यह महीना मुत्तक़ी यानी संयमशील बनाने की ट्रेनिंग के लिये आया था। ज़रा ग़ौर कीजिएगा,
◆ सूरज उगने के क़रीब डेढ़ घंटे पहले खाना-पीना बंद और तब तक बंद जब तक कि सूरज ग़ुरूब (अस्त) न हो जाए। कोई सरकारी फ़ोर्स नहीं, कोई सज़ा नहीं, जुर्माना नहीं, कोई इंसान रोकने वाला नहीं, सिर्फ़ अल्लाह के हुक्म की तामील के लिये, घर में खाने-पीने की चीज़ें मौजूद होते हुए रोज़ेदारों ने अपनी मर्ज़ी से खाना-पीना बंद किया। यह तक़वा है। यह सबक़ रमज़ान ने सिखाया।
◆ हर मुसलमान पर पाँच वक़्त की नमाज़ फ़र्ज़ है। हर नमाज़ से पहले वुज़ू करना फ़र्ज़ है। रोज़े की हालत में, तीन वक़्त की नमाज़ आती है; फ़ज्र, ज़ुहर और अस्र। वुज़ू के दौरान कुल्ली करना ज़रूरी है। सख़्त प्यास की हालत थी मगर मुँह में पानी भरा हुआ होने के बावजूद रोज़ेदारों ने एक क़तरा भी हलक़ के नीचे नहीं उतारा। इसका नाम तक़वा है। यह सबक़ रमज़ान ने सिखाया।
◆ रोज़े की हालत में शहवत (वासना) की भावनाओं को कंट्रोल किया जाए। शादीशुदा लोगों ने अपने जीवनसाथी को भी शहवत की नज़र से नहीं देखा। इसका नाम तक़वा है। यह सबक़ रमज़ान ने सिखाया।
◆ लोगों की ग़ीबत-चुग़ली नहीं की जाए। गाली-गलौज नहीं की जाए। किसी से झगड़ा न किया जाए। यह भी तक़वा में शामिल है। यह सबक़ भी रमज़ान ने सिखाया।
◆ ग़रीबों-मिस्कीनों और दीगर हक़दारों की ज़कात के ज़रिए मदद की जाए। उनकी तकलीफ़ों और मजबूरियों का एहसास किया जाए। सदक़ा-ए-फ़ित्र के रूप में ग़रीबों को ईदुल फ़ित्र की नमाज़ से पहले-पहले अनाज बाँटा जाए। यह सबक़ भी रमज़ान ने सिखाया।
◆ क़ुरआन पढ़ा जाए और उसको समझा जाए ताकि उसके मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारना आसान हो। यह दर्स भी रमज़ान ने दिया।
ख़ुशनसीब हैं वो मुसलमान जिन्होंने वाक़ई रमज़ान इस हाल में गुज़ारा, अल्लाह तआला उनकी इबादतों को और नेकियों को क़ुबूल फरमाए। आमीन! जिनसे कोताहियाँ हुईं अल्लाह तआला उन पर रहम फ़रमाए, उन्हें हिदायत दे और अच्छा मुसलमान बनाए। आमीन।
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