अंधविश्वासी मनुष्य और गधा (कहानी)

दैनिक समाचार

मूरति धरि धंधा रखा, पाहन का जगदीश!
मोल लिया बोलै नहीं, खोटा विसवा बीस!!

अंधविश्वासी मनुष्य और गधा! दोनों में कौन गधा है और कौन मनुष्य?
स्पष्ट करने वाला प्रेरक प्रसंग!

एक गरीब व्यक्ति बहुत परेशान था, दिन-रात मजदूरी करता-करता बहुत थक चुका था लेकिन उसके जीवन से यह कठोर परिश्रम करना रुक ही नही रहा था,न ही उसकी आजीविका चल पा रही थी।
इसके समाधान के लिए वह गरीब व्यक्ति पास ही जगंल मे एक महात्मा के पास गया और दंडवत प्रणाम करके महात्मा से बोला, हे साधू महाराज मुझे कोई ऐसा तरीका बताएं ताकि मेरी परेशानी थोडी कम हो सके और जिंदगी जीना आसान हो सके!
महात्मा को उस पर दया आ गई, उन्होंने उसे एक गधा देकर कहा कि आज के बाद तू इससे अपना काम करवा सकता हैं! गरीब मजदूर बहुत खुश हुआ हैं उसने सोचा कि अब उसका बोझ गधा उठायेगा इससे उसे बहुत राहत मिलेगी और वो अधिक काम भी कर सकेगा। उसने साथू का धन्यवाद अदा किया और गधा अपने साथ ले गया!
लेकिन गधा कमजोर था इसलिए ज्यादा दिन जिंदा न रह सका और एकदिन सामान शहर जाते समय गधा रास्ते में ही मर गया।
मजदूर को बहुत दुःख हुआ उसने गधे को साधू महाराज की ओर से मिले इस उपहार यानि उस गधे की वहीं समाधि बनाई पूरी विधि के साथ उसका अंतिम संस्कार किया तथा वहीं बैठकर हाथ ऊपर की ओर करके आँखे बंद करके वह मजदूर अपनी बदकिस्मती के बारे में सोचकर दुखी हो रहा था कि भगवान बड़ी मुश्किल से एक सहारा मिला था वो भी साथ न रहा?
इतने में एक राहगीर वहाँ से गुजरा, उस मजदूर को प्रार्थना वाली मुद्रा में बैठे देखकर उस राहगीर को महसूस हुआ कि जरुर यह कोई दिव्य स्थान हैं, तब ही यह आदमी यहाँ इस तरह ध्यान की मुद्रा में बैठा प्रार्थना कर रहा हैं। इसलिए उस राहगीर ने भी समाधि स्थल पर झुककर मस्तक टेका और कुछ रूपये चढ़ा कर चला गया, उसे यह करता देखकर और भी कई राहगीरो ने यही किया!
देखते ही देखते दिनभर में काफी रुपये इक्कट्ठा हो गये. इतना धन तो वह दिन रात कड़ी मेहनत करके भी नहीं कमा पाता था!
मजदूर वो सारा धन लेकर महात्मा के पास गया और चरणों में बैठकर सारी बात विस्तार से बताकर पश्चाताप करने लगा कि महाराज मैंने तो उस गधे की समाधि इसलिए बनवा दी थी कि आपके द्वारा भेंट का तिरस्कार कैसे करता, तथा उस गधे की मेहनत और अपने दुख का सहारा पाकर मुझे भी उस गधे से मोह हो गया था। इसलिए उसके प्रति मोह ने मुझसे ऐसा काम करा दिया।
महात्मा सारी बातें सुनकर मुस्कुराये, उन्होंने मजदूर के सिर पर हाथ रखते हुये कहा कि तू दुखी क्यूँ होता हैं वो गधा जीते जी तुझे जो ना दे सका, वो मरकर दे रहा हैं।
यह तेरी सूझबूझ और मेहनत ने गधे को भी पूजनीय बना दिया तथा तेरी किस्मत को भी चमका दिया। लेकिन मत भूल कि यह सब मेरी तपस्या के कारण ही संभव हुआ है, क्योंकि वह कोई साधारण गधा नहीं था बल्कि वर्षो की तपस्या के बाद प्राप्त हुआ व अभिमंत्रित किया हुआ सिद्ध गधा था। इसलिए उसे गधा कहना भी पाप होगा क्योंकि पिछले जन्म में वह गधा एक महान साधू और तपस्वी था परन्तु किसी गलती और श्राप के कारण इस जन्म में गधा बन गया था।
*मजदूर ने कहा महाराज अब मेरे लिए क्या आदेश है, लोगों को सच्चाई बताकर कल से अपना वही मेहनत मजदूरी वाला काम धंधा शुरू कर देता हूं।
साधू के चेहरे पर कूटिल मुस्कान थी, उसने कहा गधा वो नही था, गधा तो तू है, तुझमे इतनी भी समझ नहीं है?
साधू ने कहा आज से मेरी तपस्या और सिद्धि पूरी हुई, आज के बाद हमारी कुटिया वहीं उस गंदर्भ महाराज की समाधि के पास बनेगी और हम वहीं तपस्या किया करेंगे, तथा तू पूरी श्रद्धा से उस समाधि की साफ सफाई करने का कार्य किया करेगा।
मगर याद रखना जो आज के बाद तूने किसी को भी इस समाधि या गधे की कहानी के बारे में बताया तो अगले तीन जन्मो तक तूझे गधा बनकर बोझा ढोना पड़ेगा!
तेरे सारे कष्टों का निवारण और खाना खर्चे का इंतजाम अब गंदर्भ महाराज ही किया करेंगे, लेकिन तू पूरी लगन और श्रद्धा व आस्था से इस पूर्व जन्म के महान तपस्वी साधू की सेवा और प्रचार भी करना होगा! लोगों को बताना होगा कि कैसे तुझ जैसे तुच्छ मजदूर की जिन्दगी में इस महान साधू और दिव्य स्थान की वजह से खुशहाली आयी है। ताकि जगत के तुझ जैसे बाकी दुखी इन्सानो की भी जिंदगी खुशहाल हो सके!
*आज भी बहुत गधों की वजह से बहुत सारे गधों को ठगकर कुछ चालाक व धूर्त लोगो की आजीविका मजे से चल रही है।लेकिन मनुष्य रुपी गधों को आजतक भी यह बात समझ नहीं आती है कि वो गधे बनकर खुद लुट रहे हैं। क्योंकि प्रचार करने वाले इस मजदूर जैसे ही लोग उनके आसपास मिल जाते हैं। जो प्रचार करने में कोई भी कसर बाकी नहीं छोडते हैं।
इसी भेडाचाल में धर्म और आस्था व श्रद्धा के नाम पर लूटते जा रहे हैं और अंधविश्वास के अंधे कुएं में गिरते जा रहे हैं।*
उस साधू द्वारा ऊस मजदूर को तो यही समझाया गया था कि अब मनुष्य में अंधश्रद्धा इतना व्यापक रूप ले चुकी हैं तो उसमे तेरा क्या दोष? तू इस धन का सही कार्य में उपयोग कर लेकिन तुझे यह तो समझ आ ही गया होगा कि श्रद्धा व आस्था के नाम पर लोगों को कैसे मूर्ख बनाया जाता है क्योंकि लोग खुद मूर्ख है उन्हे बनवाए की भी जरूरत नहीं पड़ती है।
इसीलिए धूर्त और चालाक लोग धर्म के नाम पर भोलेभाले लोगों को किस प्रकार से लूट रहे हैं? परन्तु तेरा फर्ज है कि तेरी शरण में आये लोगो को इस अंधविश्वास से पहचान कर, लोगो को सही ज्ञान दे. बस व्यर्थ के आडम्बर और चमत्कार में मत पड़ना चाहिए।

अंधविश्वास आज एक अभिशाप बन चुका हैं जो देश की जड़ो को कमजोर कर रहा हैं और कहीं ना कही मनुष्य को कर्मठ और मेहनतकश बनाने की बजाय भाग्यवादी बना रहा हैं. इसे समझने एवम आस-पास के लोगो को समझाने की जरूरत हैं!
यह आपको निर्माण करना है कि आप भी तो गधे नहीं बनते जा रहे हैं या कितने प्रतिशत मनुष्य बचे हैं?

(साभार)

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