इंकलाबी नारों से गूँजा शहीद सुखदेव का जन्म स्थान नौघरा मोहल्ला
शहीद सुखदेव के सपनों का समाज बनाने के लिए जद्दोजहद जारी रखने का संकल्प लिया
15 मई, 2022, लुधियाणा। आज शाम शहीद सुखदेव के जन्म स्थान नौघरा मोहल्ला पर विभिन्न क्रांतिकारी संगठनों द्वारा संयुक्त तौर पर शहीद सुखदेव का जन्मदिन मनाया गया। घण्टा घर चौंक के नज़दीक नगर निगम कार्यालय से लेकर नौघरा मोहल्ला तक पैदल मार्च किया गया। शहीद सुखदेव की यादगार पर लोगों ने फूल भेंट किए। इलाके में संगठनों द्वारा जारी एक पर्चा भी बाँटा गया। अदारा ललकार और मुक्ति संग्राम मज़दूर मंच की और से साथी जगदीश, लोक मोर्चा पंजाब की ओर से साथी सुरजीत सिंह, इंकलाबी केन्द्र पंजाब की ओर से साथी सुरिंदर शर्मा और इंकलाबी जमहूरी मोर्चा पंजाब की ओर से साथी करनैल सिंह ने लोगों को संबोधित किया। क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच ‘दस्तक’ के साथी नवजोत, पंजाब लोक सभ्याचारक मंच के साथी कस्तूरी लाल, मज़दूर साथी रमेश के गीत पेश किए और ‘रंगनगरी’ लुधियाणा की द्वारा नाटक टोआ पेश किया गया।
वक्ताओं ने कहा कि उनके लिए शहीद सुखदेव को याद करना कोई रस्मपूर्ति नहीं है। शहीद सुखदेव और उनके साथियों के सपनों का समाज बनना अभी बाकी है। उन्होंने शहीद सुखदेव के जन्मदिन पर इंकलाबी शहीदों की सोच अपनाने व फैलाने का प्रण करने व उनके सपनों के समाज के निर्माण की ज़ोरदार तैयारी में जुट जाने का आह्वान किया। क्रान्तिकारी शहीदों की कुर्बानियाँ मानवता की लूट, दमन, अन्याय से मुक्ति चाहने वाले और इस खातिर जूझने वाले लोगों के लिए हमेशा से प्रेरणा का स्रोत रही हैं। उन्होंने कहा कि अधिकतर लोग यह सोचते हैं कि शहीद सुखदेव और उनके साथी सिर्फ अंग्रेज हकूमत से आजादी के लिए ही लड़ रहे थे। शहीद सुखदेव व उनके साथियों के विचारों के जितने बड़े दुश्मन अंग्रेज हाकिम थे, उतने ही बड़े दुश्मन भारतीय हाकिम भी
वक्ताओं ने कहा कि सुखदेव का यह स्पष्ट मानना था कि सिर्फ अंग्रेजी गुलामी से मुक्ति से ही मेहनतकशों की जिन्दगी बेहतर नहीं हो जाएगी, कि जब तक समाज के समूचे स्रोत-संसाधनों पर मेहनतकश लोगों का कब्जा नहीं हो जाता तब तक जनता बदहाल ही रहेगी। वे समाज के स्रोत-साधनों पर चंद धन्नाढ्यों का कब्जा नहीं चाहते थे बल्कि उनकी लड़ाई तो समाजवादी व्यवस्था कायम करने के लिए थी। सुखदेव ने लिखा था- ”हिन्दुस्तानी सोशियलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी के नाम से ही पता साफ पता चलता है कि क्रान्तिवादियों का आदर्श समाज-सत्तावादी प्रजातंत्र की स्थापना करना है।”
उन्होंने कहा कि शहीद सुखदेव को धर्म, जाति, बिरादरी, क्षेत्र आदि से जोड़कर उनकी कुर्बानी के महत्व को घटाने व उनके विचारों पर्दा डालने की जाने-अनजाने में कोशिशें पहले भी होती रही हैं और आज भी हो रही हैं। लेकिन उनकी लड़ाई तो समूची मानवता को हर तरह की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक गुलामी, लूट, दमन, अन्याय से मुक्त करने की थी। इसलिए जाने-अनजाने में की जा रही ऐसी कोशिशों का डटकर विरोध करना चाहिए। मेहतनकश लोगों का गरीबी-बदहाली, बेरोज़गारी से छुटकारा धर्मों, जातियों, क्षेत्रों आदि के भेद मिटाकर एकजुट होकर लुटेरे हाकिमों के खिलाफ क्रान्तिकारी वर्ग संघर्ष के जरिए ही हो सकता है।
वक्ताओं ने कहा कि अमीरी-गरीबी की बढ़ती खाई, बेरोजगारी, इलाज योग्य बीमारियों से भी मौतें, बाल मज़दूरी, स्त्रियों के विरुद्ध बढ़ते अपराध, गरीबों की शिक्षा से बढ़ती दूरी, वोटों के लिए लोगों को धर्म-जाति आधारित साम्प्रदायिकता की आग में झोंक देने की तेज़ हो रही घिनौनी साजिशें, कदम-कदम पर साधारण जनता पर बढ़ता जा रहा ज़ोर-जुल्म – यही वो आज़ादी है जिसके गुणगान देश के हाकिम पिछले 75 वर्षों से करते आएँ हैं। देशी-विदेशी धन्नासेठ मालामाल हैं, लेकिन लोग कंगाल हैं। गरीबी-बदहाली के महासागर में अमीरी के कुछ टापू- यही है आज़ाद भारत की भयानक तस्वीर। जनता के हकों के लिए संघर्षशील लोगों को देशद्रोही करार देकर दमन किया जा रहा है। जबसे केन्द्र में मोदी सरकार बनी है तबसे जनाधिकारों पर हमला और भी तेज़ हो गया है।