यह सौ फीसदी सच है का काम धंधे में धर्म आडे नहीं आता है धर्म तो केवल राजनीति करने और सत्ता पाने के लिए या फिर देश में साम्प्रदायिक हिंसा या वैमनस्यता का माहौल पैदा करने के लिए अधिक इस्तेमाल किया जाता है।
जितने भी गौरक्षा के नाम पर गले में पीले या भगवा दुपट्टाधारी घूमते है अथवा जितने भी गोरक्षा के नाम पर संत महात्मा बनकर प्रवचन करते हैं। किसी के भी घर जाकर पता कर लीजिए एक भी गो पालक नहीं होगा!
बाबा और साधू भी खुद कभी गाय का गोबर और मूत्र साफ नहीं करते और न ही चारा खिलाते या नहलाने का कार्य करते हैं।
क्योंकि यह काम करने लगे तो उनके वस्त्र और वेशभूषा तथा माथा पोतने या प्रवचन देने का समय ही नहीं मिल सकेगा। यह काम तो उनके चेले या कहिए दैनिक मजदूरी करने वाले करते हैं।
बाबा प्रवचन करके लोगों को भावुक करते हैं और करोड़ों कमाते हैं इसलिए लाखों खर्च करके मजदूर नुमा व्यक्तियै से गोशाला चलवाना कोई कठिन कार्य भी नहीं है।
लगभग आठ साल पूर्व गौरक्षा के नाम पर बहुत से लोगों ने अवैध संगठन जैसे बना लिये थे, संगठन नहीं बल्कि गैंग कहना उचित होगा।
क्योंकि एक अनुभव हमारे साथ भी शेयर हुआ!
सहारनपुर जिले का एक शिवसेना का व्हाट्सऐप ग्रुप था जिसमें हम भी सम्मिलित थे।
बल्कि यह कहिए कि सभी बहुत सम्मान करते थे, जिसमें लगभग सभी सदस्य राजपूत (क्षत्रिय)थे, हमारे एक मित्र ग्रुप एडमिन के नाते हमे बहुत जोडा गया था।
हररोज दो चार गाय से भरे ट्रक पकडते हुए वीडियो या क्लिप्स आना स्वाभाविक था।
एक दिन हमारे मित्र ने फोन पर बताया कि सर आज तो लगभग दस किमी तक मोटरसाइकिलो से पीछा करके ट्रक को पकड़ा गया और जो फोटो भेजें गये हैं वो सब गाय छुडायी गयी है।
हमने कहा वो सब तो ठीक है लेकिन मान लीजिए यदि ट्रक वाले के पास असलहा होता या ट्रक भी किसी के ऊपर चढ़ा देता तो उसका क्या बिगडता?
परन्तु किसी का घर या परिवार सूना हो सकता था।
वो बोला सर देश सेवा में जान भी चली जाए तो इससे बड़े गौरव की बात क्या होगी?
हमने कहा लगभग आप लोगों को एक साल से अधिक हो चुका है गाय के ट्रक पकड़ते हुए, लेकिन इसकी तह तक आपने कभी पहुंचने की कोशिश नहीं की?
वो बोला कैसे सर?
हमने कहा आपके साथ वालों को तो ड्राइवर और कंडक्टर के साथ मारपीट करके उनकी जेब खाली करनी है, बैटरी या ट्रक के अन्य सामान जैसे जैक या म्यूजिक सिस्टम आदि पर हाथ साफ करना नैतिक दायित्व बन चुका है।
बाद में पुलिस के सुपुर्द कर दिया जाता है।
क्या कभी सोचा है कि इसमे पुलिस की भी मिलीभगत हो सकती है वरना तो चैकपोस्ट से कोई ट्रक बिना चैक हुए कैसे निकल जाता है?
आखिर गौरक्षको की नजर ही ऐसे ट्रकों पर क्यों पड़ती है अथवा उनको ही फोन पर ऐसी सूचनाएं क्यों मिलती है?
हमने कहा आज हमारी बात ध्यान से सुनना और हो सके तो अनुपालन भी करना सत्यता तभी जान सकोगे?
वो बोला सर जो आप कहेंगे वो हमारे हित में ही होगा और हम अवश्य ही पूरी कोशिश करेंगे।
हमने कहा इन ट्रक ड्राइवर और कंडक्टर का दोष केवल इतना भर है कि यें इन गायों को लेकर दूसरे स्थान पर जा रहे हैं जिनको अधिक भाड़ा मिलने का लालच दिया गया होगा!
इन ड्राइवर और कंडक्टर को अधिक मारपीट न करके केवल इतना भर डर दो कि सच बता दें कि यें गायें कहाँ से लेकर आएं हैं?
फिर उन खरीदारो से पता करना कि किस गांव से कौन कौन सी गाय खरीदी है, मालिक का पता या नाम भि याद न हों तो गांव का पता जरूर मिल जाएगा, क्योंकि यें कोई चोर नहीं बल्कि पैसे से देकर और मोलभाव करके खरीदकर लाते हैं तो इतना याद जरूर रखते होंगे।
सबसे खास बात कि गाय हो या कुत्ता बिल्ली कोई भी पशु पक्षी अपने मालिक और अपने ठिकाने पर खुद ब खुद पहुंच जाता है एक बार उस गांव में जाकर उसकी रस्सी छोडकर तो देखिए। वो अपने ठिकाने पर ही जाकर रुकेंगी।
रही बात गाय की,तो मौहल्ले वाले पड़ोसी सब बता देंगे कि फलाने की गाय है और गाय बांधने की जगह भी मौजूद होगी।
हमने कहा कडुवी सच्चाई तो यह है कि आज भी अस्सी प्रतिशत से अधिक गाय पालने का काम हिन्दू करते हैं। गाय पालने वाले मुस्लिम बामुश्किल दस प्रतिशत ही मिलेंगे।
यह बात हर हिन्दू जानता कि जब तक गाय दूध देने की हालत में होती है तो उसकी बहुत खातिरदारी की जाती है, गाय को हिन्दू धर्म में माँ का भी दर्जा दिया जाता है।
लेकिन केवल दूध देने तक ही! उसके बाद शहर की गलियों और स्टेशनो व बस स्टैण्ड पर पालिथिन और गंदगी खाते किसने नहीं देखा होगा?
जब दूध देने की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं रहती है तो कसाई की आवाज सुनकर खुद हिन्दू ही उसे अपने घर बुलाता है और बड़े ही एकांत में जाकर समझाता है कि हमने इसे पशु नहीं बल्कि घर का सदस्य मानकर पाल पोस्टर बड़ा किया है। बेचने की इच्छा तो नहीं हो रही है किन्तु बांधने की जगह की कमी और मंहगे चारा का अभाव, इसलिए बिना दूध वाले पशु को कैसे पार सकते हैं? दूध भी जरूर चाहिए इसलिए दूसरी गाय या भैंस तो लेनी ही होगी। नहीं तो बेचने से कितने पैसे मिलेंगे लेकिन दूसरी खरीदकर लानी है इसलिए पैसे लेना पड़ रहा है।
एक वादा करो कि इसे काटोगे नही?
कसाई ठहरा धंधेबाज आदमी,धंधे में झूठ कौन नहीं बोलता है?
वो सीधे कहता है ला होल बिला कुव्वत, कैसी बात कर दी जनाब, आपको जबान दे रहे हैं अल्लाह का वास्ता हम क्यों काटने लगे।
किसी जरुरतमंद को दे देंगें हमें तो मुनाफे के पांच सौ रुपए भर मिल जाए। क्योंकि हमारे भी तो बाल बच्चे हैं।
इसी दौरान कसाई को गोपालक हिन्दू समझाता है कि हमारा परिवार बहुत प्रेम करता है इसलिए पैसे उनके सामने न देकर अभी दे दो और बताना कि बेचने या खुद पालने के लिए खरीद रहे हैं।
कसाई ठहरा व्यापारी, वो व्याकुल बच्चो को समझाता है कि पापा को दूसरी और इससे भी अच्छी तथा अधिक दूध देने वाली गाय दिलाएंगे।
कल ही आ जाएगी, आप सब खूब सारा दूध पीना।
हमारे घर पर मेरे अलावा कोई गाय का दूध नहीं पीता है इसलिए अपने लिए लिए खरीद रहा हूं।
हमारे मित्र ने बिल्कुल वैसा ही किया। तीन दिन बाद गाय और गाय का असली मालिक हिन्दू आमने सामने थे।
हमारे पास फोटो भेजा गया।
हमने कहा कि असली गुनहगार यह है इसको सजा होनी चाहिए, न कि कसाई, या कन्डेक्टर और ड्राइवर को!
यदि हिन्दू माँ के समान कही जाने वाली गाय को बेचेंगे ही नहीं तो कितने कसाई गायो की चोरी करके बेच पाएंगे?
क्योंकि हर गाय इतनी सीधी भी नहीं होती है कि हर किसी व्यक्ति को अपने पास आने दें।
हिंसक बनकर सींग और लात दोनों से वार करती है।
इस घटना के बाद उन युवाओं की आँखे खुली जो गौरक्षक बनकर निर्दोष लोगों पर कहर ढा रहे थे। हालांकि उनके मन में गोरक्षा का भाव और निष्ठा भी थी, किन्तु कुछ लोग आपदा को भी अवसर बना लिया करते हैं इसलिए कुछ युवाओ ने इसे कमाई का जरिया भी बना लिया था।
क्योंकि कुछ लोगों ने खुद बताया कि ट्रक से बैटरे, म्यूजिक सिस्टम या अन्य सामान निकालना उनकी आदत बन चुकी थी, इस बहाने गोरक्षक बनने का सम्मान भी मिलता था और अखबारों में फोटो व नाम भी आता था, कमाई तो हो ही जाती थी।
जब वें युवा जागरूक हुए और गायों के वास्तविक दुश्मन हिन्दूओ पर नजर रखने लगे तो आसपास के गांवो में अपना मोबाइल नंबर दिया कि यदि कोई भी हिन्दू किसी कसाई को अपनी गाय बेचता हुआ दिखे तो इस नंबर पर फोन करना।
दो चार महीने में ही गाय के भरे ट्रक मिलना बंद हो गये।
बाद में उन्हें पता चला कि एक ट्रक पर पांच हजार रुपए थाने का भी कमीशन तय होता है।
इसी दौरान अग्रवाल गौशाला में पड़ताल हुई तो पाया कि गाय के कंकाल गोबर के ढेर में दबे हैं। तथा गौरक्षा के नाम पर चंदा और दान वसूली करके आवारा गोवंश को गौशाला में लाकर भूखी रखा जाता है ताकि जल्द से उनसे मुक्ति मिल सके।
जब पुलिस का छापा पड़ा तो अग्रवाल घर छोड़कर लापता हो गया।
लेकिन उन मित्रों को सच्चाई का पता चला और बहुत से निर्दोष कन्डेक्टर व ड्राइवर पिटने और लुटने से बच गये।
आज भी आपको खेत खलिहान, सड़क हो या मैदान हर जगह गाय और गोवंश आवारा घूमते दिखाई पड़ जाएंगे, कई बार बड़े हादसो को भी अंजाम देने का काम करते हैं।
मगर उनके मालिकों का कोई अतापता नहीं होता है।
गाय अथवा भैंस का रजिस्ट्रेशन उसी प्रकार से किया जाए जैसे वाहनों का किया जाता है।
और एक यूनिक नंबर वाला कार्ड पशुओं के कान में पेस्ट कर दिया जाए तथा कमर पर मार्क भी कर दिया जाए।
साथ ही जो भी पशु आवारा घूमता मिला उसके मालिक की पहचान नंबर के आधार पर करके उसको सजा का प्रावधान रखा जाए तो बहुत से अखलाक बेमौत मारे जाने से बचाए जा सकते हैं।
ऐसे निर्दयी हिन्दूओ को सख्त सजा का भी प्रावधान होना चाहिए जो अपनी सगी मां को वृद्धाश्रम में भेजते हैं और धार्मिक मां यानि गाय को सडको पर गंदगी खाने के लिए सड़कों पर छोड़ते हैं।
लेकिन अफसोस नहीं होना चाहिए कि कथित हिन्दुत्ववादी और राष्ट्रवादी पार्टी के शासनकाल में ही गौमांस के निर्यात ने पिछले वर्षों के निर्यात का रिकार्ड तोड़कर नये कीर्तिमान बनाए हैं।
आज भारत बीफ निर्यात करने वाले शीर्ष देशों की सूची में उच्च स्थान पर आता है।
(साभार)