लेखक : प्रतीक जे. चौरिसया
बाल शोषण क्या है?
जब बच्चों को मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है, उसे बाल शोषण कहते हैं. इसके तहत नाबालिक अर्थात 18 वर्ष से कम की आयु के बच्चे शामिल होते हैं। जब भी बच्चे डर जायें, उन्हें चोट पहुंचाई जाये, इस तरह की घटनायें बाल शोषण के दायरे में आती हैं।
बाल शोषण की शुरूआतएवं उत्तपत्ति का कारण
इसकी शुरूआत 1920 में ही हो चुकी थी, लेकिन अब तक इस पर खुल कर चर्चा नहीं की जाती। यह समस्या भारत की ही नहीं है, यह सभी देशों का अहम मुद्दा है। भारत में यौन संबंधी बातों पर खुलकर कहना अपराध एवं शर्म का विषय समझा जाता है, इसलिए बच्चे अपनी बात माता-पिता के सामने यह विषय रखने में खुद को असहज मानते हैं और अगर बच्चे बता भी दें, तो माता-पिता ऐसी घटनाओं को छिपा जाते हैं। ऐसे में बच्चों को सही सलाह एवं हिम्मत न मिलने के कारण यह अपराध बढ़ता ही जा रहा है और यही इसके व्यापक होने का कारण है।
बाल शोषण का अपराधी कौन हैं ?
बड़ी- बड़ी रिसर्च और अनुभव यह कहते हैं कि इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वाले हमेशा परिवार के करीबी होते हैं, जिनका घर में आना-जाना बना रहता है और उनकी दोस्ती बच्चों से जल्दी हो जाती है। वे बच्चों के साथ इतने खुश दिखाई देते हैं कि समझा ही नहीं जा सकता कि उनके इरादे इतने घिनौने हैं। ज्यादातर ये घर के नौकर होते हैं, क्योंकि आज के व्यस्त जमाने में बच्चे नौकरों के साथ ज्यादा समय गुजारते हैं और कई तरह के केस नौकरों के खिलाफ ही सुनने में आते हैं।
बाल शोषण के प्रकार क्या क्या हैं?
- मानसिक प्रताड़ना : जब किसी बच्चे से ऐसी बातें की जाती हैं, जो उन्हें मानसिक तनाव देता है या उन्हें डराता हैं, वे सभी मानसिक प्रताड़ना के अंतर्गत शामिल हैं। बच्चों से अनुचित बातें करना, उन्हें किसी चीज से डराना, उनके मन में भय पैदा करना; ये सभी अपराध हैं; जिनके खिलाफ आवाज उठाई जा सकती हैं।
- शारीरिक प्रताड़ना : जब किसी बच्चे को अनुचित तरीके से अनुचित जगहों पर छुआ जाता है, उन्हें तकलीफ पहुँचाई जाती है या उन्हें मारा जाता है, वे सभी शारीरिक प्रताड़ना में शामिल हैं। इस दिशा में बच्चों को सचेत और सावधान करना आवश्यक है; ताकि वे इस शोषण को समझ सकें और खुलकर अपने माता-पिता अथवा पालकों से कह सकें।
बच्चों पर इसका प्रभाव
- जो बच्चे इस शोषण से ग्रसित होते हैं, वे या तो बहुत डरे हुये होते हैं या बहुत ज्यादा गुस्सेल और चिड़चिड़े हो जाते हैं।
- कुछ बच्चे बहुत ही शर्मीले हो जाते हैं, किसी से बात करने में खुद को असहज महसूस करते हैं, कम बोलते हैं।
- कई बार बच्चे बहुत बत्तमीज हो जाते हैं, उन्हें घर के लोगों से भी एक अजीब सा व्यवहार करता देखा जाता है।
- बच्चे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। मानसिक रोगी की तरह बर्ताव करने लगते हैं। अत्यधिक सोने अथवा खाने भी लगते हैं।
- ऐसे बच्चे आसानी से आपराधिक गतिविधियों में भी शामिल हो सकते हैं; जैसे चोरी करना, मारना पीटना अथवा ड्रग्स आदि का सेवन करने लगना।
वे सभी कारण जो बच्चे को दूसरे बच्चों से अलग दिखाये, उनके ऐसे बर्ताव के पीछे बाल शोषण एक अपराध शामिल हो सकता है। इसलिए सभी को इस दिशा में कार्य करने की जरूरत है; ताकि माहौल ऐसे घृणित अपराध का शिकार न हो सके।
बाल शोषण रोकने के उपाय
बाल शोषण को रोकने के लिए जरूरी है कि बच्चों को सही और गलत का ज्ञान दिया जाये। उनसे इस विषय में खुलकर बातें की जाये; ताकि वे इस शोषण को समझ सकें और अपनों से कह सकें।
- बच्चों को यह ज्ञान होना बहुत आवश्यक है कि वे अपने और पराये के अंतर को समझ सकें। वैसे यह बहुत मुश्किल हैं; क्योंकि वयस्क भी कौन अपना, कौन पराया का हिसाब सही नहीं कर सकता; तो बच्चे तो ना- समझ और नादान होते हैं; पर फिर भी उन्हें कुछ हद तक ज्ञान देना आवश्यक है।
- बच्चों को शारीरक शोषण को समझने के लिए अच्छे और बुरे बर्ताव एवं छूने को महसूस करने का ज्ञान दिया जाना जरूरी है।
- बच्चों की बातों पर डांटने की बजाय, उसे प्यार से समझायें, अच्छी बातों के लिए प्रेरित करें, इससे आपका बच्चा तो आत्मविश्वास महसूस करेगा ही; समाज का हर व्यक्ति इससे सीख लेगा और अपराधी, अपराध करने से पहले कई बार सोचेगा।
- बाल शोषण से निपटने के लिए आजकल कई तरह की क्लासेस भी चलाई जा रही हैं, जहां बच्चों को इस बात की समझ दी जाती है और माता-पिता को भी सिखाया जाता है कि कैसे बच्चों को खेल–खेल में यह सब सिखायें। इसलिए बिना शर्म किए ऐसी क्लासेस का हिस्सा बनें और अपने बच्चों की जिन्दगी सवांरें।
बाल शोषण और सरकार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्येक्षता में मंत्रिमंडल ने बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए ऐतिहासिक फैसला लेते हुए बाल यौन अपराध संरक्षण कानून 2012 (पोक्सोच) में संशोधन को मंजूरी दे दी है। इसमें बच्चों बच्चों से जुड़े यौन अपराधों के लिए मृत्युदंड सहित सख्त दण्डात्मक प्रावधान किए गए हैं।
भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा “बाल शोषणः भारत 2007” पर में कराये गये अध्ययन से पता चला कि विभिन्न प्रकार के शोषण में 5 से 12 वर्ष तक की उम्र के छोटे बच्चे शोषण और दुर्व्यवहार के सबसे अधिक शिकार होते हैं तथा इन पर खतरा भी सबसे अधिक होता है। इन शोषणों में शारीरिक, यौन और भावनात्मक शोषण शामिल होता है।
रिपोर्ट के अनुसार
- हरेक तीन में से दो बच्चे शारीरिक शोषण के शिकार बने।
- शारीरिक रूप से शोषित 69 प्रतिशत बच्चों में 54.68 प्रतिशत लड़के थे।
- 50 प्रतिशत से अधिक बच्चे किसी न किसी प्रकार के शारीरिक शोषण के शिकार थे।
- पारिवारिक स्थिति में शारीरिक रूप से शोषित बच्चों में 88.6 प्रतिशत का शारीरिक शोषण माता-पिता ने किया।
- आंध्र प्रदेश, असम, बिहार और दिल्ली से अन्य राज्यों की तुलना में सभी प्रकार के शोषणों के अधिक मामले सामने आये।
- 50.2 प्रतिशत बच्चे सप्ताह के सात दिन काम करते हैं।
यौन शोषण
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी किए गए 2018 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में वर्ष 2018 में प्रत्येक दिन औसतन 109 बच्चों का बाल शोषण हुआ है। एनसीआरबी के हालिया जारी आंकड़ों के अनुसार बाल यौन शोषण संरक्षण कानून (पॉक्सो) के तहत वर्ष 2017 में 32,608 मामले दर्ज किए गए; वहीं 2018 में इस कानून के तहत 39,827 मामले दर्ज किए गए।
आंकडों के अनुसार 2018 में बच्चों के साथ दुष्कर्म के 21,605 मामले दर्ज हुए, जिनमें लड़कियों से जुड़े 21,401 मामले तथा लड़कों से जुड़े 204 मामले थे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दुष्कर्म के सर्वाधिक 2,832 मामले महाराष्ट्र में,उत्तर प्रदेश में 2023 और तमिलनाडु में 1457 मामले दर्ज किए गए।
पृष्ठभूमि
पोक्सोश अधिनियम, 2012 बच्चों को यौन अपराधों, यौन शोषण और अश्लील सामग्री से सुरक्षा प्रदान करने के लिए लाया गया था। इसका उद्देश्य बच्चों के हितों की रक्षा करना और उनका कल्याण सुनिश्चित करना है। अधिनियम के तहत बच्चे को 18 साल की कम उम्र के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है और हर स्तर पर बच्चों के हितों और उनके कल्यांण को सर्वोच्च् प्राथमिकता देते हुए उनके शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास को सुनिश्चित किया गया है। यह कानून लैंगिक समानता पर आधारित है।
प्रभाव
- कानून में संशोधन के जरिए कड़े दंडात्महक प्रावधानों से बच्चों से जुड़े यौन अपराधों में कमी आने की संभावना है।
- इससे संकट में फंसे बच्चों के हितों की रक्षा हो सकेगी और उनकी सुरक्षा और सम्माचन सुनिश्चित किया जा सकेगा।
- संशोधन का लक्ष्य बच्चों से जुड़े अपराधों के मामले में दंडात्ममक व्यनवस्थाओं को अधिक स्पष्ट करना है।