डेरा बस्सी के पास मुबारक़पुर की एक फ़ैक्टरी में काम करने वाले नौजवान हरविंदर सैंटी की 17 मार्च को उस समय दर्दनाक मौत हो गई, जब उसका सिर एक मशीन के बीच फँस गया था। हादसा उस वक़्त हुआ जब मशीन की सफ़ाई हो रही थी और मशीन अचानक चालू हो गई। बताया जाता है कि हरविंदर की उम्र 18 साल थी।
पंजाब के विभिन्न हिस्सों में स्थित कारख़ाना उद्योग में लाखों स्थानीय और प्रवासी मज़दूर काम करते हैं। यहाँ आए दिन भयानक हादसे होते रहते हैं। सेवा क्षेत्र और कृषि क्षेत्र में भी ऐसा ही हो रहा है। उपरोक्त की तरह, बहुत कम दुर्घटनाएँ ही ख़बरों का हिस्सा बन पाती हैं।
काम के दौरान हादसों की परिघटना बहुत भयानक है। इस परिघटना के दोषी बिना किसी शक के पूँजीपति हैं। ज़्यादा-से-ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने की लालसा में वे सुरक्षा इंतज़ामों पर उचित ध्यान नहीं देते, ज़रूरी ख़र्च नहीं करते। खराब मशीनों को ठीक नहीं किया जाता है। आवश्यक उपकरण उपलब्ध नहीं कराए जाते और अन्य इंतज़ाम नहीं किए जाते। अधिक उत्पादन के लिए मज़दूर पर अधिक-से-अधिक भार डाला जाता है। बीमारी, बहुत ज़्यादा थकान होने पर भी काम कराया जाता है। ज़्यादा पैदावार के लिए बचाव-यंत्रों तक को हटा दिया जाता है। औद्योगिक हादसों में होने वाली मौतें वास्तव में ज़्यादा-से-ज़्यादा मुनाफ़े के लिए पूँजीपतियों द्वारा की जा रही हत्याएँ हैं।
इसके अलावा, मज़दूरों को श्रम क़ानूनों के तहत न्यूनतम मज़दूरी का भुगतान नहीं किया जाता है। ई.एस.आई., फंड, बोनस, छुट्टियों जैसे अधिकार नहीं दिए जाते हैं। मज़दूरों को मनमर्जी से काम से निकाल दिया जाता है। यहाँ तक कि किए गए काम के पैसे भी मार लिए जाते हैं। निर्माण क्षेत्र, कृषि और अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में भी मज़दूरों की यही कहानी है।
पंजाब में अब तक मौजूद सभी सरकारों ने इन लुटेरे पूँजीपतियों का साथ दिया है। उनके पक्ष में नीतियाँ बनाई हैं। मज़दूरों के अधिकारों का हनन, श्रम क़ानूनों में मज़दूर विरोधी बदलाव, श्रम विभाग के ढाँचे की हालत बिगाड़ कर, पूँजीपतियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई ना करके बल्कि अपने अधिकारों की माँग कर रहे मज़दूरों के संघर्ष को कुचलकर अपने पूँजीपरस्त किरदार को बार-बार नंगा किया है।
अब ‘आप’ पार्टी की सरकार बनी है, जो बदलाव के बड़े-बड़े दावे कर रही है। ये दावे कितने खोखले, झूठे हैं इसका इससे बड़ा क्या सबूत हो सकता है कि पंजाब की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी उद्योग, कृषि और सेवा क्षेत्रों में काम करने वाले मज़दूरों के श्रम अधिकारों के हनन के ख़िलाफ़, ज़्यादा संवैधानिक श्रम अधिकार देने के पक्ष में, पूँजीपतियों की ओर से हो रही बर्बर लूट खसोट पर लगाम लगाने के लिए इसके किसी भी नेता ने आज तक एक शब्द भी नहीं कहा है।
भगवंत मान ने भी पंजाब के मुख्यमंत्री बनने से पहले या बाद में पूँजीपतियों के ख़िलाफ़ एक शब्द भी नहीं कहा। इसके बजाय ‘आप’ ने बड़े पैमाने पर पूँजीपतियों को पार्टी में शामिल किया है। अमन अरोड़ा, राघव चड्ढा जैसे पूँजीपतियों को पार्टी नेतृत्व में बड़ी संख्या में लिया गया है, विधायक बनाया है। उद्योगपति संजीव अरोड़ा और लवली यूनिवर्सिटी के मालिक अशोक मित्तल को राज्यसभा भेजा गया है।
सरकारी विभागों में ठेका कंपनियों द्वारा रखे कर्मचारियों, कारख़ानों, खेतों, निर्माण परियोजनाओं, स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और अन्य कार्यस्थलों के कर्मचारियों की दुर्दशा इन्हें दिखाई नहीं देती है। भारी मुनाफ़े के लिए मज़दूरों की जान जोखिम में डालने वाले, सुरक्षा इंतज़ामों की धज्जियाँ उड़ाकर मज़दूरों की जान जोखिम में डालने वाले, मज़दूरों को अपंग बनाने वाले पूँजीपतियों को फाँसी पर लटका देना चाहिए। लेकिन ‘आप’ नेता सीधे तो क्या पूँजीपतियों को उल्टा टाँगने की बात भी नहीं करते। इसके विधायक या मंत्री साधारण सरकारी कर्मचारियों पर रौब झाड़ने की ही औक़ात रखते हैं, उन्हें ही उल्टा टाँगने की धमकी दे सकते हैं।
‘आप’ पार्टी वैश्वीकरण-उदारीकरण-निजीकरण की जनविरोधी और पूँजीपरस्त नीतियों से सहमत है। ना तो केजरीवाल, ना भगवंत मान और ना ही ‘आप’ के किसी नेता ने मोदी सरकार द्वारा दर्जनों पुराने श्रम क़ानूनों को ख़त्म करके, चार श्रम क़ानून बनाकर अनेकों क़ानूनी श्रम अधिकारों को समाप्त करके मज़दूरों को और अधिक पूँजीवादी गु़लामी में धकेलने का विरोध नहीं किया। पहले अंतरिम बजट में श्रम विभाग के लिए सिर्फ़ 8 करोड़ रुपए रखकर मान सरकार ने मज़दूरों से घटिया मज़ाक़ किया है। सरकार ने यह पैसा भी सड़क हादसों संबंधी मुआवज़ा देने जैसे कामों में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। आप की दिल्ली सरकार ने मज़दूरों के संवैधानिक श्रम अधिकारों को लागू करने के लिए कुछ नहीं किया। वहाँ भी मज़दूरों को पहले की तरह लूटा जा रहा है। इसके बजाय, गिरीश सोनी जैसे पूँजीपतियों को श्रम मंत्री भी बना दिया जाता है, जिनके अपने चमड़े के कारख़ानों में श्रम क़ानून लागू नहीं होते हैं। दिल्ली सरकार ने मज़दूरों का ख़ून निचोड़ने वाली ठेका व्यवस्था को ख़त्म करने से साफ़ इनकार कर दिया। 17 फ़रवरी 2014 को, पूँजीपतियों के संगठन सी.आई.आई. की बैठक में केजरीवाल ने कहा था कि अगर उनकी सरकार बनी तो पूँजीपतियों को व्यापार करने का बेहतर मौक़ा दिया जाएगा। उसने कहा था कि विभिन्न विभागों के इंस्पेक्टर जाँच-पड़ताल करके पूँजीपतियों को परेशान करते हैं। उसने निठल्ले-लुटेरे पूँजीपतियों को बेहद मेहनती और ईमानदार बताते हुए कहा कि वे 24 घंटे काम करते हैं। यह है केजरीवाल एंड कंपनी की सच्चाई जो बहुत पहले सामने आ चुकी है।
‘आप’ नेताओं ने हमेशा पूँजीपतियों के भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने की कोशिश की है। आप नेता केवल सरकार के भीतर भ्रष्टाचार की बात करते हैं। उनके लिए भ्रष्टाचार का मतलब केवल रिश्वतखोरी है। रिश्वतखोरी के मामले में भी, वे पूँजीपति वर्ग द्वारा दी जाने वाली मोटी रिश्वत के मुद्दे को प्रचार या कार्रवाई का मुद्दा नहीं बनाते हैं। उन्होंने पूँजीवादी व्यवस्था को कभी कटघरे में नहीं खड़ा किया। सरकारी तंत्र में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के अन्य रूपों के माध्यम से पूँजीपति वर्ग जो बेहिसाब फ़ायदा उठा रहा है, उसके बारे में ये चुप हैं।
सच तो यह है कि मज़दूरों की लूट ही सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है। यह सभी प्रकार के भ्रष्टाचार की जड़ है। रिश्वतखोरी भी भ्रष्टाचार का ही एक रूप है। यह मज़दूरों की मेहनत की कमाई को लूटने का एक साधन है। यह श्रम की लूट के माध्यम से अन्य लुटेरों द्वारा की गई कमाई में हिस्सा हासिल करने का एक साधन है।
आज पंजाब समेत पूरे देश में पूँजीपतियों द्वारा मज़दूरों की लूट के कारण ग़रीबी और बदहाली की भयावह स्थिति पैदा हो गई है। इन भयानक परिस्थितियों के प्रति लोगों के मन में तीव्र आक्रोश है। परिवर्तन की प्रबल इच्छा है। सभी समस्याओं की जड़ में पूँजीवादी लूट के ख़िलाफ़ जागरूकता बढ़ती जा रही है। लोग शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं, बिजली, परिवहन, रोज़गार और विभिन्न अन्य लाभों (बेरोज़गारी भत्ता, वृद्धावस्था पेंशन, आदि) के लिए लंबे समय से संघर्ष करते आए हैं। इन परिस्थितियों में, पूँजीपति वर्ग को किसी तरह जनता के ग़ुस्से को शांत करने की ज़रूरत है। यह क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए लोगों के संघर्ष से डरता है।
इसलिए तीसरा झूठा विकल्प पेश करके लोगों का ग़ुस्सा निकाला गया है। पूँजीपति वर्ग ने इसके लिए बहुत पैसा ख़र्च किया है। मीडिया के माध्यम से ‘आप’ ने पार्टी को उभारा है और अन्य भ्रष्ट तरीके़ अपनाए हैं। बुर्जुआ वर्ग जानता है कि सिर्फ़ जनता के ग़ुस्से को ठंडा करने के लिए अकाली-कांग्रेस को हराना काफ़ी नहीं है। खराब हालात और लंबे समय से चले आ रहे छोटे-बड़े संघर्षों और अब कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ संघर्ष ने लोगों की बदलाव की इच्छा को इस हद तक बढ़ा दिया है कि कुछ रियायतों (मुफ़्त बिजली आदि) के कुछ ठंडे पानी के छींटे मारने पड़ेंगे। इसलिए, ‘आप’ सरकार ने लोगों को रियायतों की जो घोषणाएँ की हैं, उसका कारण इसका जनपक्षधर चरित्र नहीं है।
जनता के संघर्ष ने ही उन्हें ये रियायतें देने के लिए मजबूर किया है। लेकिन यह भी सच है कि पूँजीपति वर्ग इन रियायतों को कम-से-कम रखने की पूरी कोशिश करेगा और पहले से जारी और अब दी जा रही थोड़ी-बहुत रियायतों को भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष ढंग से छीनने के लिए पूरा ज़ोर लगा देगा।
इसलिए आप सरकार को मज़दूरों और अन्य मेहनतकशों को अपनी सरकार नहीं माननी चाहिए। यह पूँजीपतियों की, पूँजीपतियों के लिए, पूँजीपतियों द्वारा चलाई जा रही सरकार है। अन्य पार्टियों की तरह इस पार्टी का रिमोट कंट्रोल भी पूँजीपतियों के पास ही है। इसलिए इस सरकार से यह उम्मीद ना पालें कि यह लुटेरे दमनकारी पूँजीपतियों पर कोई कार्रवाई करेगी। पूँजीपतियों और उनकी सरकार के ख़िलाफ़ एकजुट होकर और लड़कर ही मज़दूरों को अपने अधिकारों की रक्षा करनी होगी, और अन्य अधिकार लेने होंगे।
– लखविंदर
मुक्ति संग्राम – बुलेटिन 17 ♦ अप्रैल 2022 में प्रकाशित