द्वारा : अकरम आजाद
पावों के छाले, आँखों के झाले
हाथ में धोती,एक लकुटी संभाले
राजपथ की सड़कों की पहुँच से दूर है
वही तो मजदूर है!
गली के नालों में,सर्दी के पालों में
लोहे के चद्दर,बर्तन की ढालों में
जो सुबह से शाम नित कर्मों में चूर है
वही तो मजदूर है!
जो खाता हो श्रम का,न कि दैरो-हरम का
मेहनत की रोटी,न कोई शरम का
जो पूजा-करम,कर्मकांडों से दूर है
वही तो मजदूर है!
पत्थर को तोड़ता,नदियों का रुख मोड़ता
एक एक ईंट रख, दीवारों को जोड़ता
धरती का पुत्र रोम पसीने से पूर है
वही तो मजदूर है!
जिनके कंधों पर,दुनिया का बोझ हो डली
जिनका जीवन,फटी ज़ेब सी हो चली
जिनकी वेदना से ज्यादा,खुदखुशी मशहूर है
वही तो मजदूर है!
चार-चार बेटियाँ, फटी हुई एड़ियाँ
मालिक के ताने मन पे पड़ी बेड़ियां
पर शाम तक कुँए को खोद लाता जरूर है
वही तो मजदूर है!
जो बना डाला हो दुनिया की हवाई चटाई
जिसके हिस्से में रिक्शे की कमाई तक न आई
जो मीलों दर मीलों पैदल चलने को मजबूर है
वही तो मजदूर है!
जो करता रहा ठाकुर के खेतों में काम
काट आया धूप में अपने जीवन की शाम
जिसके नाम का होता कर्ज़ ख़ाता जरूर है
वही तो मजदूर है!
जो अमीरों की अंगुलियों के, नग हैं तराशे
जो काम के वक्त कभी लिए नहीं खर्राटे
फिर भी जीवन जिसका, रहा कंडे का घूर है
वही तो मजदूर है!