चंद्रशेखर आज़ाद ने जब अपनी जाति हटाकर उसकी जगह ‘आज़ाद’ लिखा होगा, तो उसके पीछे एक सोच एक विद्रोह रहा होगा!
यह उसी विद्रोही चिंतन का हिस्सा होगा, जिसके तहत भगत सिंह के साथ मिलकर उन्होंने ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोसिएशन’ (HRA) में ‘समाजवाद’ शब्द जोड़ा था और भारत के क्रांतिकारी आंदोलन को एक नया अर्थ, नया आयाम दिया था।
यह अर्थ था- “सभी तरह के शोषण का अंत. जातीय, वर्गीय, पितृसत्तात्मक।”
HSRA की स्थापना के दौरान ही एक और शपथ ली गयी थी कि “सभी सदस्य कोई भी धार्मिक प्रतीक धारण नहीं करेंगे।”
इसी शपथ के तहत चंद्रशेखर आज़ाद ने अपना जनेऊ तोड़ डाला था!
चंद्रशेखर आज़ाद के साथी और HSRA के सदस्य ‘मास्टर छैल बिहारी’ अपने एक संस्मरण में लिखते हैं कि चंद्रशेखर आज़ाद ने जब उन्हें जनेऊ पहने देखा, तो वे क्रोधित हो गए और इसे तत्काल उतारने को कहा,
जनेऊ की ओर इशारा करते हुए चंद्रशेखर आज़ाद ने कहा-“इसकी यहां इजाजत नहीं दी जा सकती…
यदि तुम यहाँ देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने आये हो तो सबसे पहले तुम्हे अपनी जनेऊ की कुर्बानी देनी होगी।”
लेकिन आज चंद्रशेखर आज़ाद यह देख कर बेहद बेचैन हो रहे होंगे कि उन्हें ‘जनेऊधारी तिवारी’ के रूप में याद किया जा रहा है!
उन्हें मूंछों पर ताव देते एक मर्दवादी के रूप में ढाला जा रहा है।
27 फरवरी 1931 को अंग्रेजों ने चंद्रशेखर आज़ाद की हत्या की थी।
आज कुछ लोग फिर से उनकी क्रांतिकारी पहचान की हत्या पर उतारू हैं।
चंद्रशेखर आज़ाद ने हमारे लिए गोलियां खाई थी. आज अपने भीतर क्रांतिकारी चंद्रशेखर ‘आज़ाद’ को आज़ाद करना अब हमारा काम है।
द्वारा : मनीष आज़ाद