द्वारा : रवीन्द्र यादव
चर्चा में क्यों?
15 अगस्त, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ का नया वैश्विक केंद्र बानाने के लिये ‘राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन’ की स्थापना करने की घोषणा की है; जिसे प्राप्त करने का लक्ष्य आजादी के 100वें वर्षगांठ, यानी 2047 तक रखा गया है। हालांकि इससे पहले फरवरी 2021-22 के बजट में इसकी घोषणा की गई थी।
‘राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन’
इस मिशन के तहत हरित ऊर्जा संसाधनों के माध्यम से हरित हाइड्रोजन के उत्पादन पर ज़ोर दिया जाएगा तथा भारत की बढ़ती अक्षय ऊर्जा क्षमता को हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ा जाएगा। हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में सौर या पवन जैसे अक्षय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग किया जाता है। इसके अंतर्गत विद्युत द्वारा जल को हाइड्रोजन (H) और ऑक्सीजन (O2) में विभाजित किया जाता है तथा उपोत्पाद के रूप में जलवाष्प या जल प्राप्त होते है।
आखिर क्या होता है हाइड्रोजन?
हाइड्रोजन आवर्त सारणी का पहला और सबसे हल्का तत्त्व है। इसका वजन हवा से भी कम होने के कारण यह वायुमंडल में ऊपर की ओर उठती है। इसलिए यह शुद्ध रूप में बहुत कम ही पाई जाती है। एक मानक तापमान और दबाव पर हाइड्रोजन गंधहीन, स्वादहीन, रंगहीन, गैर-विषाक्त, अधातु तथा अत्यधिक ज्वलनशील द्विपरमाणुक गैस है। यह ऑक्सीजन के साथ दहन के दौरान हाइड्रोजन ईंधन एक शून्य-उत्सर्जक ईंधन के रूप में जाना जाता है। इसका प्रयोग फ्यूल सेल या आंतरिक दहन इंजन में होता है। अंतरिक्ष यान प्रणोदन के लिए ईंधन के रूप में भी इसका उपयोग किया जाता है। इसका वर्गीकरण ‘ग्रे हाइड्रोजन’, ‘ब्लू हाइड्रोजन’ तथा हरित हाइड्रोजन के रूप में किया जाता है।
ग्रे हाइड्रोजन भारत में होने वाले हाइड्रोजन उत्पादन में सबसे अधिक है। इसे हाइड्रोकार्बन, यानी जीवाश्म ईंधन व प्राकृतिक गैस से प्राप्त किया जाता है, जिसका उपोत्पाद CO2 है; जबकि ब्लू हाइड्रोजन जीवाश्म ईंधन से प्राप्त होता है। इसके उत्पादन में उपोत्पाद को सुरक्षित रूप से संग्रहीत कर लिया जाता है। अतः यह ग्रे हाइड्रोजन की तुलना में बेहतर माना जाता है। इसका उपोत्पाद CO एवं CO2 दोनों है।
इस मिशन को लाने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए हर साल 12 लाख करोड़ रुपए से अधिक खर्च करता है। बिजली एवं ऊर्जा क्षेत्र बुनियादी ढांचा के सबसे बड़े घटकों में से एक हैं। भारत को एक स्थायी आर्थिक विकास की राह में आगे बढ़ने के लिये ऊर्जा सुरक्षा में सुधार के साथ-साथ ऊर्जा तक पहुंच को भी सुनिश्चित करना होगा। हालांकि भारत ने इस दशक के अंत तक, यानी 2030 तक रिन्यूएबल एनर्जी के 450 गीगावाट (GW) का लक्ष्य तय किया है। इसमें से 100 गीगावाट (GW) के लक्ष्य को भारत ने तय समय से पहले ही प्राप्त कर लिया है।
इस दिशा में अंतर्राष्ट्रीय प्रयास
अगर एशिया-प्रशांत क्षेत्र में देखा जाय तो जापान और दक्षिण कोरिया हाइड्रोजन नीति बनाने के मामले में पहले पायदान पर हैं। जहां वर्ष 2017 में जापान ने बुनियादी हाइड्रोजन रणनीति तैयार कर एक अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला की स्थापना की है, वहीं दक्षिण कोरिया अपनी हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था विकास तथा हाइड्रोजन का सुरक्षित प्रबंधन अधिनियम, 2020 को बनाकर हाइड्रोजन परियोजनाओं एवं हाइड्रोजन फ्यूल सेल के उत्पादन इकाइयों का संचालन कर रहा है। भारत में देखा जाय तो अपनी अनुकूल भौगोलिक स्थिति एवं प्रचुर प्राकृतिक तत्वों की उपस्थिति के कारण हरित हाइड्रोजन उत्पादन की दिशा में बढ़त प्राप्त है। इसका उत्पादन लागत प्रभावी हो सकता है, जो न केवल ऊर्जा सुरक्षा की गारंटी देगा, बल्कि देश को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में सहायता भी करेगा।