मनुवादियों का हिन्दुत्व राग ओबीसी का मृत्युघंटा–

दैनिक समाचार

पंडी जी रोज पान की दुकान पर यादव जी से मिलते और वही मुल्लों को टाइट करने का राग अलापते। यादव जी बेचारे दूध बेचकर गुजारा कर रहे थे। समझ बहुत थी यादव जी में। खूब समझते थे कि मेरा तो दूध बेचकर गुजारा हो गया पर मेरे बेटे का पढ़ाई के बिना उद्धार नहीं है, इसीलिए यादव जी पेट काटकर बेटे को पढ़ा रहे थे। बाबा साहेब अम्बेडकर के संघर्ष के बारे में थोड़ा बहुत ज्ञान था यादव जी को।
पर पंडित जी जब भी उनसे मिलते, कहते, “हिन्दू खत्म हो रहे हैं। मुल्लों के 50 से ज्यादा देश हैं। हिन्दुओं का एक भी देश नहीं। पता नहीं हिन्दू इतना स्वार्थी क्यों हो गया है कि धर्म की रक्षा छोड़कर इन भौतिक सुख सुविधाओं के चक्कर मे पड़ा रहता है। मैकाले की बनाई पढ़ाई लिखाई के चक्कर में पड़ा रहता है हिन्दू। ऊपर से इस आरक्षण ने हिन्दुओं को जातियों में बांट रखा है। मुल्लों की जनसंख्या बढ़ती जा रही है। अगर इन मुल्लों को टाइट नहीं किया गया तो वो दिन दूर नहीं जब भारत एक इस्लामी राष्ट्र बन जायेगा। औरंगजेब का समय वापिस आ जायेगा। जीवन एक ही बार मिलना है। चाहे खुद के लिए जी लो चाहे धर्म के लिये।”

पंडित जी ऐसा कहते हुए नथुने फुलाने की और फुफकारने की अच्छी एक्टिंग करते। यादव जी पर धीरे धीरे पंडित जी की बातों का असर हो रहा था।

एक दिन यादव जी की तबियत थोड़ी खराब हुई तो यादव जी का बेटा दूध देने निकला था। उसकी मुलाकात हुई पंडित जी से। बस पंडित जी ने वही राग फिर से अलाप दिया। बेचारे किशोर मन पर हो गया असर उन बातों का।

उसे तो लगा कि ये पढ़ाई लिखाई सब बकवास कर रहा हूँ मैं। हिन्दुत्व के प्रति तो अपने धर्म का पालन कर ही नहीं रहा मैं। पंडित जी ने कुछ पुरानी पतली पतली किताबें भी दी यादव जी के बेटे को। उन किताबो में सैकड़ों साल पहले हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों के बारे में बताया गया था। उसे एक हिंदू गौरव नाम का व्हाट्सएप ग्रुप भी जॉइन करवा दिया।

यादव जी के बेटे को जीवन का लक्ष्य मिल चुका था।

घर आते ही सबसे पहले तो उसने स्कूल की किताबों में आग लगाई। माँ ने पूछा तो कहा कि माँ ये सब मैकाले की बनाई हुई पढ़ाई है। हमें धर्म से दूर करती है। हमारा विज्ञान इन अंग्रेजों से लाख गुना आगे था। मैं उस पुराने गौरव को हासिल करने में अपना जीवन लगाने जा रहा हूँ माँ। धर्म जिन्दा रहे, हम रहे ना रहें।

माँ को बातें अजीब लग रही थी पर चूंकि ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी इसीलिए पंडित जी के सिखाये तर्को से जीत नहीं पा रही थी।

बाप तो बेचारा ये जान ही चुका था कि जीवन एक ही बार मिलना है, चाहे खुद के लिये जी लो चाहे धर्म के लिये।

बस। उस दिन के बाद तो यादव जी का बेटा शामिल हो गया विराट हिन्दू सेना में। झंडे में डंडा फिट करने का काम उसे दिया गया जो करना उसने अपना धर्म समझा।शोभा यात्राओ में चलने लगा। शाम के समय सभाओं में हिन्दुत्व को बचाने और इस्लाम से लड़ने के नये नये हथकंडे सीखने लगा।
समय निकलता गया। यादव जी का गुजारा तो अब भी वैसे ही हो रहा था जैसे पहले हो रहा था दूध बेचकर।
एक बार किसी त्यौहार पर शोभायात्रा में यादव जी का बेटा सबसे आगे चल रहा था। रास्ते में मस्जिद के सामने जोर जोर से नारे शुरू करवाकर हिन्दू सेना के पदाधिकारी ने यादव जी के बेटे को झंडा थमा दिया और कहा, “जा, कर दे हिन्दुत्व का नाम रोशन। ले ले बदला सालों के अत्याचार का। लहरा दे भगवा आज मस्जिद पर।”

बस इतना सुनते ही तो यादव जी के बेटे की रगों में बहता खून उबलने लगा। ऊपर से नारेबाजी ने तो इस आग में घी डालने का काम किया।
चढ़ गया यादव जी का बेटा मस्जिद पर। भगवा लहराकर इस तरह चिंघाड़ मारी कि क्या एवरेस्ट पर चढ़ने वाले प्रथम आदमी ने मारी होगी।
इतने में माहौल ज्यादा गर्म हुआ। पत्थरबाजी शुरू हो गई। पता नहीं कहाँ से एक पत्थर आया और यादव जी के बेटे के सिर में लगा। वो वहीं बेहोश, एक बेजान पुतले की तरह यादव जी के बेटे का शरीर जमीन से आ टकराया।
भगदड़ मच गई।
यादव जी के बेटे को उकसाने वाला हिन्दू पदाधिकारी तो पत्थरबाजी शुरू होने से पहले ही वहां से जा चुका था।
पुलिस आ गई।
एक बुजुर्ग मुस्लिम की नजर यादव जी के बेटे पर पड़ी। उसने एम्बुलेंस को कॉल कर दी। आनन फानन में यादव जी के बेटे को हॉस्पिटल ले जाया गया।
सिर पर पत्थर लगने से नसें मर गई थी जिसके कारण आंखों की दृष्टि जा चुकी थी।
ऊंचाई से गिरने के कारण रीढ़ की हड्डी में चोट आई थी। कमर से नीचे का हिस्सा काम करना बंद कर चुका था। खटिया पकड़ ली।

विराट सेना वाले पूछने तक नहीं आये।

यादव जी के सिर पर तो पहाड़ टूट पड़ा था। एक ही बेटा था। उसी का ये हाल।

जीवन चलता गया।

एक दिन पंडित जी पान की दुकान पर मिठाई बांट रहे थे। यादव जी के हाथ में भी एक टुकड़ा रखा पंडित जी ने और आगे बढ़ गये। पास खड़े आदमी ने बताया कि बेटे का सलेक्शन आईएएस में होने की खुशी में पंडित जी मिठाई बांट रहे हैं। एक बेटा तो पहले ही यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है और अब एक आईएएस बनेगा।

यादव जी के आंखों के सामने कुछ महीनों पहले तक पढ़ाई में जी जान लगाते बेटे की तस्वीर घूम गई।
आंखों में आंसू लिए कभी वो हाथ मे पकड़ी मिठाई को देख रहे थे कभी मिठाई बांटते पंडित जी को।

(साभार)

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