वित्तमंत्री ने 2022-23 के बजट को अमृत काल (2022-2047) के भारत के विकास को दिशा देने वाला बजट कहा है। इस बजट में स्कूली शिक्षा कक्षा 1 से 12 तक) पर 63449 करोड़ रुपए एवं उच्च शिक्षा पर 40810 करोड़ रुपए खर्च करने का अनुमान है। अर्थात कुल मिलाकर शिक्षा पर लगभग 104250 करोड़ रुपए खर्च होना है जो सम्पूर्ण बजट खर्च का लगभग 2.6% है।
2014-15 मे कुल बजट खर्च का 4.14% एवं 2019-20 में 3.4% शिक्षा पर खर्च रहा है। अब शिक्षा खर्च और घटा दिया है तो नई शिक्षा नीति के अनुसार व्यवासायिक तकनीकी व शिक्षा सबको देने का लक्ष्य कैसे पूरा होने वाला है?
दूसरी बात सूचनाओं के अनुसार अमेरिकी सरकार भारत से चार गुना और चीन की सरकार लगभाग 25 गुना अधिक धन शिक्षा पर व्यय करती है। अमेरिका में सरकारी खर्च के अलावा वहां के पूंजी सम्राट अपने शिक्षा संस्थान चलाते हैं और शिक्षा व शोध के लिए भारी अनुदान देते हैं। जर्मनी, इंग्लैंड, फ्रास आदि पश्चिमी यूरोपीय देश भी शिक्षा पर अधिक व्यय करते हैं। इसलिए ये देश विज्ञान तकनीक के विकास में बहुत आगे बढ़ गए हैं। शिक्षा व शोध पर कम खर्च के कारण भारत विज्ञान तकनीक के विकास में पिछड़ता आ रहा है और उसके लिए विकसित पश्चिमी देशों पर निर्भर रहा है और इसी कारण अमृतकाल में भी तकनीक मशीन आदि पर भारत की परनिर्भरता बनी रहने वाली है.बल्कि और बढ़ने वाली है। भले ही सरकार आत्मनिर्भर भारत बनाने की बड़ी बड़ी डींगे मारे । बढ़ती परनिर्भरता को छिपाने के लिए शिक्षा आदि के डिजिटलीकरण की बातें बजट भाषण व प्रचारों में आई है। इसे डिजिटल शिक्षा के बजट प्राविधान से देखे।
वित्तमंत्री ने अपने बजट भाषण में आने वाले समय में डिजिटल शिक्षा अर्थात टी. वी. मोबाइल कम्प्यूटर इंटरनेट के माध्यम से दी जाने वाली शिक्षा पर जोर दिया है। स्कूलों, कॉलेजो, विश्वविद्यालयो, अध्यापको प्रोफेसरों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा के बढ़ाने या विकास करने का नाम भी नहीं लिया है। उन्होंने कोरोना काल में कक्षा 1 से 12 तक की अलग अलग कक्षाओं के लिए चलाये जा रहे 12 टीवी चैनलों की संख्या बढ़ाकर 200 चैनल करने की बात कही है ताकि क्षेत्रीय भाषाओं में टी वी चैनलों से शिक्षा दी जा सके। इंटरनेट विज्ञान प्रयोगशालायें कौशल विकास केन्द्र खोलने की बात की गई है। उच्च शिक्षा के लिए एक डिजिटल विश्वविद्यालय स्थापित करने की बात कही है जिससे विश्वस्तरीय ज्ञान देश के कोने कोने तक घर बैठे ही विद्यार्थी प्राप्त कर सकेंगे। इस डिजिटल विश्वविद्यालय के लिए देश के अग्रणी विश्वविद्यालयों और सूचना तकनीकी संस्थानों से मदद ली जायेगी। इस बजट प्राविधान से स्पष्ट है कि सरकार आने वाले वर्षों में पहले की तरह अपने खर्च से कोई विद्यालय या विश्वविद्यालय नहीं स्थापित करने जा रही है, हां देश के धन्नाढ़ वर्ग निजी लाभ कमाने के लिए शिक्षा संस्थान स्थापित करते रहेंगे।
सरकार मुख्यतः टी.वी. चैनल इंटरनेट से स्कूली व उच्च शिक्षा की व्यवस्था करेगी। इस इंटरनेटी या डिजिटल शिक्षा पर प्रतिक्रिया देते हुए एक पूर्व शिक्षा सचिव ने बताया कि कोरोना काल मे लगभग 50-60% शहरी व देहाती बच्चे इंटरनेट की शिक्षा से वंचित रहे और आगे भी डिजिटल शिक्षा से उनके बंचित रहने की ही ज्यादा सम्भावना है। मतलब भविष्य में 50-60% साधारण गरीब परिवारों के बच्चे जो टी. वी. कम्प्यूटर, स्मार्टफोन का खर्च नहीं उठा सकते, उनके डिजिटल शिक्षा से वंचित ही रहने की सम्भावना है। दूसरे 40-50% बच्चे जो टी. वी. मोबाइल लैपटॉप से शिक्षा लेने में सक्षम है, वे शिक्षा लेंगे या मनोरंजन करेंगे, अनुशासन में रहेंगे या नहीं इन बातों पर भी सवाल खड़े रहते हैं। जबकि स्कूली या उच्च शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण कार्य बच्चों को ज्ञान देने के साथ अनुशासन सिखाना रहा है। डिजिटल शिक्षा अधिकांश बच्चों को शिक्षा व अनुशासन से वंचित करने वाली है। तीसरे स्कूल कालेज की दोस्ती मित्रता गुरु शिष्य व अन्य सामाजिक सम्बन्धों की शिक्षा से भी आने वाली डिजिटल पीड़िया बचित रहेंगी। हम देख रहे हैं कि आज मनोरंजन या सूचना समाचार के लिए इस्तेमाल होने वाली मोबाइल टी.वी ने एक ही परिवार के सदस्यों को एक दूसरे से अलग कर दिया है। डिजिटल शिक्षा इस अलगाव को कई गुना बढ़ा देगी। जबकि धन्नाढ़ो के बच्चे देश विदेश के कालेजो, विश्वविद्यालयों में पढ़ते रहेंगे अथवा अनुशासकों की देख रेख में डिजिटल शिक्षा लेंगे। वे शासकवर्गीय अनुशासन व सामाजिक शिष्टाचार से लैस बनेगे। चौधे यह डिजिटल शिक्षा लाखो अध्यापक प्रोफेसर, क्लर्क कर्मचारी के रोजगार छीन लेने वाली है।
पांचवें टी.वी. इंटरनेट की इस डिजिटल शिक्षा से 2020 की नई शिक्षा नीति में घोषित सभी को एक व्यवसाय के साथ शिक्षा देने व बचपन में खेल कूद के माध्यम से शिक्षा देने का लक्ष्य भी पूरा होने वाला नहीं है। हाँ, नई शिक्षा नीति की घोषणा के अनुसार 2030 तक कक्षा 12 तक की सबको शिक्षा प्राप्त करने का और 2035 तक 50% को उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर सरकार इंटरनेट से उपलब्ध करा देगी। अब चाहे कोई पढ़ पाये या न पढ़ पाए अथवा सर्टिफिकेट व डिग्रिया ले ले, चाहे उसे पढ़ना, लिखना, ज्ञान, अनुशासन आये या न आये। लेकिन सरकार को यह दावा करने का अवसर जरूर मिल जायेगा कि उसने सबके लिए सार्वभौम शिक्षा मुहैया करा दिया है।
डिजिटल के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य है कि डिजिटल शिक्षा अथवा डिजिटल चिकित्सा या बैंकिंग व दूसरे व्यवसाय के मौलिक संचालक व नियंत्रक गूगल, फेसबुक, व्हाट्सएप, इंटरनेट आदि डिजिटल संसाधनों स्रोतों पर अधिकाशत अमेरिकी पूजी सम्राटों का मालिकाना व नियंत्रण है। भारत जैसे देशों के पास ये मूल संसाधन नहीं है। गूगल आदि के माध्यम व स्रोत से ही शिक्षा, समाचार, सूचनाएं आदि प्राप्त करने के लिए हम भारतवासी मोबाइल, कम्प्यूटर लैपटॉप आदि का प्रयोग करते हैं और कम्प्यूटर, लैपटॉप, स्मार्टफोन आदि व उनके कोर पार्ट्स (प्रमुख पुर्ज) भी अमेरिकी कम्पनियों या उनकी शाखा साझीदार कोरियाई, जापानी, चीनी कम्पनियों के बने होते हैं। अब गूगल, फेसबुक आदि जिस तरह सूचनाओं के आदान प्रदान पर नियंत्रण करते हैं वैसे ही शिक्षा ज्ञान पर भी नियंत्रण करते हैं व करेंगे। केन्द्र सरकार उनसे सहयोग साझेदारी करने में जिओ एयरटेल आदि देशी कम्पनियों को अधिकार देती रही हैं व सहयोग करती रही है। एवं राज्य सरकारें छात्रों आदि को उनके फायदे के नाम पर कम्प्यूटर, लैपटॉप, स्मार्टफोन आदि मुफ्त बांटती रही हैं। प्रचारों अनुसार इनका उपयोग ज्यादातर छात्र नौजवान हानिकारक गेम खेलने व समाज विरोधी व्यवहार सीखने में कर रहे हैं। जबकि लैपटॉप आदि खरीदकर सरकार देशी विदेशी पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाती है और लपैटॉप स्मार्टफोन, कम्प्युटर आदि के रिचार्ज से उनके लगातार मुनाफा कमाने की व्यवस्था कर देती हैं। अतः एक तो डिजिटल शिक्षा के संसाधनों की बिक्री व रिचार्ज किराये से अमेरिका आदि के साम्राज्यवादी पूंजीपति व उनसे जुड़े देशी पूंजीपति लाभखोरी के लक्ष्य को पूरा करेंगे और कर्ज देकर सूदखोरी करेंगे। मुख्यतः उनके इन्हीं लक्ष्यों के लिए केंद्र सरकार इस बजट से डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा दे रही है।
दूसरे, अमेरिका आदि के प्रभुत्व वाले यूनेस्को के एजेंडे के अनुसार लागू नई शिक्षा नीति 2020 के द्वारा सरकार ने कक्षा 6 से लेकर पोस्टग्रेजुएट तक मुख्यतः तकनीकी, कम्प्यूटर, कृत्रिम बुद्धि या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीनों से शिक्षण आदि का प्रावधान किया है। अब ऐसी शिक्षा के लिए स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक सरकार इस बजट से डिजिटल शिक्षा की तरफ तेजी से बढ़ रही है। इससे एक तो, देशी विदेशी पूंजीशाहों के लिए विशेषज्ञ एवं कुशल व सस्ते श्रमिक तैयार होंगे। दूसरे तकनीकी शिक्षा के अलावा युवा भारतीय समाज में डिजिटल शिक्षा अमेरिकी नेतृत्व वाले पश्चिमी साम्राज्यवादियों को अपने सिद्धांत विचार, संस्कार, संस्कृति, राजनीतिक शिक्षा विचार फैलाने का अवसर व अधिकार प्रदान करेगी। राष्ट्रवाद की जगह विश्वीकरण का विचार तेजी से फैलाएगी. जातिवाद, दलितवाद, धर्मवाद, क्षेत्रवाद, महिलावाद, पर्यावरणवाद के विचार व्यवहार के फैलाव को तेज करेगी। इससे एक और उच्च तबकों में अमेरिका आदि के प्रति आकर्षण और अधिक बढ़ेगा तथा दूसरी और राष्ट्र व समाज में जातीय, धार्मिक क्षेत्रीय, पारिवारिक अलगाव, टूटन बढ़ेगी।
सरकार ने इस बजट से अमेरिका, इंग्लैण्ड आदि के विश्वस्तरीय विदेशी विश्वविद्यालय व संस्थान व गैर सरकारी अनुमति व नियम के गिफ्ट सिटी (गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस-टेक सिटी) में वित्तीय प्रबंधन, वित्तीय तकनीक, तकनीक, इंजीनियरिंग व गणित में अपनी शाखायें स्थापित करने की व्यवस्था भी किया है। स्वभावतः उनकी स्थापना वहाँ के पूँजीसम्राटों की वित्तीय पूँजी से होनी है। अंग्रेजी अखबार द हिन्दू, 3 मार्च 2022 के अनुसार भारत सरकार भी इन विदेशी शिक्षा संस्थानों को अपने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केन्द्र से वित्तीय मदद देगी। इनसे विश्वस्तरीय सबसे उन्नत तकनीक हासिल करने का दावा है लेकिन अभी तक आर्थिक क्षेत्र में अमेरिका आदि अपने यहाँ पुरानी पड़ गई मशीन तकनीक भारत के पूँजीशाहों को बेचते रहे हैं। उसी तरह प्रबंधन, वित्त तकनीक आदि की शिक्षा में भी वे पुरानी पड गई शिक्षा तकनीक ही देंगे। इससे भारत शैक्षिक तकनीक, वित्तीय तकनीक, प्रबंधन तकनीक, इन्जीनियरिंग तकनीक आदि में पिछड़ा ही रहेगा। परिणामस्वरूप अमेरिका आदि
पश्चिमी साम्राज्यवादीयों पर और अधिक निर्भर होता जायेगा। सरकार आत्मनिर्भरता व राष्ट्रवाद का नारा लगाते हुए देश को पूर्ण परनिर्भरता की ओर ले जाती रहेगी। साथ ही इन विदेशी विश्वविद्यालयों की महंगी शिक्षा एवं उच्च अतरीय डिजिटल शिक्षा इस देश के धन्नाढ़ वर्ग के लड़के लड़किया ही ग्रहण कर सकेंगे। वही अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में मैनेजर डाइरेक्टर इंजीनियर बन सकेंगे, प्रशासनिक अधिकारी, प्रोफेसर डॉक्टर बन सकेंगे। वे अमेरिका आदि की शिक्षा संस्कृति में ढलकर पश्चिमी देशों के विकास आदि का गुणगान और अधिक करेंगे तथा भारत व उसकी आम जनता को पिछड़ा बताते रहेंगे।
अत इस बजट में प्रस्तावित डिजिटल शिक्षा, डिजिटल विश्वविद्यालय या विदेशी विश्वविद्यालयों को खुली छूट देश के व्यापक गरीब व निम्नमध्यमवर्गों को शिक्षा ज्ञान से बंचित रखने वाली है तथा चंद धन्नाढ़ उच्च वर्गों के लिए शिक्षा ज्ञान को केंद्रित करने वाली है। साथ ही देशी विदेशी पूंजीपतियों के लिए डिजिटल संसाधन, उपकरण बेचकर, उसके लिए कर्जा देकर व उनपर मूल्य, रिचार्ज किराया वसूलकर लामखोरी व सूदखोरी बढ़ाने वाली है (यह जाने कि सरकार का सबसे बड़ा बजट खर्च, 20% सूद व्याज की अदायगी है). शिक्षा पर उनका नियंत्रण स्थापित कराने वाली है और आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक, सामाजिक, सांस्कृतिक परनिर्भरता को और अधिक बढ़ाने वाली है।
मऊ (बाबूराम पाल) ।