श्रीलंका के 7 अगस्त 2020 के संसदीय चुनाव की में प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे की श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) को 2015 के बाद दुबारा बहुमत मिला था, उन्हें 225 में 145 सीटों पर भारी बहुमत से जनता ने जिताया था। जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिंदा राजपक्षे को फोन कर जीत की बधाई दी थी।
श्रीलंका के सिंहली समुदाय के लोगों का मानना था कि राजपक्षे भगवान का दूसरा रूप हैं और उनके प्रधानमंत्री रहते ही श्रीलंका विकास कर सकता है। चुनावों में मिली भारी जीत के पीछे सिंहली समुदाय का एकतरफा समर्थन था।
जीत के बाद क्या हुआ…
श्रीलंका के आम चुनाव में प्रचण्ड बहुमत मिलने के बाद राजपक्षे परिवार श्रीलंका का संविधान बदलने और राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की शक्तियों को बढ़ाने के लिए नये कायदे कानून लाने लगे ताकि पिछली सरकारों द्वारा बनाये गए नियम-कायदों को बदला जा सके जिनसे सरकार पर निगरानी बढ़ गई थी और जनता को जवाबदेही के प्रावधान थे।
देश के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए विदेशों और वर्ड बैंक से भारी भरकम कर्ज़ लेना और उनकी भारी किस्तें चुकाना भी श्रीलंका की बर्बादी की बड़ी वजह है। श्रीलंका की राजपक्षे सरकार ने अपनी औकात से ज्यादा खर्च करना शुरू कर दिया था।
श्रीलंका में एक बड़ा तबका मानता था कि प्रधान मंत्री राजपक्षे के सत्ता में होने से श्रीलंका की सरकार को स्थिरता मिली और उन्होंने कोरोना वायरस महामारी के ख़िलाफ़ भी अच्छा प्रदर्शन किया था।
आज श्रीलंका की बर्बादी का कारण सिर्फ प्रधानमंत्री राजपक्षे ही नहीं हैं, वहां की जनता भी है जिन्होंने राजपक्षे को पूर्ण बहुमत से जिताया था और अपने बर्बादी का कारण खुद बने।
श्रीलंका की बर्बादी का उदाहरण यह साबित करता है कि चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल करने वाली सरकार ही देश की बर्बादी का कारण भी बन सकती है।
✒️Chander Pal Talreja
New Delhi, India