अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के एक प्रोफ़ेसर पर किसी संघी लंपट की शिकायत पर क़ानूनी कार्रवाई की जा रही है. उनपर ये आरोप है कि वे रेप के समाजशास्त्र पढ़ाते हुए हिंदू देवी देवताओं के द्वारा किए गए अनगिनत रेप के मामलों का ज़िक्र क्लास में कर रहे थे.
इन बातों के ज़िक्र से एक लंपट की भावना आहत हो गई और उसने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. पुलिस ने उस प्रोफ़ेसर पर त्वरित कार्रवाई की.
इधर मध्य प्रदेश में एक थाने में पत्रकारों के एक ग्रुप को किसी बेईमान भाजपाई विधायक की शिकायत पर, नंगा कर बिठा दिया गया!
कहीं से ख़बर आती है कि कोई भगवा धारी लंपट, खुले आम एक समुदाय विशेष के खिलाफ ज़हर उगल रहा है और लोगों को नरसंहार के लिए प्रेरित कर रहा है!
हिजाब, मांसाहार, अजान, लाउडस्पीकर पर गर्मागर्म बहस हो रही है.
महंगाई के समर्थक बहुत aggressively अपनी कंगाली के समर्थन में, ज़ोर शोर से टी वी पर बाईट दे रहे हैं…
इन्हीं सबके बीच रेल, भेल, सेल, बैंक सारे बिक रहे हैं.
संविदा पर पुलिस और सेना में भर्ती कर नाज़ी जर्मनी के SS की तर्ज़ पर हत्यारों की फ़ौज बनाने की तैयारी चल रही है.
इसी दौरान सरकारी नौकरियाँ ख़त्म हो रही हैं और व्यापारी और किसान ख़ुदकुशी कर रहे हैं.
नौजवानों को भी ख़ुदकुशी करनी पड़ रही है.
अर्थव्यवस्था रसातल में चली गई है.
भारत का व्यापारिक घाटा क़रीब 190 करोड़ डॉलर पहुँच गया है और रुपए का पिछले 40 सालों में सबसे ज़्यादा अवमूल्यन हुआ है.
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ये सारी घटनाएँ और परिदृश्य को आप अलग अलग कर नहीं देख सकते हैं.
दरअसल मनमोहन सिंह के नेतृत्व में भारत एक तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गई थी और दुनिया में चौथे नंबर पर थी.
भारत की बढ़ती साख से अमरीका परेशान था. पश्चिमी देशों को भारत की आर्थिक विपन्नता इसलिए भाती है कि कमज़ोर भारत, हमेशा विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के उपर निर्भर कर एक विशाल बाज़ार बना रहेगा.
मोदी सरकार ठीक उसी दिशा में काम कर रही है.
पिछले आठ सालों में मोदी सरकार ने विदेशों से उतना क़र्ज़ लिया जितना पिछली सरकारों ने 65 सालों में नहीं लिया था!
नतीजतन, हमारी GDP का क़रीब 42% सिर्फ़ क़र्ज़ चुकाने पर ही खर्च हो रहा है.
श्रीलंका की तर्ज़ पर हमारे यहाँ जनकल्याण कारी योजनाओं पर खर्च नहीं हो रहा है. पाँच किलो का मोदी झोला कोई जनकल्याण कारी योजना नहीं है. ये देश की जनता को भिखारी बनाए रखने की फ़ासिस्ट साज़िश है.
“दाल रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ” की धुन पर झूमते हुए गोबरपट्टी ने प्रभु पर किस तरह से वोटों की बारिश कर दी है, ये हमने हाल में ही यूपी चुनाव में देखा है.
मतलब साफ़ है. भारत में ठीक उसी तर्ज़ पर नाज़ीवाद निर्यात किया गया है जैसे पश्चिमी देशों द्वारा यूक्रेन में किया गया.
वैश्विक परिदृश्य की समझ के बग़ैर आप किसी देश की अंदरूनी राजनीति को नहीं समझ पाएँगे.
आगे एक बहुत लंबी लड़ाई है- इजारेदार, गिरोह बंद पूँजीपतियों और उनके पाले हुए सरकारों के खिलाफ. समाज पर हावी होते लंपट ताक़तों के खिलाफ. मरी हुई अदालतों के खिलाफ. भ्रष्ट नौकरशाही के खिलाफ, और सबसे कठिन लड़ाई उस राजनीतिक चेतना के खिलाफ, जो जनवादी सोच के विरुध्द तरह तरह के नारे ले कर खड़ा है, जैसे गाँधीवाद, गाँधीवादी समाजवाद, लोहियावाद, इत्यादि इत्यादि…।
कम्युनिस्ट के सिवा नाज़ीवाद को कोई नहीं हरा सकता है, यही अंतिम सत्य है।