द्वारा : आर. चन्द्रा विद्रोही
कांग्रेस सरकार ने 2011 में गेहूं और चावल के निर्यात पर प्रतिबंध खत्म किया था क्योंकि उत्पादन बहुत ज्यादा था, रखने की जगह नहीं थी। लेकिन निर्यात की अनुमति मिलते ही भारत में महंगाई की ऐसी अफरातफरी मची कि लोग कांग्रेस के खिलाफ हो गए।
एक तथ्य और बताता चलूं। भारत का करीब हर पड़ोसी गेहूं आयात पर निर्भर है। बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल तो भारत के ही गेहूं पर निर्भर हैं। देश के किसानों का कमाल है कि जहां भारत के लोग अमेरिका का लाल गेहूं खाकर जिंदा रहने को मजबूर थे, किसानों ने न सिर्फ देश का पेट भरा, बल्कि गेहूं चावल का निर्यात भी करने लगे।
इस सरकार ने किसानों को बहुत दुख दिया है। भक्तों ने किसानों का बड़ा मजाक उड़ाया है कि ये आतंकी हैं। जबकि किसानी करके कोई भी अपने बच्चे को न तो कानवेंट स्कूल में पढ़ा सकता है, न बढ़िया कपडा पहन सकता है, न अपना इलाज करा सकता है।इतना बेइज्जत किए जाने के बावजूद किसानों ने खेती करना बंद नहीं किया। लेकिन किसानो का मजाक उड़ाए जाने से शायद प्रकृति या ईश्वर नाराज हो गए। अप्रैल में 7 डिग्री तापमान बढ़ा और गेहूं पकने के पहले ही सूख गया।
आगे कुछ नहीं कहना है। किसानों के शाप औऱ प्रकृति के प्रकोप को अन्य लोगों को भी झेलना पड़ेगा पापियों .
जो व्यापारी पिछले सालो तक सरकारी खरीद से 300 या 400 रुपये कम की कीमत पर खरीदता था आज सरकारी मूल्य से ज्यादा की खरीद पर खरीद रहा है .
ऐसा लगता है कि गेहूं के साथ घुन भी पिसेंगे इस साल।