दक्षिण में तिरुपति का मंदिर है. उस मंदिर ने काशी के मंदिरों को हरा दिया. प्रयागराज फीके पड़ गए. पुरी कोई नहीं जाता. कारण?
क्योंकि तिरुपति के मंदिर ने ठीक तुम्हारे मनोविज्ञान को समझ लिया.
तिरुपति के मंदिर का दावा है कि वहां तुम जो भी मांगोगे, मिलेगा.
और एक अनूठा दावा किया है. वह दावा यह है कि ‘काशी के मंदिर में भी मिलेगा, विश्वनाथ के मंदिर में भी मिलेगा, लेकिन परलोक में; और तिरुपति के मंदिर में मांगोगे तो इसी लोक में!
अब परलोक की किसको पड़ी है! परलोक में मिला कि नहीं मिला, क्या पता! और फिर मिलेगा भी परलोक में, इतनी देर कौन ठहर सकता है!
लोग चाहते है— अभी, यहां, नगद!
तिरुपति के मंदिर ने होशियारी की. उनका विज्ञापन बढ़िया है. उनका विज्ञापन यह है कि यहां, अभी मिलेगा!
इसलिए तिरुपति के मंदिर पर जितनी चढ़ौतरी चढ़ती है, दुनिया में किसी मंदिर में नहीं चढ़ती. ढाई लाख रुपया रोज औसतन!
क्यों लोग दीवाने हैं? फिर उन्होंने नई नई तरकीबें निकाल लीं. एक दफा सूत्र हाथ आ गया धंधे का, फिर उन्होंने नई—नई तरकीबें निकाल लीं.
तिरुपति के मंदिर के बाहर जो सिर घुटवाएगा, उसका बड़ा पुण्य लाभ है, उसका मोक्ष निश्चित है! तो कुछ ऐसा ही नहीं कि इसी जगत में मिलेगा! इस जगत का इंतजाम करना है तो इस जगत के नगद सिक्के देने पड़ेंगे. इस जगत में जो सिक्के चलते हैं, वही दोगे तो ही इस जगत के सिक्कों में पाओगे.
और उस जगत के लिए कुछ करना है तो कुछ और ढंग से करना पड़ेगा- सिर घुटवा लो!
लेकिन तुम जानते हो, तिरुपति के मंदिर में पुरुष भी सिर घुटवा लेते हैं, स्त्रियां भी, वे सब बाल बेचे जाते हैं, उनके दाम करोड़ों रुपये हैं प्रतिवर्ष!!
यह बाल बेचने का धंधा है. ये बुद्ध बने, सिर घुटा कर घर आ गए; इनको पता नहीं कि बाल इनके बिक गए, क्योंकि पश्चिम में बालों की बहुत मांग है! विग बनाए जाते हैं. लोग बुढ़ापे तक चाहते हैं कि बाल काले ही दिखाई पड़ते रहें, बड़े ही बने रहें; किसी को पता न चले कि बुढ़ापा आ गया.
स्त्रियां लंबे बाल चाहती हैं; तो उन सब बालों के लिए करोड़ों रुपये के बाल तिरुपति से बिकते हैं.
फिर जिनको परलोक में लड्डू पाने हैं, उनके लिए तिरुपति में लड्डू बिकते हैं— दस रुपये का एक लड्डू! एक रुपये का लड्डू दस रुपये में बिकता है और वह भी बामुश्किल से मिलता है!
और वह लड्डू जाकर चढ़ा दो तिरुपति पर, फिर पहुंच जाता है दुकान पर! और कहां जाएगा? फिर वहां दुकान से फिर बिकता है. एक-एक लड्डू लाखों बार बिकता है!
हर मंदिर के सामने सड़े गले नारियलों की दुकान होती है. सड़े गले इसलिए कि वे बड़े प्राचीन नारियल हैं. लोग रोज चढ़ाते हैं, रोज रात वापस दुकान पर आ जाते हैं!
इसलिए दुनिया भर में नारियलों के दाम बढ़ गए, लेकिन मंदिरों के सामने जो दुकाने हैं उनके नारियल के पुराने दाम ही चल रहे हैं.
सब चीजें आसमान को छू रही हैं, आकाश पर भाव बढ़े जा रहे हैं, एकदम पंख लग गये हैं, लेकिन सड़े गले नारियल हैं, उनमें भीतर कुछ है ही नहीं, वे कब के चढ़ रहे हैं! उनका काम ही केवल इतना है कि सुबह चढ़ जाना, रात वापस दुकान पर आ जाना, सुबह फिर चढ़ जाना, फिर रात वापस आ जाना.
कब तक इन थोथी बातों में उलझे रहोगे ? कब तक इन आशाओं को करते रहोगे ? तुम्हारी आशाएं कोई देवता पूरी नहीं करेगा— न तिरुपति का, न पूरी का, न काशी का, न अमरनाथ का….
असल में आशा/उम्मीद ही तो संसार है. तुम्हारी आशा के कारण ये सांसारिक देवता, ये पाखंड, ये अन्धविश्वास खड़े हो गए हैं.
♂ आर्यवीर