“जिन अंग्रेजों ने तुम पर 190 साल राज किया,देश को बर्बाद किया,लूटा,उनसे तुम्हें कोई समस्या नहीं,तुम उनका नाम तक नहीं लेते.
न आजादी की लड़ाई में उनके विरुद्ध बाकी हिंदुस्तानियों का साथ दिया, न आज तक चूँ तक निकलती है तुम्हारे मुँह से!
और जिन मुसलमानों का शासन 1857 के बाद खत्म हो गया,जिस आखिरी मुगल बादशाह को तुम्हारे -हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए कमान सौंपी,
जिन्होंने तुम्हारे खाने को जायकेदार बनाया,तुम्हारी संस्कृति को एक से एक नायाब तोहफे दिए,इनसान दिए,अमीर खुसरो,मीर और गालिब और नजीर अकबरा बादी जैसे शायर दिए।
जिन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में बड़े गुलाम अली खाँ और अमीर खाँ और न जाने कितने बड़े गायक दिए।
जिन्होंने उस्ताद बिस्मिल्लाह खान जैसा शहनाई वादक दिया,जिसने यह कहकर अमेरिका में बसने का निमंत्रण ठुकरा दिया कि वहाँ गंगा ले आओ तो मैं भी चलूँ, जिस कौम ने तुम्हारे ईश्वर की स्तुति गानेवाले रसखान समेत अनेक कवि दिए,
जिसने मंटो और इस्मत चुगताई जैसे कथाकार दिए,
जिसने दिलीप कुमार से लेकर नवाजुद्दीन सिद्दीकी तक न जाने कितने बड़े कलाकार दिए, मोहम्मद रफी जैसा फिल्मों का नायाब गायक दिया और आज भी न जाने कितनी प्रतिभाएँ और कितने- कितने पेशों से जुड़े लोग दिए हैं और देते जा रहे हैं,
–यह सब भूल गए और हमेशा चंद गलत इनसानों का उदाहरण देकर,अपनी बंद दुनिया में बंद आँखों से गंदगी बटोरकर परोसते रहते हो?
खुद भी उसमें लिथड़े रहते हो, दूसरों को भी उसमें नहलाते रहते हो?
अरे इस गंदगी इस नफरत के जलजले से उबरो!
अपने इन भाइयों -बहनो-पूवर्जो-बच्चों की तरफ एक हिंदुस्तानी की तरह देखो,अपने ही हैं, हमीं हैं ये, ये कोई और नहीं हम हैं, इस तरह देखो!
हालांकि यह अरण्य रोदन है लेकिन मैं इससे अपने को रोक नहीं पा रहा हूँ.
इतनी कमीनगी चारों तरफ है कि दिल रोता है.
ये कहाँ आ गये हैं हम?
कहाँ ले आए हैं इस मुल्क को? अपने मुल्क को?