?वैदिक रीति से शादी और बहन बेटियों को चौथी ले जाने वाले लेख पर जबरदस्त नकारात्मक प्रतिक्रियाएं और उनका जवाब?

दैनिक समाचार


साथियों मैने अभी अभी दो लेख पंडितों से वैदिक रीति से शादी करवाना अपराध है और बहन बेटियों को शादी की विदाई बाद चौथी ले जाना कलंक है. इन दोनों लेखों पर सकारात्मक प्रतिक्रियाएं तो हजारों में है, लेकिन कुछ नकारात्मक प्रतिक्रियाएं भी लोगों ने दिया है, उसका जवाब देना मैं उचित समझता हूँ.
कुछ अंधभक्त शूद्र समाज के लोगों तथा कुछ ब्राह्मणों के द्वारा भी नकारात्मक प्रतिक्रिया आई है. उसमें मुख्य यही है कि-
क्या आप ने या समाज ने आज कल कही स्त्रियों की शूद्धिकरण प्रथा को देखा है या हो रही है, नहीं हो रही है तो अनर्गल छूठी बातें क्यों फैला कर समाज में द्वेष पैदा कर रहे हैं. कुछ लोगों का कहना है कि, शादी में संस्कृत के श्लोकों का आप ने गलत तरीके से ब्याख्या की है.
सबसे पहले तो, यदि शादी में पढें जाने वाले संस्कृत श्लोक का अर्थ हमी नहीं कोई भी गलत अर्थ निकाल रहा है तो, आप क्यों नहीं शादी करवाने का पूरा विवरण हिन्दी में समझाकर समाज के सामने लाते हैं या हिन्दी में ही समझाकर शादी क्यों नहीं करवाते हैं, जिससे समाज में गलतफहमी दूर हो जाए.
स्त्रियों की शुद्धिकरण पर कुछ लोगों की प्रतिक्रिया है कि जो प्रथा दो सौ साल पहले बंद हो गई, उसे आज समाज में घृणा पैदा करने के लिए क्यों उठा रहे हैं, इस विषय को लेकर मोबाइल पर बहुत से लोगों से तर्क वितर्क करते हुए चर्चाएं हुई.
ब्राह्मणों से और कुछ अंधभक्त शूद्रों से यही सवाल जवाब था कि–
आज भी किस हैसियत से या मानवीय गुणों के कारण पंडित को हर काम के लिए पहले प्राथमिकता देते हो,
जैसे किसी भी कथा, परोजन या खानपान में अपने अजीजी मेहमानों जैसे बहनोई, दामाद, समधी, नाना, मामा आदि को अपमानित करते हुए, सबसे पहले पंडितों पुरोहितों से भोजन को जूठा या शुद्धिकरण करवाते हुए क्यों खाना खिलाते हो?
पंद्रह साल पहले मेरे इच्छा के खिलाफ मेरे भाई ने हमारी मां की तेरहवीं में भोजन बनवाया था, मैने खाने का स्वाद चखने या मिठाई का स्वाद चखने के लिए हलवाई से कहा, तो उसने कहा खाना जूठा हो जाएगा, पंडितों के खाने के बाद ही घर के लोग खाना टेस्ट कर सकते हैं. मैंने कहा बिना स्वाद को टेस्ट किए आप कैसे खाना बना लेते हो,? उसने कहा यही तो हमलोगों की खाना बनाने की विशेषता है.
मैने उस हलवाई से कहा तब तो मैं आज सभी खाना चखकर अपवित्र करूगाँ, कोई खाना खाए या नहीं खाए, आज इस नियम को तोडता हूँ.
मान लीजिए, आज यह प्रथा किसी कारण से बंद होती है और पचास या सौ साल बाद कोई उस समय सवाल पूछेगा कि, पंडितों को सबका अनादर करते हुए सबसे पहले क्यों खाना खिलाते थे? तो आप के पास क्या जवाब रहेगा?
शूक्र मनाइये, अंग्रेजों ने स्त्रियों की शुद्धिकरण के साथ साथ सैकड़ों कानून बनाकर, शूद्रों के लिए शिक्षा, संपत्ति, शस्त्र रखने का अधिकार दिया. समता समानता का अधिकार, कूर्सी या खाट पर बैठने का अधिकार दिलवाया. सति प्रथा, बालविवाह, नर बलि, देवदासी यहाँ तक कि शूद्र स्त्रियों के स्तन ढकने, आदि ब्राह्मणवादी मनुवादी अत्याचारों पर कानून बनाकर रोक लगाई.
माफी चाहता हूँ, यदि अंग्रेजी हुकूमत नहीं आई होती तो, जैसे पहले राजा लोग अपनी नयी नवेली दुल्हन की निमंत्रण देकर कौमार्य भंग करवाते थे और बाहर डोल नगारों के साथ खुशियाँ मनाई जाती थी. इसी तरह आज भी जैसे खाना खिलाते हैं, ठीक वैसे ही लोग अपनी बहन बेटियों की शुद्धिकरण करवाते और लोग बाहर खुशियाँ मनाते दिखाई देते.
यही कारण भी था कि मुगलों मुसलमानों को भारत छोडने का आन्दोलन कभी नहीं चलाया गया, लेकिन मानवतावादी दृष्टिकोण होने के कारण अंग्रेजों के लिए भारत छोडो़ आंदोलन चलाना पडा़.
इसलिए हम सभी लोगों को अंग्रेजों का शुक्रगुज़ार होना चाहिए. धन्यवाद.
आप के समान दर्द का हमदर्द साथी!
गूगल@ शूद्र शिवशंकर सिंह यादव

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