लखनऊ- 9 मई 2022।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव मंडल ने कहा कि यूपी अब बुलडोजर राज ही नहीं पुलिस राज बन चुका है, और रक्षक से भक्षक बनी पुलिस हर दिन एक न एक जघन्य वारदात को अंजाम दे रही है। यह पुलिस- प्रशासन के भाजपायीकरण का नतीजा है कि पुलिसजन स्वयं को बाबा का बुलडोजर समझने लगे हैं। और बुलडोजर वाले बाबा भाजपाइयों के सामने लाचार बन कर रह गए हैं। आजादी के बाद से आज तक ऐसा जंगलराज न तो देखा था न ही सुना था।
चंदौली, ललितपुर की घटनायें तो “लाइम लाइट” में आगयीं, पर सच तो यह है कि उत्तर प्रदेश में हर दिन इसी किस्म की कई कई वारदातें हो रही हैं। अखबारों के क्षेत्रीय हो जाने के चलते प्रदेश के एक कोने में हुयी घटना दूसरे क्षेत्र के लोगों के संज्ञान में आ नहीं पाती हैं। कुछेक हैं जो मीडिया और सोशल मीडिया से प्रसारित हो पाती हैं। फिर भी जो घटनायें संज्ञान में आ रही हैं वे दिल दहलाने वाली हैं।
कल ही प्रकाश में आया था कि अलीगढ़ के अतरौली क्षेत्र में एक गाँव की नाबालिग बालिका को एक पुलिस कांस्टेबिल ने खेत में ले जाकर दरिंदगी की तो आज प्रकाश में आया है कि जनपद फीरोजाबाद के पचोखरा थानान्तर्गत ग्राम- इमलिया में पुलिस और दबंगों के घर में घुस कर झंगाझोटी के दौरान एक दलित महिला की मौत होगयी। पुलिस और दबंगों की अवैध और अमानुषिक कारगुजारी से पचोखरा के आस पास के गांवों में भय और तनाव व्याप्त है।
यहां जारी एक प्रेस बयान में भाकपा राज्य सचिव डा॰ गिरीश ने दाबा किया कि सारी वारदात दबंगों, भाजपा और पुलिस के बीच खतरनाक और जनविरोधी गठजोड़ का परिणाम है। उन्होने अपने सूत्रों के हवाले से कहा कि कुछ दिन पहले दलित मजदूरों की मजदूरी के पूरे पैसे न देने पर दबंगों से उनका विवाद हुआ था। दबंगों ने पुलिस के साथ साजिश रच कर मजदूरों को जेल भिजवा दिया था। परसों ही कुछ मजदूर जमानत पर छूटे थे। उन्हें भय था कि पुलिस और दबंग मिल कर उन्हें दोबारा केसों में फंसा सकते हैं/ एंकाउंटर कर सकते हैं, अतएव भयवश वे अपने घर वापस नहीं गए और किसी अन्य जगह ठहर गये।
उनका भय सही निकला। रात को ही पुलिस और नामचीन दबंग मजदूरों के घर जा धमके और घर में मौजूद व्रध्दा और उसकी पुत्री से जबरिया दरवाजा खुलवा लिया। पूछताछ के लिये महिलाओं पर दबाव डाला और पुलिसिया हथकंडे अपनाये। बल प्रयोग के दौरान व्रध्द महिला जमीन पर गिर गयी और बताया जाता है कि वहीं उसकी मौत होगयी। महिला को इस हालत में अस्पताल पहुंचाने के बजाय पुलिस उसे वैसी ही अवस्था में छोड़ कर भाग खड़ी हुयी। शोर शराबा होने पर एकत्रित ग्रामीणों और परिवार के मुखिया ने 112 पर सूचना दी तो कुछ पुलिसकर्मी उसे जीवित बता कर उठा ले गये और बाद में उसकी मौत हो जाने की सूचना परिवारियों को दी।
अब समूचा पुलिस- प्रशासन घटना पर लीपापोती में जुट गया है। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी बयान दे रहे हैं कि पुलिस यह तसदीक करने गयी थी कि जमानत पर लौटे लोग कहां हैं? सवाल उठता है कि क्या पुलिस जमानत पर छूटते ही लोगों के घर तसदीक करने जाती है? सभी जानते हैं कि ऐसा नहीं होता। फिर पुलिस के साथ वे दबंग क्यों थे जिन्होंने उन्हें फर्जी मुकदमे में फंसवाया? क्या दलित मजदूर इतने बड़े अपराधी थे कि पुलिस जेल से बाहर आते ही उनकी खोजबीन में जुट गयी? सवालों से घिरी पुलिस पर इसका कोई जबाव नहीं है। सवाल तो फीरोजाबाद के मुख्य चिकित्साधिकारी पर भी उठ रहे हैं जिन्होने पोस्टमार्टम होने से पहले ही मौत को सामान्य मौत बता दिया।
भाकपा राज्य सचिव ने कहा कि कल मुख्यमंत्री के ललितपुर दौरे के दौरान ही भाजपाइयों, अपराधी और पुलिस गठजोड़ की कलई खुल गयी थी। भाजपाइयों ने माना कि ललितपुर के बलात्कारी भाजपायी थे; पुलिस- प्रशासन में भ्रष्टाचार है आदि। मुख्यमंत्री ने भी स्वीकारा कि भाजपायी दलाली कर रहे हैं। मुख्यमंत्री और भाजपाइयों के इस ‘अमर संवाद’ के बाद कहने को कुछ नहीं बचा।
फीरोजाबाद प्रकरण में पुलिस और पूरा पुलिस तंत्र दोषी है। फिर जांच क्राइम ब्रांच को देने का कोई अर्थ नहीं। घटना की न्यायिक जांच कराई जाये, दोषी पुलिसजनों को जेल भेजा जाये और पीड़ित परिवार को 50 लाख रुपये बतौर नुकसान की भरपाई दिये जायें, भाकपा ने मांग की है।
डा॰ गिरीश, राज्य सचिव
भाकपा, उत्तर प्रदेश