उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में यूपी बोर्ड की 12वीं के अंग्रेजी का पर्चा लीक होने के बाद पत्रकारों को निशाना बनाए जाने पर योगी सरकार बुरी तरह घिरती नजर आ रही है। साथ ही वो मीडिया घराने भी आलोचना के केंद्र में आ गए हैं जिनके पत्रकारों ने नंगा सच उजागर करने का दम-खम दिखाया तो उन्हें जेल भेज दिया गया। पेपर लीक प्रकरण में बलिया पुलिस तीन पत्रकारों समेत 34 लोगों को जेल भेज चुकी है।
पुलिस ने बलिया के डीआईओएस बृजेश कुमार मिश्र के साथ “अमर उजाला” के बलिया ब्यूरो में काम करने वाले पत्रकार अजित कुमार ओझा, इसी अखबार के नगर प्रतिनिधि दिग्विजय सिंह तथा इनके अलावा नगरा तहसील से राष्ट्रीय सहारा के लिए काम करने वाले मनोज गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया।
निलंबित डीआईओएस बृजेश कुमार मिश्र की सत्ता में धमक और रसूख के अलावा इनके आचरण को लेकर अब तमाम किस्से-कहानियां अब सामने आ रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बृजेश कुमार मिश्रा साल 2007 से 2009 तक प्रयागराज में बेसिक शिक्षा अधिकारी के तौर पर तैनात थे। उन पर शिक्षकों की जांच के नाम पर बेवजह निलंबित करने और फिर बहाल करने के नाम पर पैसे वसूलने का आरोप था। बलिया में शिक्षक भर्ती में धांधली का भी उन पर आरोप लगा था और वह प्रकरण भी उस समय अखबारों में सुर्खियां बना था। शिक्षा मंत्री से सीधी पकड़ और अधिकारियों को धन-बल से अपने पाले में रखने में माहिर बृजेश कुमार मिश्रा प्रयागराज, प्रतापगढ़, हरदोई, जौनपुर में भी तैनात रहे हैं। हरदोई में उनके पास बीएसए के अलावा जिला विद्यालय निरीक्षक का चार्ज था। उस समय भी यह सवाल उठा था कि क्या प्रदेश में शिक्षा विभाग अधिकारियों से खाली हो गया है जो एक अधिकारी को बीएसए और डीआईओएस दोनों महत्वपूर्ण चार्ज दे दिया गया है? प्रयागराज के तत्कालीन डीएम आशीष कुमार गोयल ने बृजेश कुमार मिश्रा के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले की जांच के आदेश दिए थे। प्रशासन के आदेश पर उनके आवास पर छापा भी मारा गया था। हालांकि, बृजेश कुमार मिश्रा के आवास से कुछ बरामद नहीं हुआ था। स्पेशल टास्क फोर्स ने पेपर लीक के साथ-साथ अब डीआईओएस के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति की जांच भी शुरू कर दी है।
बोर्ड परीक्षा में पूरे उत्तर प्रदेश में नकल कराया जाता है लेकिन बलिया-गाजीपुर में खासतौर से बड़े पैमाने पर नकल कराया जाता है। यह कोई छिपी हुई बात नहीं है।
यह बात अभिभावक भी जानता हैं कि पैसे लेकर के नकल कराई जाती है और सेंटर भी दिए जाते हैं। यह बात जिला प्रशासन और शिक्षा अधिकारी भी अच्छी तरह जानते हैं। अधिकारियों की मिलीभगत से ही नकल होती है। बिना उनके शह के नकल या पर्चा लीक होना संभव ही नहीं है।
लेकिन फिर भी नकल माफियाओं को गिरफ्तार करने की बजाय पत्रकार को ही प्रशासन ने गिरफ्तार कर लिया। वस्तुतः गिरफ्तारी तो नकल माफियाओं और लापरवाह व दोषी प्रशासनिक अधिकारियों की होनी चाहिए थी।
2017 में जब भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश की कमान संभाली थी तब इस सरकार का वादा 70 लाख रोजगार देकर प्रदेश को नौकरियों के मामले में नंबर वन बनाने का था, लेकिन सरकार में आने के बाद इस पार्टी ने यूपी को पेपर लीक में नंबर वन बना दिया। अगस्त 2017-सब इंस्पेक्टर पेपर लीक, फरवरी 2018-यूपीपीसीएल पेपर लीक, अप्रैल 2018-यूपी पुलिस का पेपर लीक, जुलाई 2018-अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड का पेपर लीक, अगस्त 2018-स्वास्थ्य विभाग प्रोन्नत पेपर लीक, सितंबर 2018-नलकूप ऑपरेटर पेपर लीक, 41520 सिपाही भर्ती पेपर लीक, जुलाई 2020-69000 शिक्षक भर्ती पेपर लीक, अगस्त 2021-बीएड प्रवेश परीक्षा पेपर लीक, अगस्त 2021-पीईटी पेपर लीक, अक्टूबर 2021-सहायता प्राप्त स्कूल शिक्षक/प्रधानाचार्य पेपर लीक, अगस्त 2021-यूपीटीजीटी पेपर लीक, नीट पेपर लीक, एनडीए पेपर लीक, एसएससी पेपर लीक, नवंबर 2021 में यूपीटीईटी पेपर लीक और अब योगी के दोबारा सत्ता संभलाते ही अंग्रेजी का पेपर लीक हो गया।
पेपर लीक करने वाले माफिया आजाद घूम रहे हैं और पकड़े जा रहे हैं निर्दोष और छुटभैये। पत्रकारों को तो जानबूझकर फंसाया जा रहा है। पत्रकारों की यह अभिव्यक्ति की आज़ादी का कठोरतापूर्वक किया गया दमन है।
उत्तर प्रदेश पीयूसीएल प्रदेश सरकार से यह मांग करता है कि इस पेपर लीक प्रकरण में नकल माफिया, लापरवाह और भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारियों को गिरफ्तार करके निर्दोष पत्रकार की अविलंब रिहाई की जाए।
उत्तर प्रदेश पीयूसीएल द्वारा जारी
एडवोकेट फ़रमान नक़वी
संयोजक
पीयूसीएल उत्तर प्रदेश