एक आदमी ने शादी के बाद पत्नी को दो पेज की एक लिस्ट दे दी. और उसे कहा कि
“मैं तुम्हें सारे अधिकार दे रहा हूं.
तुम कुछ भी कर सकती हो. कुछ भी खा सकती हो, कोई भी ड्रेस पहन सकती हो. सारे रुपये पैसे / गहने तुम्हारे है. तुम कभी भी खर्च कर सकती हो. तुम मन चाहे तब बाहर जा सकती हो. कुछ भी पढ सकती हो, लिख सकती हो. फोन पर किसी से बात कर सकती हो, मतलब तुम्हें सारे अधिकार है!”
पत्नी तो खुश हो गयी!
दूसरे दिन पति सुबह ऑफिस चला गया. पत्नी ने अच्छी सी ड्रेस पहनी और सोचा कि बाजार जाकर कुछ फल और आइसक्रीम लाती हूं.
सास ने दरवाजे पर ही रोका और कहा कि तुम ये ड्रेस पहनकर बाहर नहीं जा सकती, कहां जा रही हो? कुछ भी खरीदने से पहले मुझे पूछना पडेगा.
बहु ने कहा कि आपके बेटे ने मुझे सारे अधिकार दे दिये हैं, देखो ये लिस्ट. उन्होंने खुद अपने हाथों से लिखकर मुझे दी है.
कमरें में आकर ससुर जी ने कहा कि “लाओ लिस्ट मुझे दिखाओ!”
अधिकारों की लिस्ट पढकर ससुर जी ने कहा कि “ये लिस्ट में जो अधिकार दिये हैं, उसका उपभोग करने से पहले तुम्हें हमारी परमिशन लेनी होगी!”
दूसरे दिन से बहु ने परमिशन लेकर अधिकार मांगने शुरु किये.
एक हफ्ते में सास ससुर ने सारे अधिकारों पर परमिशन देने से मना कर दिया, और कहा कि “तुम झाडु पोंछा करो, हमारी सेवा करो, हमारे लिए खाना पकाओ, बस इतना ही करो.”
बहु ने अपने पति को सारी बात बताई. पति ने कहा कि “मैंने तो अधिकार दे दिये, और मैं कुछ नहीं कर सकता हूं. तुम्हें अधिकार चाहिए तो तुम उनसे परमिशन लेकर अधिकारों का इस्तेमाल करो.”
क्या इस कहानी में पति ने वास्तव में पत्नी को कोई अधिकार दिये हैं?
क्या अधिकारों की लिस्ट बना देने से अधिकार मिल जाते हैं?
क्या अधिकारो की लिस्ट बना देना कोई महान कार्य है?
क्या अधिकारों की लिस्ट बना देने वाले पति को महान मानकर पत्नी को उसकी पूजा करनी चाहिए?
ये कहानी भारत की जनता और संविधान की है.
कहते हैं कि संविधान में सारे अधिकार दिये गये हैं, लेकिन वास्तव में कहां है ये अधिकार?
सनकी तानाशाहों के आदेशों से डर डर कर रहना, उन्मादी भीड़ से बचकर रहना, दिन रात मेहनत करने के बाद भी दो वक्त की रोटी ना जुटा पाना, पचास जगह चक्कर काटने के बाद भी नौकरी ना मिल पाना, बलात्कारियों से बचाकर अपने परिवार की महिलाओं को रखना- क्या ये अधिकार दिये हैं संविधान ने?
कुछ भी बोलने लिखने से कभी भी जेल में ठूंस दिये जाते हैं.
हड़ताल आंदोलन करने के लिए परमिशन लो, अन्याय के खिलाफ कोर्ट में लडतो रहो, कोई सुनवाई नहीं!
क्या ये है हमारे संवैधानिक अधिकार?
क्या मिला है हमें इस संविधान से?
क्या हमारा संविधान सिर्फ एक लिस्ट नहीं है?