कमजोरों को शासन करने का हक़ नहीं!
(प्रेरणादायक कहानी)

दैनिक समाचार

एकबार जंगल में लोकतंत्र आया ,जंगल में भेड़ों की संख्या अधिक थी और शेरों की संख्या बहुत ही कम ,लोकतंत्र की आहट से भेडों की बस्ती में खुशी की लहर थी जबकि शेरों में घबराहट ,भेड़ों की बस्ती में चर्चा जोरों पर थी कि अबकी बार राजा हम भेडों में से ही चुना जाएगा जबकि संख्या में बेहद.कम शेर अब अपने भविष्य को लेकर बहुत चिंतित थे l

 जंगल में लोकतंत्र के रुप में शेरों के सामने आई गम्भीर समस्या से निपटने के लिए शेरों ने अपनी बस्ती में एक सभा बुलाई l  सभा में काफी चिंतन मनन के बाद प्रस्ताव पारित किया गया कि आज से सारे शेर  "शाकाहार" का पालन करेंगे l साथ ही तय किया गया कि भेडों की बस्ती में बुजुर्ग शेर जाकर सभा करेंगे l शेरों की सभा पारित दोनों प्रस्तावों की सूचना भेडों की बस्ती में भिजवा दी गई l 

इधर भेडों की बस्ती में उत्सव का महौल था l कोई शेरों की बात सुनने को तैयार न था l तब बुजुर्ग भेडों ने सबको समझाया कि शेर हमारे राजा रहे हैं, हमें उनकी बात सुननी चाहिए l बुजुर्ग भेडों के समझाने के पश्चात  सभा का दिन निश्चित हो गया l 

   तय समय के अनुसार बुजुर्ग शेर भेडों कि बस्ती में सभा के लिए निकले अपने आपको शाकाहारी दिखाने के लिए उन्होंने अपने साथ बहुत सारा घास फूस भी डाल लिया और रोनी सी सूरत बनाकर बुजुर्ग शेर भेडों की सभा में पहुँच गए l सभा में युवा भेडों ने शेरों का विरोध शुरू कर दिया l बुजुर्ग भेडों के समझाने के पश्चात युवा भेड़ शेरों की बातसुनने के लिए तैयार हो गईं l सभा शुरू हुई......

    एक बुजुर्ग शेर खड़े होकर बोला...जैसा कि आप सभी जानते हैं अबकी बार सभी जानवरों के वोटों के द्वारा जंगल के राजा का चुनाव होगा l आप लोगों की संख्या अधिक तो है लेकिन आप इतनी ताकतवर नहीँ कि अपनी रक्षा सकें l कोई बाहरी जानवर आक्रमण करके आपको गुलाम बना लेगा और आपको शासन करने का अनुभव भी नहीँ है l इसलिए आप सब अपना वोट हम शेरों को देकर विजयी बनाएँ , जिससे इस देश (जंगल ) और आप लोगों की रक्षा हो सके l और अब आप लोगों को हम शेरों से डरने की ज़रूरत भी नहीँ है क्योंकि अब हम सब शेर शाकाहारी हो गए हैं l 

   शेरों का प्रस्ताव सुनकर कुछ उत्साही युवा भेड़ें  विरोध में नारेबाजी करने लगीं, उनका मत था कि भेड़ों को अपना नेतृत्व खुद करना है और बाहरी जानवरों का डर क्यों दिखा रहे हो, असली डर तो केवल शेरों से रहा है हमेशा, उन्होंने ही हमें, सताया, खाया और डराया है!

युवा भेडों को डांटते हुए बुजुर्ग भेडों ने कहा….

“खामोश होकर बैठ जाओ , शेर एकदम सही कह रहे है .हम कमजोर भेडों को शासन करने अनुभव नहीँ है l हम लोग अपनी रक्षा नहीँ कर पायेगीं l………और फ़िर सभी जिम्मेदार शेर कह रहे हैं कि जंगल के सब शेर अब शाकाहारी हो गए हैं………….

………….वोट डाले गए , फ़िर परिणाम आया…….
…..जंगल में शेर चुनाव जीत गए l जंगल की संसद में शेरों की पहली बैठक हुई , बैठक में एक शेर को राजा चुना गया l
…………और जंगल की संसद की पहली ही बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया…….
……..आज से प्रतिदिन प्रत्येक शेर परिवार को

नाश्ते में………………..दो भेड़
लंच में…………………..तीन भेड़ और
डिनर में…………………चार भेड़ों का ताजा माँस खाने को मिलेगा l
……………………………
यह कहानी हमारे आसपास के हर व्यक्ति, समाज, वर्ग और देश पर शोषक और शोषित के मध्य एक अप्रत्यक्ष कटाक्ष है। जहाँ शोषक परिस्थितियों के अनुसार वेष बदलते हैं , शोषित इनके झांसे में आते हैं और शोषकों के गुलाम बने रहते हैं l समाज का एक बड़ा तबका अपनी ताकत को पहचानने में नाकाम और अपना प्रतिनिधित्व करने की क्षमता ही नही रखता। शोषक लोग अपने द्वारा बनाए धर्म व् कानून द्वारा खुद को जानवरों और सूक्ष्म कीड़ों, मकोड़ों के लिए भी दयावान और अहिंसक घोषित करते लेकिन कमजोर लोगों के प्रति क्रूरता की सारी हदें पार कर जाते हैं। आज हमारे लोकतंत्र में, हमारे धर्म में और हमारे समाज में यही सब चल रहा हैll
क्योंकि लोकतंत्र केवल दिखावा मात्र है हकीकत तो यह है कि आज भी सभी जिम्मेदार पदों पर किसका कब्जा है आप सभी जानते हैं!

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