मेरी चिंता मुसलमान नहीं है, मेरी चिंता पाकिस्तान भी नहीं है। मैं हमेशा यही सोचता हूं कि कहीं हमारे बच्चे, मूर्ख-धार्मिक, दूसरों से नफरत करने वाले, पिछड़ी सोच वाले तो नहीं बन रहे ? मैं कोशिश करता हूं कि हमारे बच्चे, सारी दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलने वाले, बुद्धिमान तर्कवान खुले दिमाग के और वैज्ञानिक सोच वाले बनें।
खुद हमेशा उदारता, खुले दिल और विज्ञान की बात फैलाता हूं। कहीं मुझे, प्रकारांतर में भी एक भी शब्द जातीय धार्मिक नफरत का बोलते या बताते न सुन सकें। वही बातें सीधे बच्चों को बताता हूं । मैं हमेशा कट्टरता का विरोध करता हूं, नफरत का विरोध करता हूं, जहालत का विरोध करता हूं ।
बच्चों को बताता हूं कि तुम्हारा इस घर में पैदा होना महज एक इत्तेफाक है । तुम किसी और जाति वालों के घर में भी पैदा हो सकते थे.
तुम्हारा भारत में पैदा होना भी महज एक इत्तेफ़ाक़ है । तुम पाकिस्तान बांग्लादेश या किसी और देश में भी पैदा हो सकते थे। इसलिए इत्तेफ़ाक़ से हुई किसी भी चीज पर गर्व मत करो । इत्तेफ़ाक़ से कहीं और पैदा हुए लोगों से नफरत मत करो । यही वैज्ञानिक सोच है। यही मानवीय सोच है।
मैंने धर्म से किनारा नही किया। मगर हर कृत्य और चमत्कार का वैज्ञानिक और निष्पक्ष विश्लेषण भी करने का प्रयास किया है। इसलिए उन्हें धार्मिक पुस्तकें लिखने वालों की मंशा की जानकारी भी दी । उन्हें न्याय की बेसिक समझ दी है।
मैं जो कुछ कर रहा हूं, लिख या कह रहा हूं, वो छ्द्म धर्मनिरपेक्षता के लिए या समाज मे समभाव फैलाने के स्वयम्भू ठेके के तहत नही होता । ये मैं हमारे बच्चों को, उसके आसपास कभी भी भड़क सकने वाली हिंसा से बचाने के लिए कर रहा हूं । क्योंकि जब तक यह धार्मिक जहालत कट्टरता और मूर्खता रहेगी दुनिया से हिंसा नहीं जाएगी।
लेकिन मुझे तो उन्हें सुरक्षित, सानंद बढ़ते हुए , इंसान बनता देखते हुए दुनिया से जाना है।