धर्म, आस्था, श्रद्धा के नाम पर पढ़ा-लिखा बुद्धिमान भी अंधा हो जाता है
(प्रेरणादायक कहानी)

दैनिक समाचार

प्राण प्रतिष्ठा मंत्र द्वारा जब जिन्दा करना पडा इंसान को!
गांव के खेड़े पर एक मंदिर बनना तय हुआ!
दूर जंगलों के बीच केवल एक ही मूर्तिकार था जिसे पत्थरों पर नक्काशी करने में ऐसी महारथ हासिल थी कि पत्थर भी बोलने लगे! वह घूम घूमकर चट्टानों और शिलाओं पर अपनी कला का प्रदर्शन किया करता था। स्वभाव से मनमौजी, एकांतवासी। इसीलिए वह लोगों से कोई ख़ास मतलब नहीं रखता था।
कुछ लोगों ने काफी खुशामद और मिन्नतें करने के बाद, मंदिर में स्थापित होने वाली मूर्ति बनाने के लिए राजी कर लिया।
उसी की पारखी नजर द्वारा एक बड़े पत्थर को मूर्ति बनाने के लिए तलाश किया गया।
मूर्ति बनाने का काम उसने शुरू किया तो जरूर लेकिन उसका जुनून देखते ही बनता था, ऐसा लगता था कि वह अधिक समय तक किसी एक ही काम में बंधा नहीं रहना चाहता है। जल्द से से जल्द काम पूरा करके फिर कुछ नया बनाने की उमंग उसकी नज़रों में साफ दिखाई पड़ती थी।
गठीला बदन, छीनी और हथोडे काम करते -२ हाथ भी पत्थरों जैसे खुरदरे और मटमेले, चेहरा सपाट, उलझे लंबे लंबे बाल,ऐसा लगता था कि वर्षों से नहाया नहीं है, मानो कि उसे संसार से कोई मतलब ही नहीं है। इसलिए दिखावे की कोई जरूरत नहीं। शरीर पर बड़े थैले नुमा एक झोला सा कुर्ता और और घुटनो से ऊपर एक लंगोटी भर! एक हाथ में झोला दूसरे हाथ में हथोडा और छीनी!
बस इतना सा ही परिचय था,कोई उसका नाम ल पता नहीं जानता था,न ही वो बताने में दिलचस्पी रखता था।
दिनभर सुबह से शाम तक ठक ठक की आवाज ऐसा बयान करती थी जैसे पत्थर अपने बजूद को खोना नहीं चाहता हो और हथोड़े व छीनी के वार को रोकने की पुरजोर कोशिश कर रहा हो या फिर वर्षों से इसी आकार के साथ रहने का आदी हो चुके पत्थर को अपना तराशा जाना बिल्कुल भी पसंद नहीं था!
इसलिए गले से भिन्न भिन्न प्रकार की आवाजें निकालति प्रतीत होता था।
यह सच भी है कि अपनी पुरानी आदतों को बदलना किसी के लिए भी आसान कहां होता है?
महीने भर की कड़ी मेहनत के बाद वो दिन हि आ पहुंचा जब मूर्ति अपने मूर्त आकार में दिखने लगी थी, मगर वो इस सबसे बेखबर उसके ऊपर बैठा मूर्ति बनाने में मग्न था। बीच बीच में सूरती की पीक कभी इधर तो कभी उधर पिचर से थूककर गला तर करने का प्रयास करता महसूस होता था। या फिर मुँह में सुरती दबाए रखना भी किसी से बात न करने और मौन धारण करके अपना काम तल्लीनता से करने का एक कारण रहा होगा!
बहरहाल मूर्ति बनकर तैयार हो गयी उस आदिवासी सरीखे व्यक्ति को कुछ मेहनताना और राशन देकर विदा कर दिया गया।
खूब धूमधाम से बैंडबाजे के साथ पूरे गांव में मूर्ति को ट्रेक्टर पर रखकर घुमाया गया। गांववासियों ने फूलो की वर्षों करके तथा जयकारों और हर्सोल्लास के साथ माता की इस मूर्ति का स्वागत किया।
मूर्ति को पूरे गांव का भ्रमण कराने के बाद गंगाजल से स्नान कराया गया तथा मंदिर में स्थापित किया गया ।
अभी मूर्ति को पूरी तरह कपड़े से ढका गया था क्योंकि दूसरे गांव से पंडित जी को प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद मंदिर का उद्घाटन विधायक जी द्वारा किया जाना था।
वो दिन भी आया,आसपास के सभी गांव वालों आयोजित भंडारे के साथ ही पुजारी ने मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा की तथा भोग लगाया गया एवं क्षेत्रीय विधायक द्वारा मंदिर का उद्घाटन करके आम जनता के दर्शनार्थ खोल दिया गया।जो भी मूत्रि देखता देखता ही रह जाता क्योंकि सफेद संगमरमर की मूर्ति प्रकाश पड़ते ही ऐसी संजीव जान पड़ती थी कि बस बोल उठेगी। प्रसिद्ध भागवत कथा वाचक द्वारा एक सप्ताह तक कथा वाचन का कार्यक्रम हुआ, कथासमापन पर फिर से प्रसाद वितरण कर सारी जरुरी धार्मिक रश्मों को पूला कर लिया था।
एक दिन अचानक वो मूर्तिकार आ दमका और सीधे मंदिर में घुसा चला गया तथा अनपी बनाई मूर्ति को देखकर खुद ही खुद की कलाकारी पर इतरा रहा था कि पुजारी की कर्कश आवाज ने उसकी तंद्रा भंग की।
नालायक, पापी, मूर्ख, गंवार, तुझको इतनी भी अक्ल नहीं कि भगवान के मंदिर में चप्पल उतारकर और नहा धोकर आया जाता है। दफा हो जाओ यहां से!
उस व्यक्ति ने पुजारी की ओर देखकर कहा पंडित जी आप शायद मुझे नहीं जानते हो वही व्यक्ति हूं जिसने इस मूर्ति को बनाया है? मूर्ति बनाते समय मैं इसके ऊपर बैठकर और चप्पल पहनकर ही मूर्ति बनाता रहता था, बल्कि इसी के ऊपर बैठकर ही खाना भी खाता था और सुरती भी इधर उधर थूकता रहता था। मगर इस मूर्ति ने कभी मना नहीं किया कि तुम पापी और मूर्ख तथा बेवकूफ हो!
पुजारी बोला- मूर्ख तू अज्ञानी धर्मकर्म के बारे में कुछ भी नहीं जानता है! जब तक इस मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा नहीं हुई थी तब तक यह केवल एक पत्थर ही थी । परन्तु जब से प्राण प्रतिष्ठा हुई है तब से यह भगवान की जीती जागती प्रतिमा बन चुकी है। बाहर निकल सारा फर्श और मंदिर अशुद्ध व अपवित्र कर दिया अनपढ़ जाहिल कहीं का! जाकर हाथ पैर धोकर या नहाकर आ, तथा चप्पल बाहर उतारकर तभी मंंदिर में घुसना!
आदिवासी जैसा दिखता वह मनुष्य अगले दिन नहाधोकर मंदिर आया तो हाथ में कुछ फूल भी थे।
चप्पल बाहर उतारकर तेजी से मूर्ति के पास पहुंचकर फूल चढ़ाएं और बैठकर अपनी ही बनी मूर्ति को बैठा घंटों निहारता रहा। क्योंकि यह उसके भी जीवन की सबसे बेहतरीन और सुन्दर रचना जो थी।
अब उसका यह क्रम प्रतिदिन का क्रम हो गया था। शायद उस एकाकी व्यक्ति को भी जीने का सहारा मिल चुका था।
वैसे भी व्यक्ति को अपनी हर रचना और कृति से अनूठा प्रेम होता भी है।
एकदिन की बात कि जब वह व्यक्ति मन्दिर आया तो मंदिर के दरवाजे बंद थे तथा उन पर मोटा सा ताला लगा हुआ था।
उसका नित्य का नियम आज टूटने वाला था तो बैचेनी और व्याकुलता बढ़ने लगी। उसने इधर उधर नजर दौड़ाई तो एक ग्रामीण पास के रास्ते से जाता दिखाई दिया, उसने उसे रोककर पूछा कि आज मन्दिर बन्द क्यों है तथा इसके दरवाजे पर ताला क्यों लगाया गया है?
उस ग्रामीण ने बताया कि अभी कुछ घंटे पहले पुजारी का इकलौता लड़का मर गया है इसलिए मंदिर बंद कर दिया गया होगा!
उसने पुजारी का घर पूछा और लगभग दौड़ते हुए पुजारी के घर पहुंचा। देखा कि पुजारी के सामने उसके बेटे का मृत शरीर रखा हुआ है तथा पुजारी का रो-रोकर बुरा हाल है! आसपास दस बीस लोग बैठे थे जिनमें से कुछ पुजारी को ढांढस व सांत्वना देकर शांत करने की कोशिश कर रहे हैं।
वह व्यक्ति इस बात से बेखबर सीधा पुजारी के पास पहुंचा और उनका हाथ पकड़कर बोला कि पंडित जी आप क्यों रो रहे हैं?
पुजारी तो पहले ही जानता था कि यह व्यक्ति बिल्कुल जाहिल और गंवार तथा अनपढ़ भी है। इसलिए बोला कि मूर्ख क्या तू सच में ही पागल भी है क्या? दिखाई नहीं देता कि मेरा इकलौता पुत्र और मेरे बुढापे का सहारा अब जिंदा नहीं बचा है तो रोऊं नहीं तो और क्या करूं?
उस व्यक्ति को हंसी आ गयी पंडित जी आप भी मजाक करते हैं,आपका लडका कैसे मर सकता है, आप तो इसे जिन्दा कर सकते हैं ना?
इस बार पंडित जी को क्रोध आ गया लेकिन किसी तरह गुस्से का घूंट पीकर शांत रहे और ग्रामीणों को समझायि कि इस महामूर्ख दुखद घडी में भी अपनी मूर्खता करने से बाज नहीं आ रहा है, इसको पता नहीं है कि जो एकबार मृत्यु को प्राप्त हुआ उसको जिंदा कर पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि असम्भव है।
तब वह आदिवासी सरीखा व्यक्ति बोला पंडित जी जब आप मेरी बनाई हुई पत्थर की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा करके प्राण डालने का मंत्र जानते हैं तो अपने पुत्र को उस मंत्र से प्राण प्रतिष्ठा करके जिंदा क्यों नहीं कर सकते हैं? आपके लिए तो यह बहुत मामूली सा काम है, आप तो बेवजह ही रो रहे हैं!
चलिए जल्दी से मंत्र पढ़ना शुरू कर दीजिए,बस कुछ ही देर में आपका लडका जिन्दा हो जाएगा!
इसबार झेंपने की बारी पंडित जी की थी कि जिसे वह अभी तक मूर्ख,जाहिल और गंवार कहकर अपमानित किया करता था आज सरेआम सबके सामने बेइज्जती कर नंगा कर रहा है। अब इसे क्या जवाब दूं और कैसे अपने लाडले पुत्र को जिन्दा करके दिखाऊं?
काश! मेरे पास सच में ही वो प्राण प्रतिष्ठा करने वाला मंत्र होता तो आज मेरा प्राणप्रिय पुत्र मृतावस्था में धरती पर न लेटा होता। दूसरों को मूर्ख बनाना ज़रूर आसान है लेकिन हकीकत तो यही है कि प्राण प्रतिष्ठा जैसा कोई भी मंत्र ऐसा नहीं है जिससे कि पत्थरो में जान फूंकी जा सके!
यह कडुवी सच्चाई है कि यदि मूर्तियो मे प्राण होते तो चोरों कराते डर से रात को मंदिरों में ताला लगाने और सीसीटीवी कैमरे लगाने की क्या जरूरत थी? मगर धर्म और आस्था व श्रद्धा के नाम पर पड़ा लिखा और बुद्धिमान इंसान भी अंधा है!

साभार
इं० एस० के० वर्मा

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