आज जिस गाय और गोबर के फायदे आम जनता को बताये जा रहे हैं – जिसे हीरे से भी कीमती बताया जाता है, वही “गाय और गोबर” हमारे नेताओं की आलीशान कोठियों से गायब क्यों है?
उनकी कोठियों में चार-चार विदेशी नस्ल के कुत्ते पलते मिल जायेंगे, परन्तु “गाय या गाय के गोबर” का नामोनिशान ढूंढे नहीं मिलेगा.
जिस “गाय-गोबर” को जनता के दिमागों तक में ठूंस-ठूंस कर भरा जा रहा है – क्या कभी इन नव निर्वाचित सांसद या विधायकों के चौके, कभी उससे लीपे भी जाते हैं?
जनता को गाय के नाम पर वैसे ही ठगा जा रहा है, जैसे राम के नाम पर ठगा गया था.
“कथनी और करनी” का यह अंतर, आज गरीब से गरीब इंसान तक समझ रहा है – लेकिन फिर भी ठगा जा रहा है.
गाय के शुद्ध घी के नाम पर आज बनावटी घी हजार रूपये किलो बेच कर मालामाल हो रहे हैं – ढोंगी लोग.
आखिर यह सब छल और कपट उस निरीह जनता के साथ क्रूरतापूर्ण कृत्य नहीं है?
हाथी की तरह खाने के दांत अलग और दिखाने के दाँत अलग-अलग क्यों हैं.?