस्टम को लगे झटके को गम्भीरता से लेते हुए ब्रिटिश सरकार ने पूर्ण रूप से सरकार के स्वामित्व के मैनेजमेन्ट के होने की समीक्षा करने के लिए सन 1926 मे हिल्टन यंग कमीशन या रॉयल कमीशन फॉर करेंसी एण्ड फाइनेन्स का गठन किया। अब तक ब्रिटिश सरकार इस बात से भी भली भाँति परिचित हो चुकी थी कि मूल भारतीय समाज भी अब पूर्ण रूप से एडवान्स एण्ड स्मार्ट हो चुके थे।
इसी को ध्यान मे रखते हुए ब्रिटिश सरकार ने इस गम्भीर समस्या के निवारण के सन्दर्भ मे अपने विचार रखने के लिए बंगाल गजट समाचार पत्र मे सूचना प्रसारित की। बंगाल गजट मे प्रकाशित इस सूचना की प्रतिक्रिया के रूप मे ब्रिटिश सरकार को एक पुस्तक की जानकारी प्राप्त तुई जिसका नाम #दप्रोब्लमऑफ_रूपी था। इस पुस्तक को पढ़कर अंग्रेज सरकार हतप्रभ रह गयी।पुस्तक में वह सब कुछ था जिसकी रूपरेखा तैयार कर रहे थे या जिससे बैंकिंग की ऐसी गम्भीर समस्या से निपटा जा सकता था।
पुस्तक के विवरण के नक़ल न होने की पुष्टि के लिए अंग्रेजों ने उस लेखक का इंटरव्यू लिया। अंग्रेजों ने उस लेखक की उपेक्षा के नजरिये से ही उस लेखक का इंटरव्यू लिया। 16 दिसम्बर सन 1934 को ब्रिटिश सरकार द्वारा RBI ACT लाया गया, जिसमे उस लेखक की पुस्तक का नाम #दप्रोब्लमऑफ_रूपी के सार को ज्यों का त्यों ही रखा गया तथा 1अप्रैल सन 1935 को RBI का गठन कलकत्ता मे कर दिया गया। #रिपोस्ट।
विकिपीडिया पर दर्ज है कि रिजर्व बैंक की स्थापना डॉ अम्बेडकर की थीसिस “प्रॉब्लम ऑफ दी रूपी” के सिद्धांतों पर आधारित है लेकिन विकिपीडिया कोई सटीक प्रमाण नहीं हो सकता है। प्रमाण है रिज़र्व बैंक की स्थापना के लिए गए प्रयत्न व उसके विचार का आधार। जो डॉ इतिहास में दशकों पहले से दर्ज है। पूर्व की पोस्ट में कई कमीशन, कई एक्ट के विषय में बता चुका हूं।
नहीं मालूम कि खुद आरबीआई ही कुछ वर्ष पूर्व तक डॉक्टर योगदान से अनजान था या सच स्वीकारने में असहज था लेकिन 6 दिसम्बर 2015 को डॉ अंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस के उपलक्ष्य पर प्रधानमंत्री मोदीजी ने जब रिजर्व बैंक के ऐतिहासिक संदर्भ में डॉ अम्बेडकर का जिक्र किया और उनपर सिक्के जारी किये तब से रिजर्व बैंक इस बात को तवज्जो देने लग गया ऐसे कैसे?
पूर्वी एशियाई देशों में भारत ऐसा पहला राष्ट्र था, जिसने कर्मचारियों की भलाई के लिए बीमा अधिनियम बनाया था। ‘महंगाई भत्ता’ (डीए), ‘अवकाश लाभ’, ‘वेतनमान का पुनरीक्षण’ जैसे प्रावधान डॉ. आंबेडकर के कारण ही हैं। उनके योगदान तथा कार्ययोजना पर फिर विमर्श करूँगा लेकिन भ्रष्टाचार, कालाधन जैसे अपराधों को रोकने हेतु करेंसी को हर दस वर्षों में नया लुक देने जैसे विचार भी था डॉक्टर अम्बेडकर का। आज आरबीआई का स्थापना दिवस है। डॉ अंबेडकर को याद किये बगैर यह दिन पूर्ण नहीं हो सकता है। #आरपीविशाल।
आज ही दिन एक अप्रैल 1935 को हुई थी भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना। (Reserve Bank of India) भारत का केन्द्रीय बैंक है। यह भारत के सभी बैंकों का संचालक है। रिजर्व बैंक भारत की अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित करता है। 1 अप्रैल सन 1935 को रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया 1934 के एक्ट के अनुसार स्थापना हुई। बाबासाहेब डॉ॰ भीमराव आंबेडकर जी ने भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में अहम भूमिका निभाई हैं, उनके द्वारा प्रदान किये गए दिशा-निर्देशों या निर्देशक सिद्धांत के आधार पर भारतीय रिजर्व बैंक बनाई गई थी। बैंक की कार्यपद्धती या काम करने शैली और उसका दृष्टिकोण बाबासाहेब ने हिल्टन यंग कमीशन के सामने रखा था।
जब 1926 में ये कमीशन भारत में रॉयल कमीशन ऑन इंडियन करेंसी एंड फिनांस के नाम से आया था तब इसके सभी सदस्यों ने बाबासाहेब द्वारा लिखित किताब दी प्राब्लम ऑफ दी रुपी – इट्स ओरीजन एंड इट्स सोल्यूशन (रुपया की समस्या – इसके मूल और इसके समाधान) की जोरदार वकालात की। ब्रिटिशों की वैधानिक सभा (लेसिजलेटिव असेम्बली) ने इसे कानून का स्वरूप देते हुए भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 का नाम दिया गया। प्रारम्भ में इसका केन्द्रीय कार्यालय कोलकाता में था जो सन 1937 में मुम्बई आ गया। पहले यह एक निजी बैंक था किन्तु सन 1949 में #राष्ट्रीयकरण के बाद से इस पर भारत सरकार का पूर्ण स्वामित्व है।
रिज़र्व बैंक के राष्टीयकरण के बाद बैंकों के राष्ट्रीयकरण की भी जरूरत महसूस की गई और 1969 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश के 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। यह देशहित में एक ऐतिहासिक फैसला था। उनके विरोधी इस फैलसे के खिलाफ थे। उस समय कांग्रेस में दो गुट थे इंडिकेट और सिंडिकेट। इंडिकेट की नेता इंदिरा गांधी थीं। सिंडिकेट के लीडर थे के.कामराज। इंदिरा गांधी पर सिंडिकेट का दबाव बढ़ रहा था। सिंडिकेट को निजी बैंकों के पूंजीतंत्र का प्रश्रय था। इंदिरा गांधी का कहना था कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण की बदौलत ही देश भर में बैंक क्रेडिट दी जा सकेगी। उस वक्त मोरारजी देसाई वित्त मंत्री थे। वे इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर चुके थे। 19 जुलाई 1969 को एक अध्यादेश लाया गया और 14 बैंकों का स्वामित्व राज्य के हवाले कर दिया गया। उस वक्त इन बैंकों के पास देश का 70 प्रतिशत जमापूंजी थी।
राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों की 40 प्रतिशत पूंजी को प्राइमरी सेक्टर जैसे कृषि और मध्यम एवं छोटे उद्योगों) में निवेश के लिए रखा गया था। देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक की शाखाएं खुल गईं। 1969 में 8261 शाखाएं थीं। 2000 तक 65521 शाखाएं हो गई। 1980 में छह और बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। यह मजबूत भारत की नींव थी लेकिन 2000 के बाद यह प्रक्रिया धीमी पड़ गई जिससे कई बैंकों का दिवालिया भी निकल गया हालांकि सरकार द्वारा सेबी की स्थापना करके जनता के पैसे सुरक्षित रहे। 2000 से लेकर 2014 तक बैंकिंग सेक्टर में कोई बड़ी क्रांति नहीं हुई।
मौजूदा मोदी सरकार ने 2014 के बाद जनधन योजना के माध्यम से इस दिशा में एक बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की। सरकार ने जनधन योजना के अंतर्गत देशभर के विभिन्न बैंकों में करीब 31 करोड़ खाते खोले गए थे। उस समय इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि यह खाते शून्य बैलेंस पर निःशुल्क खोले गए लेकिन इस योजना पर सवाल तब उठे जब अगस्त 2017 में सरकार ने वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट को प्रस्तुत करते हुए कहा कि 20 दिसंबर 2017 तक 49 लाख 50 हजार खाते बंद कर दिए हैं। उन्होंने बताया कि 50 प्रतिशत खाते सिर्फ उत्तर प्रदेश में बंद किए गए हैं। इसके बाद खाते बंद करने के मामले में मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और गुजरात का नंबर आता है।
दूसरी ओर न्यूनतम बैलेंस मैंटेन करने के एवज में बैंकों ने 5000 करोड़ रुपये से अधिक वसूले गए जिसमे 2400 करोड़ रुपये अकेले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने वसूल किये। जबकि मार्च 2019 तक जनधन के खोले गए खातों में अधिकतर बन्द हो चुके हैं और आज ज्यादात्तर बैंकों का विलय भी कर दिया है। बैंकों की साख का अंदाजा इस बात से लगाइए कि बैंक कर्मचारीयों पर दबाव है कि वे अपने ही बैंक से 2 लाख रुपये के शेयर अनिवार्य रूप से खरीदें जो बैंक कर्मचारी शेयर खरीदने को तैयार नहीं उसको तबादले के साथ साथ अन्य दबाव भी बनाये जा रहे हैं।
ताजा मामला बैंकों के घाटों तथा #निजीकरण और अभी अभी यसबैंक के माध्यम देखा और समझा सकता जा सकता है। बहरहाल! घटती अर्थव्यवस्था और घटती बैंकों की साख देश के लिए एक चिंता का सबब है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया जिसका इतना लंबा इतिहास है आज उसके गवर्नर से लेकर पूरी अर्थव्यवस्था को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा किया गया फ्री मार्केटस, गोल्ड स्टैंडर्ड, इकोनॉमिक फ्रीडम, डीए, पीएफ, वित्त आयोग यह सब डॉ अंबेडकर जी की कल्पना तथा कार्य योजना थी। उससे देश विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में लगातार ऊपर आता रहा। आज हमें समझना होगा कि हम क्या अनदेखी करके कहाँ और क्यों पिछड़ रहे हैं। अर्थशास्त्र में नोबेल प्राइज़ विजेता अमर्त्य सेन ने डॉ अंबेडकर जी को अर्थशास्त्र के मामले में अपना पिता यूँ ही नहीं माना होगा। वो जानेगा वो जरूर मानेगा। इसी चिंतन के साथ रिजर्व बैंक के स्थापना दिवस पर सभी देशवासियों को बधाई। #आरपी_विशाल।