द्वारा : गिरीश मालवीय
जिग्नेश मेवाणी का मामला बताता है कि भाजपा किस तरह से अपने राजनितिक विरोधियों को निपटाने के लिए घटिया हथकंडे अपनाती है।
कल असम की अदालत ने गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी को एक महिला कांस्टेबल पर कथित हमले के “बनावटी मामले” में फंसाने की कोशिश करने के लिए राज्य पुलिस की कड़ी आलोचना की है।
लेकिन सवाल तो पहले यह खड़ा होता है कि गुजरात का एक निर्दलीय विधायक को, हजार किलोमिटर दूर असम राज्य की पुलिस ने गिरफ्तार ही क्यों किया ?
दरअसल 10 दिन पहले असम पुलिस ने कांग्रेस विधायक को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के आरोप में गिरफ्तार किया था, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, “गोडसे को भगवान मानते हैं, उनको गुजरात में सांप्रदायिक झड़पों के खिलाफ शांति और सद्भाव की अपील करनी चाहिए.”
इस गिरफ्तारी पर असम पुलिस की तरफ से बयान जारी किया गया कि एक विशेष समुदाय की भावनाओं को आहत करने की वजह से गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी को गिरफ्तार किया गया था. एक अखबार के अनुसार पुलिस सूत्रों ने नाम न छापने की शर्त पर एएनआई को बताया, ‘मेवाणी द्वारा आईपीसी 295 (ए) के तहत किया गया प्राथमिक अपराध धर्म की भावनाओं का अपमान है.
अपने ट्वीट के माध्यम से उन्होंने नाथूराम गोडसे की तुलना भगवान से की.’
मात्र इस ट्वीट के आधार पर असम पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। पिछले हफ्ते बुधवार रात करीब 11:30 बजे बनासकांठा के अप पालनपुर सर्किट हाउस में मेवाणी को हिरासत में ले लिया और उन्हें तुरंत ही हवाई मार्ग से असम ले जाया गया.
कोई दमदार मामला नहीं था, इसलिए कोर्ट ने इस सोमवार को ही जिग्नेश मेवाणी को जमानत दे दी ……। कायदे से उन्हें छोड़ देना चाहिए था, लेकिन आप “नीचता” की सीमा देखिए कि तुरंत ही असम पुलिस ने उन पर एक और चार्ज ठोक दिया…….। जमानत के कुछ ही देर बाद जिग्नेश मेवाणी पर दूसरे थाने में दर्ज महिला पुलिसकर्मी के साथ बद्तमीजी और शील भंग करने की कोशिश करने के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया था.
इस गिरफ्तारी के बाद जिग्नेश को कोर्ट में पेश किया गया, जहां उन्हें 5 दिन की पुलिस रिमांड पर भेजा गया.
कल इस मामले की बारपेटा सेशन कोर्ट में सुनवाई थी, लेकिन जिस महिला कॉन्स्टेबल पर हमले का आरोप लगाया गया था, उसने अदालत के सामने सच बता दिया और पुलिस की कहानी की पोल खुल गई!
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि “FIR (प्रथम सूचना रिपोर्ट) के विपरीत, महिला कॉन्स्टेबल ने विद्वान मजिस्ट्रेट के सामने एक अलग कहानी बताई है… । महिला की गवाही को देखते हुए ऐसा लगता है कि आरोपी जिग्नेश मेवाणी को लंबी अवधि के लिए हिरासत में रखने के उद्देश्य से तत्काल मामला बनाया गया है. यह अदालत की प्रक्रिया और कानून का दुरुपयोग है।
अदालत ने कहा कि दो अन्य पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में महिला पुलिस अधिकारी का शील भंग करने की मंशा का आरोप आरोपी के खिलाफ नहीं लगाया जा सकता, जब वह उनकी हिरासत में था और जिसे किसी और ने नहीं देखा.
बारपेटा सेशन कोर्ट ने मेवाणी को जमानत देने के अपने आदेश में गुवाहाटी हाईकोर्ट से राज्य में हाल के दिनों में पुलिस की ज्यादतियों के खिलाफ एक याचिका पर विचार करने का भी अनुरोध किया.
अब आप समझ सकते हैं कि वाल्टेयर ने क्यों कहा था कि “जब सरकार ग़लत हो तो आपका सही होना ख़तरनाक होता है!”