राजनीतिक विचारधाराओं के कारण जितने लोग नहीं मारे गए, उससे कहीं ज्यादा लोगों की जान धार्मिक युद्धों में गई है.
मेरा धर्म क्या है? मैं ईश्वर से खुद को कैसे जोड़ता हूं? ईश्वर से मेरा कैसा रिश्ता है?
इन चीजों से किसी और को कोई मतलब नहीं होना चाहिए. आप अपने ईश्वर के साथ अपना रिश्ता चुनने के लिए पूर्णतया स्वतंत्र है. लेकिन राजनीतिक दलों एवं राजनेताओं ने सब-कुछ उलट-पुलट कर रखा है. और हम भी उसी वहाव में बहते चले जा रहे हैं. सांप्रदायिकता ने पूरी नग्नता से अपना सिर उठा लिया है.
निर्धन, दलित, और अशिक्षित लोगों में भी स्वतंत्रता की आकांक्षा होती है. हिंदू आबादी की बहुलता के कारण हम भारत में हिंदू राज्य की आवाज सुनते हैं. यह सभी बेकार की बात है.
मेहनतकश वर्ग को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उनमें से किसी एक का भी यह सांप्रदायिक संगठन कोई समाधान बतला सकते हैं?
क्या इस तरह के संगठनों के पास बेरोजगारी, गरीबी, निरक्षरता, का कोई जवाब है? इन समस्याओं पर कभी कोई दिशा निर्देश दे सकते हैं? शायद नहीं.!
मेरे विचार में धर्म निजी विषय वस्तु है. धर्म की आड़ में हमारी स्वतंत्रता को कोई छीन नहीं सकता है.
मेरे खान-पान और पहनावे को तो बिल्कुल भी नहीं.